पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबन्द(देवभोग). सुपेबेड़ा के जिन 7 घरों के 15 पानी के सैंपल लिए गए थे, सभी में किडनी के लिए घातक कैडमियम व क्रोमियम जैसे धातू होने की पुष्टि जांच रिपोर्ट में हुई थी. यही वजह से इनके घरों से किडनी रोग के 38 मरीज निकले थे. जिनमें से 30 की मौत हो चुकी है अब भी 8 जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं.
सुपेबेड़ा में किडनी रोग की पड़ताल के लिए बनाये गए नोडल अधिकारी डॉ आशीष सिन्हा ने सुपेबेड़ा के 7 घरों से 15 वे सेनमूड़ा के 5 निजी जल स्रोत के नमूने एकत्र किए थे. इसके अलावा 25 मिट्टी के सैंपल भी एकत्र कर इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय के लेबोटरी में जांच के लिए 4 जुलाई 2017 को सौपा था. 6 जुलाई को जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन के अलावा स्वास्थ्य महकमे को उपलब्ध करा दिया गया था. रिपोर्ट में बताया गया था कि यंहा के पानी व मिट्टी में तय मानक से भारी मात्रा में कैडमियम व क्रोमियम जैसे धातू पाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक किडनी को सीधे असर करने वाले ये धातू 20 से 30 गुना ज्यादा मात्रा में पाए गए हैं. 5 पेज के रिपोर्ट में अंतिम पेज पर गांव को विस्थापन करने की सलाह तक दी गई थी.
बीएमओ डॉ सुनील भारती ने बताया कि ये रिपोर्ट अभी भी उनके दफ्तर में सुरक्षित है. उन्होंने कहा है कि क्लॉस धातू से निपटने या निदान करने सम्बन्धी उनके पास कोई जानकारी या निर्देश नहीं है.
मामले की पड़ताल करने पर पता चला कि सुपेबेड़ा के जिन 7 घरों के 15 सोर्स के नमूने लिए गए वही ज्यादातर लोग किडनी से प्रभावित मिले. 2009 से अब तक गांव में किडनी रोग से मरने वालों को संख्या 69 है. इसमें से 30 कैडमियम प्रभावित पानी के इस्तेमाल वालों की हुई है. जिस अंकुर नेताम का पानी लिया गया था वह अभी किडनी से बीमार है, जबकि इनके दोनों भाई की मौत किडनी फैल होने से हुई है. दुर्योधन पुरैना के पानी मे भी हैवी मेटल मिले है. ये व उनके पिता पुरनधर गम्भीर रूप से बीमार हैं. जबकि परिवार के चार किडनी रोग से पीड़ित सदस्यों की मौत हो गई है. पीड़ित टीनिमिनि ने भी अपने परिवार के 4 सदस्यों को खो दिया है. इसी तरह चंवर नेताम बीमारी से जूझ रहे हैं. 25 वर्षीय बेटे कमलेश व भाई बिरोलाल को खो चुका है. श्याम लाल के स्रोत का उपयोग करने वाले परिवार के 4 सदस्यों की मौत हो चुकी है. शांति बाई पीड़ित है. अपने आंखों से पति व जेठ समेत 3 लोगो को दम तोड़ते देखा है।बीमार ललिता भी कैडमियम युक्त पानी का उपयोग कर रही है,सयुक्त परिवार में 10 लोगो की मौत हो चुकी है जबकि 3 की हालत गम्भीर है.
अब तक किए गए प्रयासों को देख कर लगता है कि 2017 के इस रिपोर्ट को गम्भीरता से नहीं लिया गया है. क्योंकि गांव में अर्सनिक नहीं होने के बावजूद दो अर्सनिक रिमूवल प्लांट लगाए गए. आयरन व फ्लोराइड जो दांत व हड्डी को प्रभावित कर सकता है उसका रिमूवल प्लांट लगाया गया है. इन सभी में 1 करोड़ रूपए खर्च किए गए, लेकिन कैडमियम व क्रोमियम जैसे धातू से बचाने कोई उपाय नहीं किया गया.