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दिल्ली में पूर्ववर्ती अरविंद केजरीवाल सरकार की शराब नीति के बाद शुक्रवार को स्वास्थ्य पर कैग रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई. जिसे मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सदन में पेश किया. रिपोर्ट में दवाओं की किल्लत, ऑपरेशन थियेटर बंद होने और अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी बताई गई है. कैग रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2022 तक दिल्ली के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं और कर्मचारियों में भारी कमी हुई थी.
पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सों में 36% और 30% की कमी हुई थी, जिससे मरीजों को इलाज करना मुश्किल हो गया. इससे मरीजों को डॉक्टर से औसतन पांच मिनट से भी कम समय का परामर्श मिल रहा था, ऑपरेशन थियेटर बंद पड़े थे और दवाओं की भारी कमी थी, और सरकार द्वारा जारी बजट का भी सही उपयोग नहीं हुआ, जिससे अस्पतालों के निर्माण कार्य अधूरे रह गए. मार्च 2022 तक, दिल्ली सरकार के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में नर्सों की कमी 21% थी, पैरामेडिकल स्टाफ की कमी 38% थी, और दिल्ली के 28 अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में टीचिंग डॉक्टरों की कमी 30% थी.
प्रतिबंधित फर्मों से भी दवाएं खरीदी गईं
कैग रिपोर्ट के अनुसार, अस्पतालों को हर साल आवश्यक दवाओं की सूची बनानी चाहिए, लेकिन पिछले दशक में यह सूची केवल तीन बार बनाई गई, क्योंकि कुछ दवाएं ब्लैकलिस्टेड और प्रतिबंधित कंपनियों से खरीदी गईं. Central Procurement Agency, जो दवा खरीदने के लिए बनाई गई थी, असफल रही. 2016-17 से 2021-22 के दौरान, अस्पतालों को आवश्यक दवाओं का 33 से 48 प्रतिशत स्वयं खरीदना पड़ा, क्योंकि सीपीए उन्हें आपूर्ति नहीं कर सका. सीपीए ने 86 निविदाओं में से केवल 28 प्रतिशत को अंतिम रूप से स्वीकृत किया था.
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में स्वास्थ्य बजट का पूरा उपयोग नहीं हो सका. वित्त वर्ष 2016-17 की बजट स्पीच में 10 हजार नए बेड जोड़े जाने का प्रस्ताव था, लेकिन 2016 से 2017 तक केवल 1,357 नए बेड जोड़े गए. स्वास्थ्य विभाग ने जून 2007 से दिसंबर 2025 के बीच 648.05 करोड़ रुपये में 15 प्लॉट खरीदकर नए अस्पताल और डिस्पेंसरी बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन पजेशन मिलने के बाद भी इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सका.
ऑडिट के दौरान बनाए गए 8 नए अस्पतालों में से केवल 3 का निर्माण कार्य पूरा हो पाया था, जबकि इन अस्पतालों के निर्माण में पहले ही छह साल की देरी हो चुकी थी. 2021-22 में स्वास्थ्य सेवाओं पर 12.51 प्रतिशत और जीएसडीपी का 0.79% खर्च हुआ, जो लक्ष्य (2.5% जीएसडीपी) से काफी कम था. इसके अलावा, दिल्ली राज्य स्वास्थ्य मिशन ने 510.71 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए.
CAG रिपोर्ट की खास बातें
● स्टाफ की कमी से डॉक्टर मरीजों को 5 मिनट भी नहीं देख पा रहे थे
● ICU/आपातकालीन विभागों में आवश्यक दवाओं और उपकरणों की कमी देखी गई.
● रजिस्ट्रेशन काउंटरों पर अधिक भीड़ और कम कर्मचारियों के कारण मरीजों को औसतन पांच मिनट से भी कम का परामर्श मिला
● लोकनायक, ब्लड बैंक की सुविधा वाले चार अस्पतालों में से एकमात्र था, जिसमें ब्लड कंपोनेंट अलग करने की सुविधा थी, जो एक चुनौती था.
● लोकनायक में फार्मासिस्टों की कमी के कारण प्रति फार्मासिस्ट अधिक मरीज थे और मरीजों को उसी दिन दवाएं मिलने में कठिनाई हुई.
● सुष्रुत ट्रॉमा सेंटर को स्थायी रूप से विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं मिली
● वन स्टॉप सेंटर में हिंसा पीड़ितों के लिए कोई समर्पित कर्मचारी नहीं था
● कैट्स एंबुलेंस सेवा में आवश्यक उपकरणों की कमी थी
● आहारविद न होने से खाने की गुणवत्ता की जांच नहीं हुई
● लोकनायक अस्पताल में सर्जरी के लिए प्रतीक्षा अवधि दो से तीन महीने (सर्जरी विभाग) और छह से आठ महीने (प्लास्टिक सर्जरी) रही.
● जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में आहार विद की निगरानी नहीं थी, जिससे खाद्य गुणवत्ता पर कोई निगरानी नहीं थी.
● जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के सभी सात ऑपरेशन थियेटर और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के 12 में से 6 मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर स्टाफ की कमी के कारण निष्क्रिय मिले
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