विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश के सापेक्ष गठबंधन महज मजबूरियों का होता है ये बात तो सिद्ध हो गई. जैसे 2019 में समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन दो विपरीत विचारधाराओं के एक साथ आने का गठबंधन था, ठीक वैसे ही उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस के साथ वजूद की लड़ाई लड़ रही समाजवादी पार्टी का गठबंधन 2024 में हुआ था. वजूद की लड़ाई इसलिए, क्योंकि 22 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर सवालिया निशान खड़े होने लगे थे.
बता दें कि लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित सपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेता गठबंधन को बेजोड़ और सालों साल चलने वाला बता रहे थे और 2027 के विधानसभा चुनाव में एक साथ मैदान में उतरकर भाजपा को सबक सिखाने की बात कह रहे थे. ऐसे दावों की हवा निकलती हुई दिख रही है. लोकसभा चुनाव नतीजे आए अभी 6 महीने भी नहीं हुए हैं कि इस गठजोड़ की गांठ खुलती दिखने लगी है.
उपचुनाव में होगी असल पहचान
बीते लोकसभा चुनाव में 9 विधायकों के सांसद चुने जाने, एक विधायक(सीसामऊ) को अयोग्य ठहराए जाने से रिक्त हुई यूपी की 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं और उसके लिए ज़मीनी तैयारियां हर पार्टी करनी शुरू कर दी है. इसके तहत गठबंधन से आगे बढ़कर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने अलग-अलग तैयारियां की है, जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी हर सीट पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हर विधानसभा क्षेत्र के नेताओं के साथ बैठकें कर रणनीति पर मंथन कर रहे हैं.
वहीं तैयारियों में जुटी कांग्रेस ने भी हर सीट पर प्रभारियों और पर्यवेक्षकों की टीम उतार दी है. साथ ही इन विधानसभा सीट पर स्थानीय मुद्दों की फेहरिस्त भी तैयार कर रही है, जिससे दलितों और पिछड़े लोगों का साथ कांग्रेस के हाथ को मिल सके. इन दोनों दलों की रणनीति देखने से जाहिर हो रहा है कि दोनों सियासी दल अपनी सियासत की नई इबारत अब अकेले लिखने की तैयारी कर रहे हैं.
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