कुमार इंदर, जबलपुर। मध्य प्रदेश की लाइफ लाइन और जीवनदायिनी कहलाने वाली नर्मदा नदी के किनारे अतिक्रमण डूब क्षेत्र को खाली कराने के मामले में एक बार फिर से एनजीटी का रुख किया गया है। इस मामले में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने एनजीटी में एक याचिका दायर की है। याचिका में यह कहा गया है कि, एनजीटी के 2021 के आदेश के बाद भी न तो उसका पालन किया जा रहा बल्कि और तेजी से नर्मदा नदी के किनारे अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। याचिका के माध्यम से मध्य प्रदेश के उन 16 जिलों में जहां से नर्मदा नदी बहती है सभी कलेक्टरों को पार्टी बनाने की बात कही गई है, साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग की गई है।

फिर से मामला तूल पकड़ता जा रहा

बता दें कि इन्हीं याचिका पर 2021 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रमुख सचिव समेत तमाम प्रशासन को यह हिदायत दी थी कि नर्मदा नदी किनारे 300 मीटर के दायरे में पड़ने वाले अतिक्रमण और डूब क्षेत्र में होने वाले निर्माण कार्य को न केवल रोका जाए बल्कि उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाया जाए, लेकिन एनजीटी के आदेश के 3 साल बाद भी उस पर कोई कार्रवाई न करने पर एक बार फिर से मामला तूल पकड़ता जा रहा है।

300 मीटर के दायरे में निर्माण और अतिक्रमण पर रोक

मध्य प्रदेश की नर्मदा नदी के किनारे 300 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के निर्माण और अतिक्रमण पर रोक लगी हुई है। इसके बाद पूरे 16 जिलों में जहां से नर्मदा नदी गुजरती है अतिक्रमण देखने को मिल रहा है। यहां तक की नर्मदा नदी के किनारे कई जगह तो 300 मीटर के दायरे में कॉलोनी तक बनी हुई है जिन पर ना तो प्रशासन कार्रवाई कर रहा है नहीं किसी की नजर है।

निगम खुद ही दे रहा बढ़ावा

जबलपुर के गौरी घाट स्थित नर्मदा नदी के 100 मीटर के दायरे में निगम ने खुद अपनी 35 दुकानें बनाकर हर महीने उसका किराया भी ले रहा है। एक तरफ सरकार नर्मदा नदी को लेकर स्वच्छ अभियान चला रही है तो वहीं दूसरी ओर नगर निगम के अधिकारी नदी के ठीक किनारे दुकान किराए से चलाकर हर महीने अपना खजाना भर रहे हैं ।

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