रायपुर- दक्षिण बस्तर में आदिवासी ईसाईयों के उत्पीड़न की घटनाओं के मद्देनजर छत्तीसगढ़ पहुंची समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा है कि राजनीतिक शक्तियां यदि धार्मिक कारणों से आदिवासियों को निशाना बनाना चाहती है, तो हम जन शक्ति से आग्रह करते हैं कि आदिवासियों के हितों के साथ खड़े रहे. उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात देखकर यह साफ है कि कहीं न कहीं आदिवासियों को भी वोट बैंक बनाया जाता है. छत्तीसगढ़ में सरकार में हुए बदलाव के बाद विरोधी दल से जुड़ी कुछ संस्थाएं आदिवासी इलाकों में घुसपैठ कर रही हैं. इस मामले में पुलिस की जांच जारी है. हमारी जांच भी चल रही है. लोगों ने नाम दिए हैं. कई जगहों पर एक से अधिक पार्टियां भी इस मामले में जुड़ी नजर आई है. आदिवासियों के अंदर से ही विवाद नहीं उभरा. कहीं न कहीं बाहरी लोग भी शामिल हैं. ईसाई आदिवासियों के साथ हिंसा की घटना के मामले में राज्य सरकार को जैसी कार्रवाई की जानी थी, वक्त रहते नहीं की गई. उन्होंने कहा कि हमने इस मामले में मुख्यमंत्री से मुलाकात कर जल्द से जल्द आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की है. साथ ही सही कार्रवाई नहीं करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई किए जाने का आग्रह किया है.
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और पीयूसीएल ने दक्षिण बस्तर में इसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों के खिलाफ हुई हिंसा की घटना की जांच के लिए एक फैक्ट फाइडिंग टीम गठित की थी. सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की अगुवाई वाली इस टीम में अमिताभ मित्रा, विमल भाई, अखिल चौधरी और विक्रम सिंघल शामिल रहे. फैक्ट फाइडिंग टीम ने दक्षिण बस्तर के प्रभावित इलाकों में जाकर पीड़ितों से मुलाकात कर घटना का ब्यौरा लिया है. साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मुलाकात कर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की है. टीम ने कुछ अहम सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी सौंपी है.
राजधानी रायपुर में पत्रकारों से मुलाकात के दौरान मेधा पाटकर ने कहा कि आदिवासी विविधताओं को लेकर जीते आए हैं. अभी पिछले कुछ सालों में जो हिंसा हुई है, उसके पीछे कौन सी ताकतें है, उसकी खोज सरकार को करनी चाहिए. इसके निपटारा को सिर्फ लाॅ एंड आर्डर की दृष्टि से नहीं, समाजिक दृष्टि से भी किया जाना चाहिए. हमने इस संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी बात की है, उन्होंने यह माना है कि सितंबर में जब यह हमला हुआ, तब इस मामले में निर्णय़ लेने में समय लगा. उन्होंने यह माना है कि आदिवासियों का धर्म, उनकी जीवन प्रणाली प्रकृति के साथ जुड़ी है.मेधा पाटकर ने कहा कि पिछले कुछ सालों से आदिवासियों के उस समुदाय पर हमले हो रहे हैं, जिन्होंने इसाई धर्म स्वीकार किया है. समाज में विभाजन आ रहा है. हिंसा हुई है. साल भर से अधिक बर्बरता का रूप लिया है. अलग-अलग संगठनों ने तय किया कि जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय और पीयूसीएल की तरफ से सत्य शोध समूह बनाकर छत्तीसगढ़ आए. हमने कोंडागांव जिले के तीन गांवों में जाकर बातचीत की है. इसके अलावा सुकमा, दंतेवाड़ा, बस्तर के अलग-अलग जिलों के भुक्त भोगियों के साथ चर्चा की है, जिन्होंने हिंसा, अत्याचार झेला है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों में से कईयों ने यीशु को धर्म गुरू मान लिया है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा जैसे अत्यावश्यक चीजों के लिए लोगों ने मार्गदर्शन किया और उन्होंने धर्म को स्वीकार कर लिया, लेकिन वह अपने आप को आदिवासी ही मानते हैं. गांव के लोगों ने शायद सोचा कि यह लोग समाज से अलग हो गए हैं. यह लोग आदिवासी संस्कृति को नहीं मानते. इस विवाद को खत्म करने के लिए जरूरी है कि आदिवासियों के सद्भाव और एकता की बातें. पाटकर ने कहा कि हम अभी विस्तृत रिपोर्ट जारी नहीं कर रहे हैं. हमारा शोध कार्य अभी जारी है. न्यूनतम निष्कर्ष जो निकला है, उसकी जानकारी मुख्यमंत्री को भी दी है.
समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा कि आदिवासी जल, जंगल, जमीन से जुड़े लोग हैं. संविधान के अनुच्छेद 25 में दिए गए अधिकार में अपने-अपने धर्म का पालन, हिफाजत करने और प्रचार-प्रसार करने का अधिकार दिया गया है. संविधान में यह भी कहा गया है कि यदि इसमें जबरदस्ती हो, तो कड़ा विरोध हो. हम मानते हैं कि क्रिश्चियन समुदाय ने दूसरे धर्म के लोगों पर हमला नहीं किया, लेकिन मुसलमानों और क्रिश्चियनों को भी लक्ष्य बनाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में हिंसा हुई. हमने पाया कि महिलाओं के खिलाफ भी अत्याचार हुए. एक कमरे में खींचकर एक महिला के साथ बलात्कार की कोशिश की गई. दंतेवाड़ा में एक युवक की पत्नी को नंगा कर निर्वस्त्र घुमाया गया. अलग-अलग हिंसा के जरिए आदिवासियों को गांव छोड़ने मजबूर किया जा रहा है. खेती नहीं करने देने से उनके रोजगार से वंचित किया गया है. आज यह जरूरी है कि इस विवाद का निपटारा हो. हमने मुख्यमंत्री के सामने यह बातें कही है.
उन्होंने कहा कि इस मामले में कलेक्टर-एसपी ने प्रतिबंध लगाने कोशिश की है, लेकिन जिन पर हमला हुआ है, उनका कहना है कि उन्हें घंटों तक थाने में रूकना पड़ा, शिकायत होने बावजूद घर तोड़े गए, महिलाओं पर अत्याचार हुआ. फैक्ट फाइडिंग में बेला भाटिया जैसे सहयोगी रहे, उनका भी अनुभव है कि हर शिकायत पर एफआईआर नहीं होती. सही धाराएं नहीं लगती. दफनाने तक के लिए मृतकों को जगह नहीं दी जाती. यह विवाद गांवों के लोगों ने ही खड़ा किया है. खबर यह भी है कुछ बाहर के संगठनों का भी दखल है. बजरंग दल का नाम निकलकर सामने आया है. मौजूदा सत्ताधारी लोगों के करीबी भी इसमें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री से हमने आग्रह किया है कि संविधान ने जिस धार्मिक स्वतंत्रता की बातें कही है, उसे लेकर इस मामले में कड़ा संदेश जारी किया जाए. इस मामले में जल्द से जल्द आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने सही कार्रवाई नहीं की, उन पर भी कार्रवाई की जाए. देश में आज सर्व धर्म समभाव का महत्व जरूरी है. धर्म की स्वतंत्रता आदिवासियों के धर्म को भी है. हमारे निष्कर्ष से यह बात निकली है, जो हिंसा हो चुकी है, उनके प्रभावितों को मुआवजा अब तक नहीं दी गई. स्थानीय लोगों ने यह कहा है कि जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जरूरत है, मुआवजे की नहीं.
मेधा पाटकर ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति वंचना से भरपूर आज भी है. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में न्यूनतम सुविधा मुहैया कराने का मुद्दा महत्वपूर्ण है. राम वन पथ गमन उसके बाद आ सकता है. हमने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि विकास की अवधारणा पर सोचिए. आदिवासियों के गांव स्वयं निर्भर होने की संभावना है. उन्होंने कहा कि लाकडाउन में हजारों मजदूरों को छत्तीसगढ़ भेजा गया, इन लोगों को वापस न जाना पड़ा, यह जरूरी है. हम इस रिपोर्ट में एक-एक प्रकरण लाएंगे ही, साथ ही कई सुझाव भी सामने लाएंगे.
समाजिक कार्यकर्ता विमल भाई ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि आदिवासी इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मजबूत किया जाए. यदि स्वास्थ्य सेवा मजबूत है, तो हम किसी भी समस्या से मुकाबला कर सकते हैं. संविधान धर्म निरपेक्षता की बात करता है. आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता. यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि यदि हिन्दु वहां गए, तो आदिवासियों ने हिन्दू धर्म स्वीकार किया. आज इसके पीछे जो ताकतें लगी है, जो लाॅ एंड आर्डर को भी बिगाड़ना चाहती है. शिक्षा स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से ध्यान हटाकर, गैर समझ के मुद्दों को सामने लाने की कोशिश की जा रही है.
बस्तर में आदिवासियों के मुद्दों पर लंबे समय से काम करने वाली समाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया बस्तर की विस्फोटक हालातों का ब्यौरा रखते हुए कहा कि, वहां खतरा मंडरा रहा है. आगे विस्फोटक स्थिति हो सकती है. बस्तर कई तरह की तकलीफों से जूझ रहा है. आदिवासियों को आपस में लड़ाकर राजनीतिक फायदा लिए जाने की भी तस्वीर दिखती है. बस्तर में हालात नियंत्रण के बाहर नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बस्तर अब और हिंसा नहीं झेल सकता. वहां परिवार के परिवार बिखर गए हैं. बस्तर को फिर से अलग तरीके की हिंसा में न धकेला जाए. बस्तर के आदिवासियों से राजनीतिक फायदा न ढूंढा जाए. संविधान को हम आगे रखे.
वकील और पीयूसीएल से जुड़े अखिल चौधरी ने कहा कि आदिवासी इलाकों में सुविधाओं की बेहद कमी है. शिक्षा के अलावा मेडिकल सुविधाओं के विस्तार की जरूरत है. जहां तक कानूनी पहलू है, हम यह देखते हैं कि आदिवासी इलाकों में शिकायतें दर्ज नहीं जाती है. सरकार को एक ऐसा मैकेनिज्म बनाने की जरूरत हैं, जहां शिकायतों पर गंभीरता से कार्रवाई हो. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में वकीलों की भी समस्या है, ऐसे में लीगत एड का जो प्रोविजन सरकार के पास हैं, उसे वहां तक पहुंचाया जाए. आदिवासियों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जाए. वहीं समाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंघल ने कहा कि बस्तर की घटना जितनी बड़ी नहीं है, उसकी पृष्ठभूमि बड़ी है. उन्होंने अहम मुद्दे पर ध्यान खींचते हुए कहा कि स्वास्थ्य के बहाने कैसे एक बड़ा राजनीतिक दखल डाला जा रहा है, यह महत्वपूर्ण मुद्दा है.