केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Yashwant Verma)को उनके पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव पेश करने की तैयारी कर रही है, जो आगामी मॉनसून सत्र (monsoon session) में प्रस्तुत किया जा सकता है. सूत्रों के अनुसार, विपक्षी दलों के कई सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने का संकेत दिया है, जिससे यह संभावना बढ़ गई है कि प्रस्ताव को आवश्यक बहुमत प्राप्त हो सकता है. उल्लेखनीय है कि जस्टिस यशवंत के सरकारी आवास से कई बोरियों में जले हुए नोट बरामद हुए थे.

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भारत के संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश को केवल दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है. इसके लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित करना अनिवार्य है, जिसमें लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक है. इसके अलावा, दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव को मंजूरी मिलनी चाहिए.

जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई का आधार

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक इन-हाउस समिति का गठन किया था, जिसमें पंजाब-हरियाणा और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के साथ कर्नाटक हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश को शामिल किया गया. समिति ने 50 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए, और जांच पूरी होने के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को हटाने की सिफारिश की. अब सरकार उसी रिपोर्ट के आधार पर संसद में प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है.

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क्या है अगली प्रक्रिया?

1. प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत किया जाएगा.

2. लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति इस प्रस्ताव को मंजूरी दे सकते हैं.

3. इसके पश्चात, जजेस इंक्वायरी एक्ट, 1968 के अंतर्गत संसद एक तीन-सदस्यीय जांच समिति का गठन करेगी.

4. समिति की रिपोर्ट के आधार पर दोनों सदनों में मतदान किया जाएगा.

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पहले भी हटाए जा चुके हैं जज

जस्टिस वी. रामास्वामी को 1991 में उनके पद से हटा दिया गया.

जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ 2011 में राज्यसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया.

जस्टिस पीडी दिनाकरण ने भी अपने खिलाफ प्रस्ताव पेश किए जाने से पहले ही इस्तीफा दे दिया.

जस्टिस जेबी परडीवाला के खिलाफ 2015 में कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की गई.

सरकार को यह निर्णय लेना है कि प्रस्ताव को लोकसभा में पेश किया जाए या राज्यसभा में. दोनों सदनों में राजनीतिक समर्थन की स्थिति भिन्न है. सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व विपक्षी दलों के साथ लगातार संवाद कर रहा है.

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जज को हटाने का प्रस्ताव संसद में होगा पेश

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत, जब किसी जज को हटाने का प्रस्ताव किसी सदन में स्वीकार किया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन करते हैं. यह समिति उन कारणों की जांच करेगी जिनके आधार पर जज के खिलाफ महाभियोग की मांग की गई है. समिति में भारत के चीफ जस्टिस, 25 हाईकोर्ट में से किसी एक के चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं. रिजिजू ने बताया कि चूंकि यह मामला न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से संबंधित है, इसलिए सरकार चाहती है कि सभी राजनीतिक दल इसमें भाग लें.