रायपुर- लोकसभा चुनाव के लिये दोनों प्रमुुख राजनीतिक दलों ने आरक्षित सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है,लेकिन अब अनारक्षित सीटों पर उम्मीदवारी के लिये तमाम संभावनाओं पर दोनों पार्टियां गहन विचार-विमर्श में लगी हूुई हैं.पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सफलता साहू समाज को मिली थी और 6 अनारक्षित सीटों में से तीन पर साहू समाज के सांसद चुनकर आये थे,इसलिये साहू समाज इस बार भी दोनों पार्टियों से ज्यादा से ज्यादा टिकट पाने की कोशिशों में जुुटी हुई है.

पिछले लोकसभा चुनाव में बिलासपुर से लखनलाल साहू,महासमुंद से चंदूलाल साहू और दुर्ग से ताम्रध्वज साहू सांसद चुने गये थे.इसमें खास बात ये थी कि मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के एकमात्र सांसद ताम्रध्वज साहू दुर्ग से सांसद निर्वाचित हुए थे.हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी ताम्रध्वज साहू को सीएम बनाये जाने की संभावना के मद्देनजर साहू समाज का बड़ा हिस्सा कांग्रेस की ओर झुक गया था. इन्हीं बातों को आधार बनाकर साहू समाज के लोग भाजपा और कांग्रेस पार्टी पर दबाव बना रहे हैं कि उनके समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलने पर इसका लाभ पार्टी को मिलेगा,नहीं तो समाज की नाराजगी का खामियाजा भुगतने की चेतावनी भी दी जा रही है.

बात करें साहू समाज के उम्मीदवारों की,तो कांग्रेस की ओर से राजनांदगांव से भोलाराम साहू की उम्मीदवारी को करीब-करीब तय माना जा रहा है,इसके अलावा दुर्ग से ताम्रध्वज साहू या राजेन्द्र साहू में से किसी एक को उम्मीदवार बनाने की चर्चा चल रही है. ऐसे में भाजपा पर भी साहू समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का दबाव बन रहा है.भाजपा ने साहू समाज के अपने दोनों सांसदों का टिकट काट दिया है,ऐसे में समाज से ये दबाव बनाया जा रहा है कि बिलासपुर से जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक साहू को और राजनांदगांव से गोपाल साहू को टिकट दिया जाये. समाज की ओर से ये तर्क दिया जा रहा है कि इन दोनों लोकसभा क्षेत्र में साहू समाज के वोटरों की बहूुतायत है,जिसका फायदा पार्टी को चुनाव में मिल सकता है.इनके अलावा रायपुूर और महासमुंद लोकसभा में भी साहू समाज के कुछ उम्मीदवार अपने-अपने पक्ष में लाबिंग कर टिकट के लिये दबाव बना रहे हैं,

साहू समाज के अलावा कुर्मी समाज भी अपने समाज के प्रतिनिधित्व के लिये पार्टियों पर दबाव बना रहा है.सीएम भूपेश बघेल कुर्मी समाज से हैं,इसलिये सामाजिक तौर पर कम से कम दो कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट देने के लिये दबाव बनाया जा रहा है,जिनमें महासमुंद से अग्नि चंद्राकर और दुर्ग से प्रतिमा चंद्राकर का नाम लिया जा रहा है.वहीं भाजपा के ऊपर भी दबाव है कि रमेश बैस जैसे बड़े कुर्मी नेता का टिकट काटने के बाद वे समाज को कैसे संतुष्ट कर पाये. अब देखना होगा कि जातीय आधार पर बन रहे राजनीतिक दबाव को दोनों राजनीतिक दल किस तरह से हैंडल कर पाते हैं.