वैभव बेमेतरिहा रायपुर। छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज ने राजाराव पठार में आयोजित तीन दिवसीय महापंचायत में एक बड़ा फैसला किया है. समाज ने निर्णय लिया है कि उन्हें बस्तर में अर्धसैनिक बल नहीं चाहिए. बस्तर में बाहरी सुरक्षाबल की जरूरत नहीं है. अगर सरकार आदिवासियों को सुरक्षा देना चाहती है, तो राज्य सरकार स्थानीय पुलिस को ही विशेष प्रशिक्षण देकर बस्तर में तैनात करे. यह बातें सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता अरविंद नेताम ने lalluram,com  से खास-बातचीत में कही.

बस्तर में अर्धसैनिक बल की जरूरत नहीं 
उन्होंने बताया कि 8 से 10 दिसंबर तक बालोद जिला के राजाराव पठार में तीन दिनों तक समाज के लोगों ने बैठक की. महापंचायत बैठा. इस महापंचायत में आदिवासी हितों के मुद्दों को लेकर बातचीत हुई है. चर्चा में यह तय हुआ कि बस्तर में किसी भी तरह से बाहरी अर्धसैनिक बल की जरूरत नहीं है. नेताम का कहना है कि बाहरी सुरक्षा बल की जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि बाहर के जवानों को स्थानीय लोगों की समझ है नहीं है. वे यहाँ के रीति-नीति, तीज-त्यौहार को नहीं समझते, सामाजिक चीजों को नहीं समझते. इसी का परिणाम सारकेगुड़ा में दिखा है. ऐसी कई रिपोर्ट सामने आएगी तो यही दिखेगा. इसलिए समाज ने तय किया है कि बाहरी सुरक्षा बल की जरूरत यहाँ पर नहीं है.

बैलाडीला में रुख साफ करे,  शराणार्थियों के कैंप में रह रहे हैं घुसपैठी !
दूसरा बैलाडीला के मामले को लेकर भी चर्चा हुई. चर्चा में यह विचार किया गया कि सरकार बैलाडीला मामले में करना क्या चाहती है ? सरकार उसे प्राइवेट सेक्टर में देना चाहती नहीं देना चाहती यह भी स्पष्ट करे, साथ डिपॉजिट नंबर-13 की जाँच रिपोर्ट को जारी करे. तीसरा जो सबसे महत्वपूर्ण विषय पर बातचीत हुई वो है दण्डकारण्य में बसाये गए पूर्वी पाकिस्तान को लेकर थी. इसमें जिस तरह से वहाँ पर जनसंख्या शराणार्थियों को बढ़ी है उससे हमें यह आशंका है कि बहुत से सारे लोग अवैध तरीके से आकर बस गए हैं. ऐसा लगता है कि बस्तर में धर्मशाला से बुरी स्थिति है इस मामले में है. क्योंकि धर्मशाला में सबकुछ रजिस्टर्ड है. वहाँ कौन आया, कौन गया है ? इसका पूरा रिकार्ड है, लेकिन यहाँ पर ऐसा नहीं है.

ज़मीन के लिए अँग्रेजों से लड़े, तो अपनी सरकार भी लड़ लेंगे
इसके अलावा ज़मीन के मामले को लेकर भी चर्चा हुई. ज़मीन को लेकर जो सेटलमेंट होते हैं वह फिल्ड पर हो नहीं रहा. सबकुछ ऑफिस में ही हो रहा है. अमला ऑफिस में बैठकर ही काम कर रहे हैं. जो लोग तीन-चार पीढ़ी से खेती कर रहे हैं उसका रिकार्ड कहीं और है. नक्शा-खसरा सही तरीके से है नहीं. ज़मीन के मामले में आदिवासियों ने कभी समझौता नहीं किया. अँग्रेजों से लड़े फिर अपनी सरकार से तो लड़ ही सकते हैं. हमें ऐसा लगता है कि भविष्य में खनिज संसाधानों पर कब्जा करने का प्रयास हो रहा है. ज़मीन का सर्वे तो सही तरीके हुआ ही नहीं. तीन-तीन सेटलमेंट हो गया लेकिन अब तक रिकार्ड नहीं बन पाया. अँग्रेजों ने 1932 में जो सर्वे किया था वही रिकॉर्ड है.

केंद्र सरकार से कोई उम्मीद नहीं कर सकते
आज केंद्र सरकार है उससे हम बहुत ज्यादा उम्मीद कर ही नहीं सकते. नक्सली समस्या का समाधान बंदूक से हो नहीं सकता. केंद्र को लगता है कि गोली के बलबूते ही इस समस्या को हल कर सकते ऐसा संभव ही नहीं है. सच्चाई यह है कि आदिवासियों के हित से केंद्र सरकार को मतलब ही नहीं. पेसा कानून का तो आज तक क्रियानव्यन नहीं हो सका है. सरकार तो आदिवासियों से बात ही नहीं करती है. पुलिस के भरोसे समाधान कर लेना चाहते हैं. हमने तो महापंचायत में लिए गए निर्णयों से मुख्यमंत्री को अवगत करा दिया है. हम इंतज़ार कर रहे हैं कि सरकार सारकेगुड़ा, बैलाडीला मामले में, ज़मीन सेटलमेंट में, शारणार्थियों के बीच घुसपैठियों को लेकर क्या फैसला लेती है ? सरकार के फैसले का बाद समाज तय करेगा उसे क्या करना है.

बातचीत : अरविंद नेताम, संरक्षक, सर्व आदिवासी समाज और कांग्रेस नेता
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