गुरुग्राम में 12 साल पहले हुई बहुचर्चित गीतांजलि गर्ग मौत मामले में पंचकूला की CBI स्पेशल कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। ठोस सबूतों की कमी और गवाहों के विरोधाभासी बयानों के आधार पर अदालत ने गीतांजलि के पति तत्कालीन चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट रवनीत गर्ग, उनके पिता रिटायर्ड सेशन जज केवल कृष्ण गर्ग और मां रचना गर्ग को बरी कर दिया। CBI कोर्ट के जज राजीव गोयल ने फैसले में कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि मौत हत्या थी या दहेज से जुड़ी थी। अदालत ने आरोपियों को संशय का लाभ देते हुए बरी किया। फैसला सुनने के बाद CJM परिवार के साथ फूट-फूटकर रोए, जबकि आरोपियों और उनके परिजनों में राहत और भावुकता की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखी गई।
गुरुग्राम में मिला था संदिग्ध शव
17 जुलाई 2013 को गुरुग्राम के पुलिस लाइंस परेड ग्राउंड में 28 साल की गीतांजलि गर्ग का शव मिला था। उनके शरीर पर चार गोली के घाव थे और पास में रवनीत गर्ग का लाइसेंड रिवॉल्वर पड़ा था। रवनीत गर्ग उस समय जुडिशियल मजिस्ट्रेट थे, इसलिए यह मामला तुरंत सार्वजनिक और मीडिया चर्चा का केंद्र बन गया। शुरुआत में स्थानीय पुलिस ने इसे आत्महत्या माना, लेकिन हरियाणा सरकार के आदेश पर अगस्त 2013 में जांच सीबीआई को सौंप दी गई।
CBI ने लगाए थे दहेज और क्रूरता के आरोप
2016 में सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की। इस दौरान हत्या का आरोप हटा दिया गया और इसके बजाय दहेज मौत, क्रूरता और साजिश के सेक्शन शामिल किए गए। चार्जशीट में आरोप लगाया गया कि गर्ग परिवार ने गीतांजलि को दहेज के लिए प्रताड़ित किया। हालांकि, ट्रायल के दौरान मामले की मजबूती कमजोर पड़ गई, जिससे अंततः अदालत ने आरोपियों को बरी कर दिया।
मुख्य गवाह ने अदालत में पलटा बयान
मामले में सबसे बड़ा झटका तब लगा जब गीतांजलि के भाई और मुख्य शिकायतकर्ता प्रदीप अग्रवाल गवाह बनकर सीबीआई के खिलाफ बयान देने लगे। जुलाई 2018 में अदालत में उन्होंने कहा कि रवनीत गर्ग ने कभी गीतांजलि के साथ बदसलूकी नहीं की और न ही दहेज में कार या फ्लैट की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि मौत के लिए आरोपियों की जिम्मेदारी साबित नहीं हुई। इस बयान से सीबीआई का केस काफी कमजोर हो गया और ट्रायल के दौरान आरोपियों के पक्ष में मजबूती आई।
बचाव पक्ष के वकीलों ने तर्क दिया कि शादी में किसी प्रकार का झगड़ा या क्रूरता नहीं हुई थी। गीतांजलि ने मौत वाले दिन परिवार से सामान्य बातचीत की थी और कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि रवनीत गर्ग उस समय पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में 18 अन्य जजों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे, जिससे उनका एलीबाई पूरी तरह साबित हुआ। सीबीआई ने रवनीत पर पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट भी किए, लेकिन नतीजे स्पष्ट नहीं आए। इसके अलावा, दहेज की मांगों के आरोप भी कोर्ट में टिक नहीं पाए, जिससे बचाव पक्ष को मजबूती मिली।
लंबी जेल और सस्पेंशन के बाद राहत
रवनीत गर्ग को 2016 में गिरफ्तार किया गया था। वे करीब दो साल जेल में रहे और 2018 में बेल मिली। हालांकि अब वे बरी हो चुके हैं, उनकी नौकरी पर सस्पेंशन अभी भी लागू है। यह फैसला दर्शाता है कि बिना ठोस सबूतों के लंबे मुकदमे कितने भारी पड़ सकते हैं। वहीं, गीतांजलि की मौत का रहस्य आज भी अनसुलझा बना हुआ है।
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