रायपुर – 9 करोड़ की कोयला हेराफेरी के एक बड़े मामले को साबित करने में सीबीआई फेल हो गई है। ये मामला एसईसीएल विश्रामपुर का है,जहां सीबीआई ने 2014 में छापा मारकर 31 हजार टन कोयला शार्टेज होने का प्रकरण पंजीबद्ध किया था। अदालत में जब इस चर्चित प्रकरण की सुनवाई हुई,तो सीबीआई इसे साबित करने में नाकाम रहा। लिहाजा विशेष अदालत ने एसईसीएल के चार अफसरों सहित पांच लोगों को दोषमुक्त कर दिया है। वे पिछले एक साल से जेल की सलाखों के पीछे थे।
सीबीआई का यह पहला मामला है जिसमें अंडर कस्टडी ट्रायल चला और चालान पेश करने के एक साल के भीतर अदालत ने फैसला सुनाया है। सीबीआई के विशेष अदालत ने कहा है कि प्रकरण में साक्षियों की संख्या नहीं साक्ष्य की विशेषता महत्वपूर्ण होती है। अभियोजन ने ज्यादा गवाह पेश कर न्यायालय का समय बरबाद किया है।
कोल माइंस का यह दूसरा प्रकरण है जिसमें सीबीआई फेल हो गई है। पिछले कुछ सालों में सीबीआई भ्रष्टाचार के दस से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रकरणों में अपराध को साबित करने में असफल रहा है। इन प्रकरणों में देना बैंक, स्टेट बैंक, कोल माइंस के एमसी घोष प्रमुख हैं। इससे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा होने लगा है।
क्या है मामला
सीबीआई ने 2014 में 6 से 8 अगस्त के बीच एसईसीएल विश्रामपुर में छापा मारकर सरप्राइज चेकिंग की थी। इस दौरान कोल मापन में 31 हजार 211 टन कोयले की कमी पाई गई। सीबीआई ने कहा कि अभियुक्त ट्रांसपोर्टर्स के साथ षडय़ंत्र कर हजारों टन कोयला की हेराफेरी की गई थी। 11 जनवरी से 23 जनवरी 2014 के बीच फर्जी ट्रिप कार्ड के आधार पर अनाधिकृत ट्रांसपोर्टिंग के माध्यम से अभियुक्तों ने अधिक उत्पादन दर्शाया। इस तरह कोयला शार्टेज को पूरा किया गया था। इस मामले में 17 नवंबर 2014 को सीबीआई ने एसईसीएल के जीएम सहित 6 लोगों के खिलाफ भादसं की धारा 409 सहपठित 120 बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(2) सहपठित 13(1)(ग) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया।
सीबीआई के 60 गवाह भी असफल
कोयला हेराफेरी का यह मामला सीबीआई के विशेष पंकज कुमार जैन की अदालत में चला। सीबीआई ने अपने समर्थन में 60 गवाह पेश किया था। लेकिन कोई भी गवाही अदालत में ये साबित नहीं कर सका कि कोयला हेराफेरी हुई है। लिहाजा अदालत ने एसईसीएल के तत्कालीन जीएम संतोष कुमार रानू 58 वर्ष, सब एरिया मैनेजर रामबहोरी शुक्ला 57 वर्ष, कालरी मैनेजर अजय कुमार सिंह 49 वर्ष, मैनेजर सुरक्षा आशुतोष जेना 56 वर्ष और डाटा एंट्री आपरेटर सुदर्शन सेठी 49 वर्ष को भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि किसी भी प्रकरण में साक्षियों की संख्या नहीं साक्ष्य की विशेषता महत्वपूर्ण होती है। अभियोजन संक्षिप्त साक्षियों का चुनाव कर कम समय में परिणाम तक पहुंचा जा सकता है। कोल मापन के बिन्दू पर अभियोजन ने ज्यादा साक्षी पेश कर अदालत का समय का अपव्यय किया है। अभियोजन के पक्ष में ज्यादा साक्षी पेश कर संदेह को विघटित नहीं किया जा सकता है।
इस पूरे मामले पर अधिवक्ता प्रशांत बाजपेयी ने कहा कि सीबीआई 9 करोड़ का कोयला घोटाला अदालत में साबित करने में नाकाम रही है। 60 गवाह पेश करने के बावजूद भी कोर्ट ने एक साल के भीतर फैसला सुनाया है।