Hassan Nasrallah killed: इजराइली सेना ने लेबनान की बेरूत में स्थित हिजबुल्लाह (Hezbollah) के मुख्यालय पर अब तक का सबसे बड़ा हमला करके हिजबुल्ला चीफ हसन नसरल्लाह समेत कई लोगों को मार गिराया। नसरल्लाह की मौत के बाद से लेबनान और ईरान समेत कई देशों में शोक की लहर है। शिया इस्लाम (shia Islam) से ताल्लुख रखने वाले मुस्लिम नसरल्लाह की मौत से बाद से गमगीन है। वहीं सुन्नी बहुल (Sunni Islam) सीरिया समेत कई मुस्लिम देशों में हसन नसरल्लाह की मौत पर जश्न का माहौल है। हिजबुल्ला चीफ की मौत की खबर जैसे ही सामने आई, लोग सड़कों पर निकलकर जमकर जश्न मनाया। साथ ही पटाखे फोड़े।

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हसन नसरल्लाह का कद अरब वर्ल्ड में एक नायक का है और इस नायकत्व के पीछे की सबसे बड़ी वजह है, इजरायल के सामने उसका प्रतिरोध। वहीं इसी अरब वर्ल्ड में बहुत सारे लोग नसरल्लाह को खलनायक भी मानते हैं। आइए समझते हैं नसरल्लाह को लेकर अरब के मुसलमान दो मत क्यों रखते हैं…

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हसन नसरल्लाह के नेतृत्व में हिज्बुल्लाह ने साल 2000 में इजरायली सेना को दक्षिण लेबनान से वापस जाने के लिए मजबूर किया, जो 18 साल तक यहां डेरा डाले हुई थी। नसरल्लाह को नायक मानने वालों की नजर में उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2006 का वह युद्ध है, जिसमें हिज्बुल्लाह ने 33 दिनों तक इजरायली सेना का डटकर सामना किया। युद्ध समाप्त होने के बाद, हसन नसरल्लाह को अरब वर्ल्ड में एकमात्र ऐसे नेता के रूप में सम्मानित किया गया, जो सफलतापूर्वक इजरायल के सामने खड़ा हुआ।

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हसन नसरल्लाह का जन्म 31 अगस्त 1960 को एक गरीब शिया परिवार में हुआ था। वह 9 भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। उसके पिता लेबनान की राजधानी बेरूत के शारशाबुक इलाके में रहते थे। वे फल-सब्जी बेचकर परिवार का गुजर-बसर करते थे।

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नसरल्लाह ने खुद को बार-बार ईरान की शह पर काम करने वाले संगठन के नेता के रूप में पेश किया। वह उन संघर्षों में अपने संगठन के साथ भागीदार रहा, जिसने इस्लामिक वर्ल्ड को सुन्नी-शिया आधार पर विभाजित किया। बता दें ईरान एक शिया बाहुल्य देश है और मिडिल ईस्ट में सऊदी अरब समेत सुन्नी बाहुल्य अन्य देशों के साथ उसकी अदावत किसी से छिपी नहीं है। हिज्बुल्लाह भी लेबनान का एक शिया इस्लामी राजनीतिक दल और चरमपंथी समूह है। अतीत में कई ऐसे मौके आए जब शिया और सुन्नी के बीच बंटे अरब वर्ल्ड में ईरान और हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्ला शियाओं के पक्ष में खड़े दिखे।

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सीरियाई गृह युद्ध में की बशर अल-असद की मदद

साल 2011 तक अरब स्प्रिंग का प्रभाव सीरिया में दिखने लगा। सीरिया एक सुन्नी मुस्लिम बाहुल्य देश है, जहां शिया मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। वहां मार्च 2011 में इसी आधार पर गृह युद्ध शुरू हुआ। दरअसल, ​बशर अल-असद 2000 में सीरिया के राष्ट्रपति बने, जो खुद शिया मुस्लिम हैं। करीब एक दशक बाद सीरिया के सुन्नियों ने शिया पक्षपात का आरोप लगाते हुए बशर सरकार का विरोध शुरू किया। हसन नसरल्लाह ने बशर अल-असद के शासन को तख्तापलट से बचाने में मदद करने के लिए हिज्बुल्लाह के हजारों लड़ाकों को सीरिया भेजा। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 हजार हिज्बुल्लाह लड़ाके सीरिया में तैनात किए थे।

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हिज्बुल्लाह ने ​बशर अल-असद सरकार के खिलाफ विद्रो​ह करने वाले हजारों सुन्नी सीरियाई नागरिकों को मार डाला। सीरिया के गृह युद्ध में हिज्बुल्लाह की प्रमुख भूमिका इजी अलेप्पो में घेराबंदी के दौरान देखी गई थी, जब उसके लड़ाकों ने बशर अल-असद की सेना के साथ मिलकर बच्चों सहित हजारों नागरिकों को मार डाला था। जून 2013 में हिज्बुल्लाह ने अल कुसैर शहर छोड़कर भाग रहे सीरियाई नागरिकों की हत्याएं कीं। अक्टूबर 2013 में हिज्बुल्लाह ने अल हिसेनियाह में नागरिकों पर बेरहमी से हमला किया। अल जबादानी में सैकड़ों नागरिक मारे गए। हसन नसरल्लाह की मौत की खबर पर नाचने और जश्न मनाने वाले सीरियाई विद्रोही उसे सुन्नी मुसलमानों का कातिल मानते हैं। सीरियाई विद्रोहियों का मानना ​​है कि जब हिज्बुल्लाह के कट्टर लड़ाके मैदान में उतरे तो वे अपने देश को ​बशर अल-असद की तानाशाही से मुक्त कराने की कगार पर थे।

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