रायपुर- क्या छत्तीसगढ़ में खाद्य सुरक्षा संकट में है? दरअसल यह सवाल उस चिट्ठी में उठाया गया है, जिसे भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने मुख्य सचिव को भेजा है. प्राधिकरण के सीईओ और भारत सरकार में सचिव पवन अग्रवाल ने मुख्य सचिव को भेजी गई चिट्ठी में लिखा है कि- राज्य का प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं है.
प्राधिकरण के सीईओ पवन अग्रवाल की मुख्य सचिव अजय सिंह को भेजी गई चिट्ठी में लिखा गया है कि- समीक्षा में यह बात सामने आई है कि प्रदेश में 27 जिले औऱ 146 सी डी ब्लाॅक है. इनमें 2 अभिहित अधिकारी औऱ 58 खाद्य सुरक्षा अधिकारी तैनात है. जबकि आदर्श रूप में राज्य में 30 अभिहित अधिकारी और 112 पूर्णकालिक खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की जरूरत है. कर्मचारियों की गंभीर कभी स्पष्ट रूप से राज्य में बहुत खराब प्रवर्तन और निगरानी गतिविधियों का कारण है. यह खाद्य सुरक्षा को संकट में डालने जैसा है. चिट्ठी में छत्तीसगढ़ को गुजरात, केरल, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश जैसे कई राज्यों का उदाहरण देकर बताया गया है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत इन राज्यों के हर जिलों में कम से कम एक अभिहित अधिकारी की नियुक्ति की गई है.
प्राधिकरण के सीईओ पवन अग्रवाल ने लिखा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 के प्रावधानों के तहत कर्मचारियों की कमी के विषय पर संसद की स्थायी समिति और कैग ने भी चिंता जताई है. इस मुद्दे को लेकर जनवरी 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों और स्वास्थ्य सचिवों की राउंड टेबल मीटिंग में भी चर्चा कर अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप स्थायी व्यवस्था बनाए जाने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया था. हाल ही में 14 जून को हुई खाद्य प्राधिकरण की बैठक में पदों को जल्द भरे जाने की सिफारिश राज्यों से की गई है.
छत्तीसगढ़ के 27 जिलों की जिम्मेदारी सिर्फ दो अधिकारियों को ही क्यों ?
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की मुख्य सचिव को लिखी गई चिट्ठी के बाद राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडेय ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किया है. पांडेय ने पूछा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 के प्रावधानों के तहत सभी जिलों में एक अभिहित अधिकारी की नियुक्ति की जानी है, तो फिर छत्तीसगढ़ में नियमों को ताक पर रखकर आखिर क्यों स्वास्थ्य विभाग से प्रतिनियुक्ति पर लाए गए दो अधिकारियों डाॅ. अश्वनी देवांगन और डाॅ. अजय शंकर कन्नौजे के बूते काम किया जा रहा है. अधिकारियों को अगस्त 2016 में एक साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर लिया गया था. मई 2017 में प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म हो चुकी है, ऐसे में किन नियमों के तहत दोनों अधिकारी खाद्य विभाग में सेवा दे रहे हैं.
वीरेंद्र पांडेय ने बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हुए आऱोप लगाया है कि जब तक ऊपर के प्रभावशाली लोगों का संरक्षण नहीं होगा, तब तक प्रतिनियुक्ति की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती. पांडेय ने बताया कि गुटखे पर सरकारी प्रतिबंध लगने के बाद राजधानी के रांवाभाठा इलाके में जयशंकर दोषी नाम के ट्रांसपोर्टर के गोडाउन से साढ़े तीन करोड़ रूपए का गुटखा पकड़ा था. न तो उसका सैंपल लिया गया और न ही जप्त गुटखे को न्यायालय में पेश किया गया. मामला बड़ा था, लिहाजा न्यायालय में पेश करने की जरूरत थी. लेकिन अभिहित अधिकारियों ने एसडीएम कोर्ट में इस मामले को पेश किया, जहां से मामूली जुर्माने के बाद जिम्मेदारों को छोड़ दिया गया. पांडेय ने कहा कि साढ़े तीन करोड़ के गुटखे को कोर्ट की अनुमति के बगैर नष्ट नहीं किया जा सकता, लेकिन उसे जलाने की बात कही गई.
वीरेंद्र पांडेय ने कहा कि नए अधिनियम में किसी भी तरह के लायसेंस के लिए आनलाइन आवेदन का प्रावधान है. लेकिन जब से डाॅ. अश्वनी देवांगन और डाॅ. अजय शंकर कन्नौजे को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है. आनलाइन आवेदन को तब तक होल्ड पर रखा जाता है, जब तक आवेदक मौके पर मौजूद न हो. पांडेय का आरोप है कि आवेदक से लायसेंस के ऐवज में सौदेबाजी कर हार्ड काॅपी पर दस्तखत कर लायसेंस दिया जाता है. लायसेंस में डिजीटल सिग्नेचर नहीं किया जाता.