रायपुर। मोदी सरकार की ओर से कोल ब्लॉक की नीलामी की प्रस्तावित नई नीति का छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कड़ा विरोध किया है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का कहना है कि यह नीति जल-जंगल-जमीन और पर्यावरण के विनाश के साथ राज्यों के अधिकारों पर हमला हैं. उन्होंने बताया कि यह नीति कोयले के निर्यात को अनुमति देकर वैश्विक पूंजी के रास्ते खोलेगी, जिससे स्थानीय समुदाय के जीवन- यापन के संसाधनों को छीनने की प्रक्रिया और तेज होगी .
आलोक शुक्ला ने कहना है कि मोदी सरकार के द्वारा कोयले के व्यावसायिक उपयोग के लिए कोल ब्लॉको कि नीलामी हेतु एक नई नीति का प्रारूप बनाया गया है, जिस पर 31 जनवरी तक सुझाव आमंत्रित किये गए थे. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन इन प्रावधानों का खुलकर विरोध करता हैं, क्यूंकि इन प्रावधानों के अनुसार कोल ब्लॉको की नीलामी कि प्रक्रिया सिर्फ एक छलावा रह जाएगी. दरअसल यह कार्पोरेट के हाथों बहुमूल्य खनिज को कौड़ियो के मोल सौंपने एवं उसके मनचाहे उपयोग, यहाँ तक कि विदेशो में निर्यात कि अनुमति के लिए बनाया गया हैं. ये स्पष्ट रूप से संघीय ढांचे पर हमला कर राज्यों के अधिकारों को छीनेगा, साथ ही पर्यावर्णीय विनाश और आदिवासी इलाकों में कार्पोरेट लूट को और अधिक तेज करेगा.
आलोक शुक्ला के मुताबिक प्रारूप के अनुसार कोल ब्लॉक की नीलामी का प्रस्तावित प्रक्रिया देश की संवैधानिक व्यवस्था एवं प्राकृतिक संसाधनों के उचित मानपदंडों की पूर्णतया अनदेखी करता है, जैसे –
• नीलामी प्रक्रिया का सामाजिक और पर्यावर्णीय स्वीकृति कि प्रक्रियाओ के साथ जुड़ाव का अभाव – नीलामी सूची में शामिल अधिकतर कोल ब्लॉक संविधान कि पांचवी और छठवी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ विभिन्न स्वीकृति के पूर्व ग्रामसभाओ की स्वीकृति अनिवार्य हैं. इसलिए नीलामी के पूर्व स्वीकृति प्रक्रियाओ को पूरा करना आवश्यक हैं. परंतु इस नीति में इसका कोई प्रावधान नहीं है जिससे समुदाय और कम्पनियों के बीच न सिर्फ टकराव बढेगा, बल्कि गलत तरीके से दबाव पूर्वक स्वीकृतियों को हासिल किया जायेगा, जहाँ समुदाय का विरोध हैं उन कोल ब्लाकों कि नीलामी नहीं होनी चाहिए. इसके साथ ही हसदेव अरण्य जैसे पर्यावर्णीय संवेदनशील क्षेत्रों में कोल ब्लॉक कि नीलामी/आबंटन पर पूर्ण प्रतिबंध आवश्यक हैं.
• कोयले के सिर्फ राष्ट्रीय हित में उपयोग की बाध्यता का कोई प्रावधान नही – देश में अधिकतर कोयला जैव विवधता से परिपूर्ण सघन वन एवं आदिवासी क्षेत्रों में उपलब्ध हैं इसलिए इसका उपयोग सिर्फ जरुरत के लिए देश हित में होना चाहिए परन्तु इस बाध्यता को ख़त्म कर निर्यात की अनुमति दी गई है l यह हमारे क्लाइमेट चेंज पर की गईं प्रतिबद्धताओं के भी खिलाफ है l कोल इण्डिया ने विजन 2030 दस्तावजे निकाला हैं जिसके अनुसार अभी तक आवंटित किये गए कोल ब्लॉक देश कि वर्ष 2030 तक कि कोल जरुरत के लिए पर्याप्त है l इसलिए नये कोल ब्लॉक के आवटन कि आवश्यकता नही हैं.
• नीलामी कि प्रक्रिया इस तरह बनाई गई हैं कि अधिकतम की जगह न्यूनतम राजस्व कि प्राप्ति होगी – पूर्व की नीलामी कि प्रक्रियाओं में न्यूनतम बोलिदारो कि संख्या 4 – 5 थी उसे कम करके सिर्फ 2 कर दिया गया हैं इससे प्रतिस्पर्धा घटेगी और राजस्व कि आय भी कम होगी. नीलामी में प्रति टन बेस प्राइस को बदलकर राजस्व शेयर का 4 प्रतिशत बेस प्राइस बनाया गया हैं, जोकि न सिर्फ बहुत कम है, इसका आंकलन ही बहुत कठिन हैं.
• अन्य खनिज की तरह प्रौस्पेक्टिंग-कम-माइनिंग लाइसेंस का प्रावधान – कोयला जैसे खनिज जो सिम के रूप में एक जगह अधिक मात्रा में उपलब्ध होता हैं, उसका प्रस्पेक्टिंग कम माइनिंग लाइसेंस का प्रावधान न सिर्फ अनावश्यक हैं बल्कि शासन कि निगरानी तंत्र के लिए भी खतरनाक हैं. इससे खनिज कि गुणवत्ता, उपलब्धता और उत्पादन के आंकड़ो में फेरबदल कि सम्भावना होगी.
प्रोस्पेक्टिंग के लम्बे अनुभव वाली शासकीय संस्थाओं कि जगह अनुभवहीन निजी संस्थाओ से जोखिम बढेगा, क्योंकि प्रौस्पेक्टिंग माईनिंग के मुक़ाबले कहीं अधिक क्षेत्र में होती है, इससे व्यर्थ ही अधिक क्षेत्र का दोहन होगा.
• राज्य सरकारों के अधिकारों को छीनकर संघीय ढांचे पर हमला – प्रस्तावित नीलामी प्रक्रिया और खनिज कानून (संशोधन) अध्यादेश 2020 में खनिज संसाधन के अभिशासन में राज्य कि भूमिका और उसकी शक्तियों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. खनिज संसाधनों पर राज्य के स्वामित्व को समाप्त करना संघीय ढाँचे पर हमला है. साफ़ तौर पर खनिज संसाधन पर नियंत्रण को केंद्रीयकृत किया जा रहा है जिस से राज्य के राजस्व में प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे.
साथ ही इस पूरी प्रक्रिया पर राय और कमेंट आमंत्रित किया गया है, किन्तु इसके व्यापक प्रभावों को देखते हुए इस पर सभी समुदायों, राज्यों और अन्य हित समूहों की भागीदारी ली जानी चाहिए, जो नहीं हो रहा है. आवश्यक है कि इस पूरी प्रक्रिया के संबंध में मंत्रालय व्यापक सार्वजनिक चर्चा समस्त जानकारी की सहज उपलब्धता के साथ आयोजित करे. अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों से केवल व्यावसायिक मुनाफे के लिए इसके व्यापक प्रभावों की अनदेखी कर इस प्रस्तावित प्रक्रिया को आगे नहीं बढाया जाना चाहिए.