रायपुर। खरीफ के इस सीज़न में रासायनिक खादों की कमी होने की पूरी संभावना है. कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है. उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि राज्य को जितनी जरुरत है, उतनी आपूर्ति केंद्र सरकार नहीं कर रही है. मई के महीने में डीएपी और एनपीके खाद की आपूर्ति बेहद कम रही. लेकिन कंपनियों का कहना है कि 15-20 दिन के बाद ही आपूर्ति मांग के मुताबिक हो सकेगी.
चूंकि राज्य में इसी दौरान खरीफ के लिए रासायनिक खाद की ज़रुरत होती है, लिहाज़ा इस साल किसानों को खाद की किल्लत रहेगी. डीएपी में सब्सिडी बढ़ाने की मांग करने वाले कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा है कि केंद्र से रासायनिक खादों का आवंटन कम हो रहा है. उन्होंने कहा कि फर्टिलाइज़ का कंट्रोल केंद्र सरकार के हाथ में है. उन्होंने मांग की है कि छत्तीसगढ़ की जरूरतों को केंद्र सरकार को पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में ग्राम पंचायतों में वर्मी कंपोस्ट के रुप में विकल्प के तौर पर तैयार है.
राज्य के इफको के प्रमुख एसके चौहान के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में फॉस्फोरस युक्त खाद के कच्चे माल की कीमतें काफी बढ़ गई थी. करीब दोगुने से ज़्यादा. जिससे इसके दाम बढ़ गए. कंपनियों ने उस समय खाद बनाने का जोखिम नहीं उठाया. सरकार ने जब डीएपी पर सब्सिडी बढ़ाई तब जाकर कंपनियों ने कच्चे माल को मंगाकर खाद बनाना शुरु किया. लेकिन इस दौरान 10-15 दिन का जो समय चला गया उसमें उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई. चौहान का कहना है कि मई में छत्तीसगढ़ को जितने खाद की जरुरत थी, कंपनियां उतनी आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं. संकट फास्फोरस युक्त रासायनिक खादों को लेकर ज़्यादा है.
जानकारों के मुताबिक बड़ी कंपनियों ने राज्य में 7 से 10 हज़ार टन डीएपी और एनकेपी वाली खादों की आपूर्ति में कमी आई है. जानकारों के मुताबिक सरकार ने खरीफ से पहले 19 मई को सब्सडी बढ़ाई जबकि इस पर फैसला काफी पहले हो जाना था. इस दौरान खाद की फैक्ट्रियों में सबसे ज़्यादा उत्पादन होता है. लेकिन कंपनियों ने अपनी उत्पादन इकाइयों को इस दौरान कच्चे माल के बढ़े दाम के मद्देनज़र या तो बंद रखा या बहुत कम कर दिया. एक निजी कंपनी के बड़े अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि उन्हें ये बात समझ आ गई थी कि 1900 रुपये में किसान डीएपी नहीं खरीदेगा. इसलिए उन्होंने ये फैसला किया था. इसकी वजह से मई में खाद की किल्लत रही. अंतर्राष्ट्रीय माहौल को देखते हुए कंपनियों ने कॉकस बनाकर यूरिया की आपूर्ति भी प्रभावित की है. जिसके चलते यूरिया की आपूर्ति में आंशिक असर पड़ सकता है.
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