महाकुंभ में हर रोज करोड़ों श्रद्धालु पहुंचकर गंगा स्नान कर रहे हैं. अब तक 54 करोड़ से अधिक लोगों ने गंगा में स्नान किया है. इस बीच गंगा-यमुना नदी के पानी को लेकर मंगलवार को सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई. रिपोर्ट पेश कर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को सूचित किया है कि दोनों नदीं गंगा-यमुना का पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं है. अब इस रिपोर्ट पर केंद्र और राज्य के बीच टकराव की स्थिति दिख रही है. दोनों की रिपोर्ट एक दूसरे से मेल नहीं खा रही है. मामले पर एनजीटी में बुधवार को सुनवाई हुई. जिसमें UPPCB ने CPCB रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए समय मांगा है.

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यूपी सरकार ने एनजीटी को बताया कि वो CPCB की रिपोर्ट की जांच करेगी. मामले पर अब अगली सुनवाई 28 फरवरी को होगी. सीपीसीबी की रिपोर्ट को लेकर एक प्रोफेसर का कहना है कि अगर ऐसे पानी में नहाया जाता है या इसे पीया जाता है तो बीमारी पैदा करेगा. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या यूपी सरकार ने करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का काम किया है?

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CPCB ने दाखिल की है याचिका

बता दें कि महाकुंभ के दौरान गंगा-यमुना के पानी की गुणवत्ता को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने रिपोर्ट दाखिल की है. जिसमें बताया गया कि 73 अलग-अलग जगहों से गंगा और यमुना नदी के पानी के सैंपल लिए गए थे. जिनको 6 पैमानों पर जांचा गया है. जांच में पाया गया कि पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से काफी अधिक मिला है.

UPPCB ने नहीं किया NGT के निर्देश का अनुपालन

सामान्य तौर पर एक मिलीलीटर पानी में 100 फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं. लेकिन अमृत स्नान से एक दिन पहले यमुना नदी के सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 2300 पाया गया. वहीं संगम के सैंपल में 2000 फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए. जो टोटल फीकल कोलीफॉर्म 4500 है. इतना ही नहीं कई जगहों से लिए गए सैंपल में भी फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया काफी अधिक पाए गए. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि पानी को बिना प्यूरिफिकेशन और डिसइंफेक्ट किए नहाने के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने समग्र कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के एनजीटी के निर्देश का अनुपालन नहीं किया है.