रायपुर. प्रदेश में जन स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने बीमा कंपनियों को इससे बाहर निकाल दिया है. इस तरह करीब 250 से 300 करोड़ रुपये सालाना बचाकर इसका लाभ जनता तक पहुंचाने की मंशा दिखाई है.
छत्तीसगढ़ सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में कुल छह योजनाएं चला रही थीं. जिसमें आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, संजीवनी सहायता कोष, मुख्यमंत्री बाल ह्रदय सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (चिरायु) हैं.
इन योजनाओं में 50 हज़ार तक का इलाज इंश्योरेंस मॉडल पर और उससे ज़्यादा ट्रस्ट मॉडल से चला रही थी. कैबिनेट ने अब इंश्योरेंस मॉडल को बंद करके पूरा इलाज ट्र्स्ट मॉडल पर चलाने का ऐलान किया है. इसके अलावा गंभीर बीमारियों के इलाज में खर्च की सीमा बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिये हैं.
इसके लिए सालाना सरकार 845 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी. इसमें से केंद्र का योगदान 283 करोड़ रुपये का था जिसमें से आयुष्मान योजना के लिए 277 करोड़ रुपये का प्रावधान था. बाकी 562 करोड़ राज्य अपने मद से देती थी. इसमें से बीमा कंपनियों को करीब 720 करोड़ रुपये का भुगतान प्रीमियम के रुप में होता था. जबकि करीब 15 प्रतिशत राशि यानि करीब बची हुई सवा सौ करोड़ राशि उनके प्रशासकीय लागत मद में जाती थी. इस तरह सरकार ने बीमा कंपनियों को बाहर करके सीधा 125 करोड़ रुपये बचा लिए.
इसी तरह हर साल बीमा के प्रीमियम की राशि कंपनियां 200 से 300 रुपये बढ़ा ले रही थी. इन्श्योरेंस कंपनियों ने अब तक सरकार से 9 राउंड में सरकारी स्कीमों के लिए पैसे लिए हैं. चूंकि ये राशि सालाना भुगतान नहीं होती थी. इसलिए सरकार ने प्रीमियम के रुप में दी जाने वाली राशि की गणना राउंड में की है.
पांचवें राउंड में 55 लाख परिवारों को बीमा के दायरे में लाते हुए 366 रुपये प्रति परिवार की दर से इंश्योरेंस कंपनियों को दिए गए. जनवरी 2017 से दिसंबर 2017 के दौरान सातवें राउंड में प्रीमियम की दर 609 रुपये हो गई. अक्टूबर 2017 सितंबर 18 तक चले 8 वें राउंड में प्रीमियम की दर 804 रुपये हो गई. जबकि 9वें राउंड में सितंबर 2018 से सितंबर 2019 के दौरान ये प्रीमियम करीब 1100 रुपये का हो गया था. उम्मीद की जा रही थी इस साल बीमा प्रीमियम की दर 1300 से 1400 रुपये के बीच होती. यानि इस साल प्रीमियम की दर करीब 150-200 करोड़ बढ़ जाती. इस तरह सरकार ने प्रीमियम की बढ़ने की संभावित ये राशि भी बचा ली.
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बताते हैं कि इस तरह सरकार ने बीमा कंपनियों को बाहर करके करीब 25 फीसदी राशि बचा ली. जो लोगों के इलाज में सीधे खर्च कर दी जाएगी.
दरअसल, राज्य में बीमा के जो आंकड़े हैं वो बेहद चौंकाने वाले हैं. पिछले साल राज्य में बीमा कंपनियों ने करीब 7.20 लाख क्लेम स्वीकार किए. जिसमें से 5.60 लाख क्लेम प्राइवेट हास्पिटलों का था जबकि 1.62 लाख क्लेम सरकारी अस्पतालों का था.
दिलचस्प बात है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने वाले कुल 12 लाख मरीज़ों ने बीमा के लिए दावा किया था. जिसमें से केवल 1.62 लाख स्वीकृत किए गए. बाकी 10 लाख अस्वीकृत हो गए. लिहाज़ा सरकार ने तय किया कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृण करके वहां ज़्यादा पैसे खर्च किया जाए.
स्वास्थ्य विभाग ने बीमा कंपनियों को हटाने के फैसला की एक वजह दुनिया के तमाम देशों में स्वास्थ्य बीमा का बुरी तरह धराशाई होना है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है. अमेरिका में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर 10 हज़ार डॉलर खर्च किये जाते हैं लेकिन वो टॉप 25 में भी नहीं है.
जबकि सरकारी खर्चे से स्वास्थ्य को चलाने वाले ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति 5 हज़ार डॉलर खर्च किया जाता है और वो इस क्षेत्र में दुनिया के टॉप 5 देशों में शुमार है. जर्मनी और फ्रांस में स्वास्थ्य सुविधाएं बीमा आधारित हैं लेकिन वो सरकारी हैं. जबकि थाइलैंड और क्यूबा जैसे देश में सरकारी व्यवस्था के ज़रिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों को मयस्सर है.