रायपुर। अजीत जोगी ने भूपेश सरकार को वित्तीय अवस्था को लेकर सुझाव दिया है। अजीत जोगी ने अपने सुझाव में जो कहा वो हूबहू उसी रूप में यहाँ प्रस्तुत है-
न तो मैं निजी क्षेत्र के खिलाफ हूं और न ही मैं लोक कल्याण से समझौता करना चाहूंगा। उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिए राज्य द्वारा निजी क्षेत्र के विशेषज्ञता और क्षमताओं का उपयोग किया जाना चाहिए। आखिरकार, सार्वजनिक क्षेत्र अकेले इतने विशाल राष्ट्र के विकास इंजन को नहीं चला सकता है। जबकि पीएसयू परियोजना प्रभावित लोगों के रिसाव और कल्याण के लिए सीमित संसाधनों के इष्टतम उपयोग की निगरानी कर सकता है, निजी संस्थाएं वो गति और क्षमता मला सकती हैं जो अक्सर सरकार द्वारा नियंत्रित व्यवस्थाओं में देखने को नहीं मिलती।
उदाहरण के लिए, केंद्र ने भ्रष्टाचार से बचने के लिए और सबको लाभ दिलाने के उद्देश से सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) को प्राकृतिक संसाधन आवंटित किए। लेकिन सवाल यह है कि- क्या सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई अपनी सभी संपत्तियों पर खनन का लाभ उस सम्पत्ति के सभी भागीदारियों तक पहुँचा पा रही है? जवाब सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है: नहीं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक अध्ययन (Ref: http://prsindia.org/parliamenttrack/budgets/chhattisgarh-budget-analysis-2019-20) के अनुसार, छत्तीसगढ़ ने 2018-19 के बजट में 4,445 करोड़ रुपये के राजस्व अधिशेष का अनुमान लगाया था। हालाँकि यह पाया गया कि ये अधिशेष 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार 6,342 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे में बदल गया। मतलब सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ की जनता का 10,787 करोड़ रूपये का नुक़सान हुआ। इस पैसे से सरकार बड़ी आसानी से किसानों का 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान ख़रीद लेती। इसके लिए आख़िर दोषी कौन है? राज्य में संचालित PSU न केवल छत्तीसगढ़ को उसके अधिकार की खनिज रॉयल्टी से वंचित कर रहे है बल्कि ठेके प्रथा और आउट्सॉर्सिंग के माध्यम से सीधे रोज़गार और राजस्व विनिवेश में विगत 3 वर्षों में आधे से भी अधिक कटौती कर चुके हैं। ये अक्षम्य है।
केवल पीएसयू होने के नाते पीएसयू को खुली छूट दे देने से काम नहीं हो सकता। समाधान उचित और पारदर्शी प्रतिस्पर्धा के माध्यम से निजी क्षेत्र के तकनीकी और व्यावसायिक विशेषज्ञों की सहायता लेना है जो अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति व्यक्ति को परियोजना का सामाजिक और आर्थिक लाभ दिलाने में दक्ष और जवाबदार रहे। हाल के दिनों में, हमने प्रगतिशील एमडीओ (माइन डेवलपर और ऑपरेटर) मॉडल द्वारा दिए गए परिणामों को देखा है। इसको और कारगर बनाया जा सकता है। इस मॉडल के अंतर्गत अगर राज्य सरकारें खुद से आगे आकर स्थानीय भागीदारियों के लिए रोज़गार, आर्थिक-सामाजिक लाभ और पर्यावरण संरक्षण के स्पष्ट मापदण्डों को वैधानिक रूप से पारित कर देती है, तो निश्चित रूप से इसका लाभ छत्तीसगढ़ जैसे खनिज-सम्पन्न राज्यों में सबको मिलेगा और हम लोप-पक्षीय विकास- जिसे मैं अमीर धरती, गरीब लोग कहता हूँ- के अभिशाप से मुक्त हो पायेंगे। निजी भागीदारी से रॉयल्टी से बेहतर कर और राजस्व का उपयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए अन्य सरकारी कार्यक्रमों में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए किया जा सकता है।
यदि हम अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर करने के लिए रोज़गार, राजस्व और रॉयल्टी को आकर्षित करना चाहते हैं- और अमीर धरती के अमीर लोग बनना चाहते हैं- तो राज्यों को सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा निवेश को बढ़ावा देना ही होगा।