रायपुर. सरकार ने ओबीसी रिजर्वेशन पर कमर कस ली है. सरकार ने इसे 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने और  आरक्षित रुप से कमज़ोर तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण के लिए कानूनी प्रावधान करने जा रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ हुई मंत्रियों की बैठक में इस पर चर्चा की गई. जिसमें तय किया गया कि राज्य में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पीडीएस के डाटा को आधार बनाया जाएगा. गांवों में ओबीसी तबके की स्थिति का आकलन प्रदेश के हर ग्रामपंचायतों में गांधी जयंती 2 अक्टूबर को होने वाली ग्राम सभाओं में किया जाएगा.

राज्य सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के लिए पीडीएस सिस्टम के आंकड़ों को आधार बनाएगी. राज्य में पिछड़ा वर्ग के 31 लाख 52 हज़ार 329 परिवार के 1 करोड़ 18 लाख 26 हज़ार 464 सदस्य गरीबी रेखा के नीचे हैं जबकि 3 लाख 95 हज़ार 444 परिवार के 12 लाख 55 हज़ार 972 लोग गरीबी रेखा से ऊपर हैं. यानि ओबीसी की करीब 88 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. चूंकि राज्य में करीब 99 फीसदी राशन कार्ड  केंद्र सरकार के आधार से जुड़े हैं. ये आंकड़े प्रामाणिता को पुख्ता बनाएगें.

राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का फैसला उस वक्त कर रही है, जब राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस के कई पदाधिकारी आरक्षण को आर्थिक आधार पर करने की बात कहकर नई बहस को जन्म दे रहे हैं. ज़ाहिर है इस फैसले का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ने की संभावना है.  गौरतलब है कि मोदी ने आर्थिक आधार पर कमज़ोर तबके को दस फीसदी आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय किया है. इसके लिए उन्होंने संवैधानिक संशोधन कराया. संविधान में पहले केवल सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर आरक्षण देने का प्रावधान था. लेकिन जनवरी 2019 में मोदी ने आरक्षण के आधार में आर्थिक पिछड़ापन भी संविधान के 124 वें संशोधन के ज़रिए शामिल किया गया.

इसी साल छत्तीसगढ़ में सत्ता में आने के बाद 15 अगस्त 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समूचे आरक्षण को 58 फीसदी से बढ़ाकर 82 फीसदी करने की घोषणा की थी. इस पर अमल करते हुए राज्य सरकार ने 4 सितबंर 2019 को अध्यादेश लाकर इस फैसले को लागू कर दिया.

इस फैसले के खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट और मौजूदा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कबीर पीठ के अध्यक्ष कुणाल शुक्ला हाईकोर्ट गए. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम रामचंद्रन ने 4 अक्टूबर को इस फैसले पर रोक लगा दी और 27 फऱवरी 2020 को राज्य सरकार के अध्यादेश को रद्द कर दिया. इस अध्यादेश के रद्द होने के साथ ही राज्य में एससी और आर्थिक रुप से कमज़ोर तबके का बढ़ा हुआ आरक्षण भी रद्द हो गया.

कुणाल शुक्ला के वकील पलाश तिवारी ने बताया कि उन्होंने कोर्ट में इंदिरा साहनी केस 1992 और एन नागराज मामले में आए जजमेंट को आधार बनाया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी निर्धारित कर दी है. पलाश ने कहा कि राज्य सरकार उसी स्थिति में इससे ज़्यादा आरक्षण दे सकती है जब वो ये साबित करे कि ओबीसी तबके को शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से पर्याप्त प्रतिनिधित्व (Adequate Representation) नहीं मिल रहा है. इस बाबत अध्ययन के लिए राज्य सरकार ने छबिलाल पटेल कमेटी का गठन किया था.

पलाश तिवारी का कहना है कि राज्य सरकार ने सुनवाई में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़े पेश किये. जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया. पलाश तिवारी की दलील है आरक्षण बढ़ाना वोटबैंक का आधार बन चुका है. इसे बढ़ाने से आरक्षित तबके इसके आदी होते जा रहे हैं. राज्य सरकार  के आरक्षण 82 प्रतिशत करने से जनरल कटेगरी के लिए  रिवर्स ड्रिस्क्रमिनेशन की स्थिति पैदा हो रही है. पलाश तिवारी का कहना है कि अगर सरकार फिर से इसे बढ़ाएगी तो वे फिर से इसे लेकर कोर्ट में लड़ाई लड़ेंगे.

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 2012 में भी समूचे आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 58 फीसदी कर दिया था. जिसके खिलाफ लंबे समय से मामला हाईकोर्ट में पैंडिग है.