रायपुर. 1 करोड़ से अधिक के भुगतान में गड़बड़ी के मामले में सिकल सेल संस्थान के तीन कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है. लेकिन जांच कमेटी ने जिस डायरेक्टर जनरल के हस्ताक्षर से ये सारा भुगतान होता है, उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की. किसी भी प्रकार के नोटिस न मिलने की पुष्टि लल्लूराम डॉट कॉम से खुद अरविंद नेरल ने की है. जो गड़बड़ी के दौरान वहां डायरेक्टर जनरल के चार्ज पर थे. सूत्र बताते है कि डॉ नेरल एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के क्लासमेट रहे है.

 सूत्रों के दावों पर यकीन माने तो यही कारण है कि कभी डॉ अरविंद नेरल का ट्रांसफर पूरी नौकरी के दौरान कभी रायपुर से बाहर नहीं हुआ. इतना ही नहीं तीन-तीन विभागों के विभागाध्यक्ष रहे. लेकिन बावजूद इसके उनके कार्यकाल में सिकल सेल में 1 करोड़ से अधिक की ये गड़बड़ी उजागर हुई, जिसमें 3 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन जिनके हस्ताक्षर से ये सभी बिल पास हुए उनके खिलाफ उक्च जांच कमेटी ने कोई जांच करने की जहमत भी नहीं उठाई और न उन्हें नोटिस दिए जाने की अब तक कोई खबर है.

ये है जांच समिति की विस्तृत रिपोर्ट

सिकल सेल संस्थान रायपुर में पिछले 8 सालों से चल रहा है. यहां आए दिन गड़बड़ी की शिकायतें सामने आती रहती है. इनमें से ही एक शिकायत में 1 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी की जांच के लिए राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित की थी. इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर 1,15,89,611 रुपयें भुगतान राशि में बरती गई लापरवाही में संस्थान के तीन कर्मचारी आनंद देव ताम्रकार (स्थापना एवं लेखा शाखा में पदस्थ), पंकज उपाध्याय (स्टोर कम मेनटेनेंस ऑफिसर) और श्रीमती ज्योति राठौर का नाम है. शासन ने इन्हें निलंबित कर दिया था. इसके बाद जांच आदेश दे दिए गए है. जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि

2014 में लैब अस्टिेंट के पद भर्ती में हेराफेरी की गई थी. इसमें 2 कर्मचारी अब्दुल समद और अमित बोस की आयु 40 वर्ष थी. जबकि आवेदित पद पर भर्ती के लिए आयु 35 वर्ष होनी थी.

सिकल सेल संस्थान में 5 सालों में दवाइयां, फर्नीचर, उपकरण और लैब के सामान की खरीदी राशि 1 करोड़ 65 लाख रुपये कोटेशन के आधार पर की गई. जबकि नियम के मुताबिक 1 लाख से अधिक का सामान निविदा के आधार पर की जानी है. शिकायत तो यहां तक की थी कि संचालक निदेशक डॉ अरविंद नेरवाल, इंद्रा दुबे के साथ मिलकर खुद के लैब में सैंपल लेकर सिकल संस्थान में जांच करते थे. लेकिन कमेटी को इसके कोई प्रमाण नहीं मिले. लेकिन लल्लूराम डॉट कॉम इसके प्रमाण जुटाने के प्रयास में लगा हुआ है.

  • वहीं ये भी शिकायत थी कि पंकज उपाध्याय (स्टोर कम मेंटनेस ऑफिसर) की फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्ति की गई.
  • 2017 में सुरक्षा व्यवस्था पर कोटेशन के आधार पर 4 साल में 21,56,448 रुपये का भुगतान किया गया. ये भी नियम के विपरीत पाया गया.
  • 2017-18 में दवाइयों पर 2,28,584 रुपये, फर्नीचर 1,06,060 रुपये, लैब के सामान की खरीदी जिसकी कीमत 3,24,249 रुपये है उसे कोटेशन के आधार पर कर ली गई.
  • 2018-19 में 1,62,004 रुपये, फर्नीचर 2,09,118 रुपये, लैब के सामान 4,62,892 रुपये, 2019-20 में दवाइयां 16,55,904 रुपये, फर्नीचर 34,752 रुपये, लैब के सामान 5,88,574 रुपये कोटेशन के आधार पर ली गई.
  • 2019 में प्रिटिंग के कार्य के लिए 1,46,160 रुपये, 2020 में दवाइयां 14,92,644 रुपये, फर्नीचर कम्प्यूटर 2,23,700 रुपये, लैब के सामान 1,91,085 रुपये AC और रिपेयरिंग के लिए 1,53,098 रुपये कोटेशन के आधार पर ली गई.
  • 2021-22 में दवाइयां 2,73,706 रुपये समेत अन्य तमाम गड़बड़ियां जांच कमेटी ने पाई है.