पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। जिले के देवभोग के पूरनापानी रेत खदान की नीलामी 15 सितंबर को कलेक्टोरेट के सभा कक्ष में हुई. इस खदान के लिए 46 बोलीकर्ताओं ने फार्म दाखिल किया था. बोली में शामिल होने से पहले बड़ी संख्या में 21 फार्म निरस्त कर दिया गया. इसमें से 6 फार्म भरने में हुई त्रुटि के चलते निरस्त हुए तो 15 फार्म में जमा डीडी को नियम विरूद्ध बता कर निरस्त किया गया. बैंक ऑफ बड़ौदा से बनाए डीडी का निरस्त नीलामी में विवाद का कारण बन गया. बोलीदारों ने इसे कुछ लोगों की साजिश बता कर हंगामा किया. निविदा निरस्त करने तत्काल कलेक्टर को ज्ञापन भी दिया गया.
निविदा प्रक्रिया से असंतुष्ट बोलीकर्ताओं की प्रतिनिधि मंडल मामले को लेकर हाईकोर्ट तक पहुंचे हुए है. बोलीकर्ता सुधीर अग्रवाल, शोभाचंद्र पात्र, भविष्य प्रधान, दिलीप अग्रवाल समेत अन्य सभी का आरोप है की जिस नियम का हवाला देकर डीडी निरस्त किया गया वह कंडीका 9.2 में मौजूद था.
लेकिन फार्म के साथ दिए गए 4 पन्ने में केवल 7 बिंदू का जिक्र था. विभाग ने वेब पोर्टल में सारे नियमावली दिए है पर हम सभी इससे अनभिज्ञ थे. इसी अनभिज्ञता के चलते दूसरे खदान के और 18 फार्म निरस्त किए गए है, जो की अनुचित था. मामले में अपर कलेक्टर अविनाश भोई ने कहा की निविदा प्रक्रिया पूरे तय नियमावली के आधार पर किया गया है. खनिज अधिनीयम में तय नियमों का पूरा पालन कर पारदर्शिता से किया गया है.
खदान कॉलेज के कम्यूटर ऑपरेटर को हुआ अलॉट
पुरनापानी रेत खदान जिस देशवशरण बघेल के नाम से एलाट हुआ है वह देवभोग के शासकीय कॉलेज में विगत दो तीन वर्षो से कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी करता है.हालाकि वह जन भागीदारी से नियुक्त अस्थाई कर्मी है.मामले को लेकर शुक्रवार शाम 7 बजे के बाद जब गरियाबंद कलेक्टर परिसर में गहमा गहमी चल रहा था उसी वक्त देवचरन बघेल सारे घटना से बेखर देवभोग में बिंदास घूम रहे थे.उन्हे जब रेत खदान के अलार्ट मेंट की जानकारी दी गई तो उन्होंने पहले अनभिज्ञाता जाहिर किया. फिर बोले की हां मैंने अपना दस्तावेज दिया था. अब तक मुझे नहीं पता की खदान मेरे नाम से अलॉट हुआ है.
नियम में जो लिखा उसका अर्थ अलग लगाया, यही याचिका का आधार
हाईकोर्ट में याचिका दायर करने से पहले कानूनी सलाह लेने बैठे बोलीकर्ता भविष्य प्रधान ने बताया कि नियमावली कंडीका क्रमांक 9.2 में यह उल्लेख है की डीडी में परचेर का नाम नहीं है या हस्तलिखित हो तो डीडी अमान्य माना जाएगा. याचिकाकर्ताओं का दावा है की यह पूरी हस्तलिखित डीडी के लिए लागू नहीं होता. यह टाइपिंग किए हुए उस डीडी के लिए कहा गया है. जिसमे टाइपिंग से परचेजर का नाम छूट गया हो और उस पर परचेजार का नाम हस्तलिखित हो. इस स्थिति में नाम और डीडी एक ही व्यक्ति का है. इसे प्रमाणित करने ही कंडिका में आगे लिखा है की बैंक स्टेटमेंट और पासबुक के प्रथम पेज की प्रमाणित कॉपी अनिवार्य है. याचिकाकर्ताओं ने बताया की हम अभी बिलासपुर में हैं. मंगलवार को मामले में याचिका दायर किया जायेगा.
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