रायपुर। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज भिलाई में पावन पदार्पण हुआ. लगभग 9 कि.मी. विहार कर पूज्य गुरुदेव पोरवाल प्रेक्षा भवन में प्रवास के लिए पधारे. धर्मसभा में प्रतिबोध देते हुए पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि इस संसार में सिद्ध और संसारी यह दो भेद आत्मा के किये जा सकते है। सिद्ध आत्माएं यानी जिन्होनें मोक्ष को प्राप्त कर लिया वे कर्मों से मुक्त होती है। संसारी आत्माओं से कर्म चिपके हुए होते है और वो भवभ्रमण करते रहते है। संसारी जीवों में क्रोध, अहंकार, लोभ जैसी वृत्तियां होती है। इनमें से लोभ को छोड़ना सबसे कठिन है। साधना करते है तब भी लोभ सबसे अंत में खत्म होता है। व्यक्ति को जैसे-जैसे लाभ होता है उसका लोभ बढता जाता है। लोभ के वश में व्यक्ति हिंसा, अपराध जैसे गलत कार्यों को अपना लेता है। अनेक अपराधों के मूल में लोेभ है। गरीबी, अभाव, बेरोजगारी में भी व्यक्ति कभी गलत मार्ग पर जा सकता है, हिंसा और अपराध अपना सकता है। पर इनमें भी गहरा कारण है लोभ और राग-द्वेश की वृत्तियां।

पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि हमारा जीवन लोभ मुक्त हो। कभी भी बेईमानी, प्रलोभन में व्यक्ति न फंसे यह जरूरी है। गृहस्थ में भी कई लोग ईमानदारी के प्रति निष्ठावान रहते हैं। यह भावना का जगत है। गृहस्थ हो या फिर साधु लोभ और आक्रोश का त्याग करना चाहिए। व्यक्ति सोचे आखिर जीना कितना है फिर क्यों बेईमानी और प्रलोभन को हम अपनाये। यह भौतिक धन तो यही रह जायेगा, केवल धर्म ऐसा सच्चा धन है जो आगे भी चलता है। धन के लिए धर्म न छोड़ें, धर्म के लिये धन का त्याग करें। धर्म ही सच्चा मित्र है।

कार्यक्रम में दानमल पोरवाल, निर्मल श्रीमाल, आशा दूगड़, हनुमान शर्मा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। दुर्ग-भिलाई तेरापंथ महिला मंडल ने गीतिका का संगान किया। इस अवसर पर कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने स्वागत में प्रस्तुति दी। जीवन विज्ञान के प्रयोग सीखने और सीखाने वाले सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने अपने अनुभव सुनाए। इस अवसर पर बहुत से लोगों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति अपनाने की शपथ ली।

मुनि रत्नेश कुमार की बड़ी दीक्षा

रायपुर में 21 फरवरी को गीदम के राहुल बुरड़ की दीक्षा हुई थी। वे अब मुनि रत्नेश बन गए हैं। भिलाई में आयोजित समारोह में उनकी बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर उन्होंने कहा की मुनि रूप में मुझे दूसरा जन्म मिला है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे संयम का दुर्लभ मार्ग चुनने का अवसर मिला। अब मैं संयम रत्न उज्ज्वल करके रत्नेश नाम सार्थक कर सकूं यही भावना है।

धर्माधीश के शरण में पहुंचे न्यायाधीश 

रविवार दोपहर आचार्य श्री महाश्रमण जी की सन्निधि में दुर्ग भिलाई जिले के अनेक न्यायाधीश दर्शनार्थ पहुंचे एवं पावन मार्गदर्शन प्राप्त किया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा के बारे में बताते हुए जीवन में एवं कार्यों में प्रामाणिकता को अपनाने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जज गौतम चोरडिय़ा, डिस्ट्रिक्ट जज राजेश श्रीवास्तव, स्पेशल जज हरीश अवस्थी आदि अनेक जज उपस्थित थे।