वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में POCSO एक्ट व अपहरण के आरोप से आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा, पीड़िता की गवाही “स्टर्लिंग” नहीं है। यह निर्णय न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकलपीठ ने पारित किया।
दरअसल, वर्ष 2019 में दर्ज इस प्रकरण में आरोप था कि आरोपी लालेश बारले ने अपनी ससुराल पक्ष की नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया था। विशेष न्यायालय दुर्ग ने आरोपी को 10 वर्ष का कारावास सहित IPC की धारा 363, 366, 506B और POCSO Act की धारा 3/4 के अंतर्गत दोषसिद्ध ठहराया था। इसे लेकर आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की। इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने न्यायालय के समक्ष तथ्यात्मक व विधिक बिंदुओं को विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया।

अभियोजन द्वारा प्रस्तुत जन्म तिथि में दस्तावेजी त्रुटियां थी। जन्मतिथि स्कूल रजिस्टर पर निर्भर किया गया, लेकिन प्रविष्टि दर्ज करने वाले व्यक्ति की गवाही नहीं हुई। X-Ray या मेडिकल बोर्ड से आयु परीक्षण भी नहीं हुआ, जबकि पीड़िता के मेडिकल परीक्षण करने वाली डॉक्टर ने यह सुझाव दिया था। फॉरेंसिक रिपोर्ट ने अभियोजन को कमजोर किया। पीड़िता व आरोपी के कपड़ों या स्लाइड पर कोई सीमेन या शुक्राणु नहीं पाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों (Rai Sandeep @ Deepu बनाम राज्य) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि पीड़िता कई अवसरों पर शिकायत कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। न्यायालय ने माना कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि पीड़िता घटना के समय 18 वर्ष से कम थी। उसके कथन में प्राकृतिकता और निरंतरता नहीं पाई गई। मेडिकल व वैज्ञानिक साक्ष्य भी निर्णायक नहीं थे। इन तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए और सभी आरोपों से दोषमुक्त किया जाना न्याय संगत होगा।
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