कोरोना के संक्रमण ने साल भर पहले जैसे ही वैश्विक महामारी का रूप लिया, वैसे ही दुनिया की नजर वैज्ञानिकों पर आकर टिक गई थी कि कितनी जल्दी टीके का आविष्कार हो और संक्रमण से बचाव की ठोस शुरुआत हो। हमेशा की तरह वैज्ञानिक इस बार भी लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरे और अपेक्षाकृत कम समय में,और कम खर्चीले टीकों की खोज कर उपचार के द्वार खोल दिए।अब टीकों का सही मात्रा और सही समय में उत्पादन नहीं होने के कारणों और उपलब्धता के संकट से कितनी तरह के संकटों का सामना करना पड़ा ,यह अलग तरह की शोध का विषय है ।इस काम के विशेषज्ञ भी अपना काम कर रहे हैं। बहरहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी मन्नतों से मिले कोरोना के टीके लगवाने से कुछ लोग मना क्यों कर रहे हैं ?
परिवर्तनों को जल्दी स्वीकार नहीं करने और नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार नहीं करने की मानसिकता ज्यादातर ग्रामीण व दूर-दराज के क्षेत्रों में पाई जाती है । स्थानीय स्तर पर शरारती तत्व या अंधविश्वास के कारोबारी भी जन मानस को प्रभावित करते हैं।ऐसे मेंl सकारात्मक जनजागरण अभियान की जरूरत होती है जो भ्रमित लोगों को अपने ही आसपास के अनुभवों से बताए कि सच्चाई क्या है।
कोरोना के टीके को लेकर आज जितने भी सवाल पूछे जा रहे हैं वैसे सवाल हर नये टीके लगाने के दौर में पूछे गये थे और इसके बावजूद अलग-अलग समय में अलग-अलग बीमारियों का कारगर उपचार टीकों से ही हुआ और वह इस हद तक सफल हुआ कि धरती से उस बीमारी का नामोनिशान मिट गया।
नवजात के टीकाकरण में तो नहीं डरते …..
जागरूकता और टीकाकरण के नतीजों के कारण अब नवजात शिशुओं के टीकाकरण का कोई विरोध नहीं होता।शहर हो, गांव हो या छोटी -छोटी बसाहटें, माताएं खुशी -खुशी अपने नवजात शिशुओं को टीका लगवाती हैं।
शिशु को पहली सालगिरह तक बीसीजी का एक टीका,डीपीटी के तीन टीके, हेपेटाइटिस बी के तीन ,खबरें का एक टीका और पोलियो की तीन खुराक अनिवार्य रूप से देते हैं।इतने के बाद ही माना जाता है कि बच्चे का पूर्ण टीकाकरण हुआ है।
सवाल उठता है कि जब नवजात शिशु का टीकाकरण सहर्ष कराया जाता है तो युवा ,अधेड़ और बुजुर्ग लोगों को कोरोना का टीका लगवाने से डर क्यो होना चाहिए , जिन्होंने टीके लगवाने का असर अपने जीवन में स्वयं तथा परिवार व समाज में खूब देखा है।
नवजात शिशु ही नहीं गर्भवती माताओं को भी टिटनेस टॉक्साइड के टीके लगाए जाते हैं जो जच्चा-बच्चा दोनों की रक्षा करते हैं।
इतिहास गवाह है टीकाकरण की सफलता का ….
इंग्लैंड में सन् 1749में जन्मे एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके की खोज की थी। उन्होंने देखा था कि काऊ पॉक्स की बीमारी गाय के थन के घाव से शुरू होकर इंसानों तक पहुंच जाती है।डेयरी में काम करने वाली महिलाओं ने उन्हें बताया था कि जिसको काऊ पॉक्स हो चुका है वह चेचक का शिकार नहीं होता ।उस समय चेचक संक्रमित 30प्रतिशत लोग मर जाते थे। मौत के इस तांडव से निजात दिलाने की धुन में जेनर ने काऊ पॉक्स संक्रमित लोगों के गांवों की शोध से पता लगाया कि काऊपॉक्स वायरस ऑर्थोपॉक्स परिवार का वायरस है जो चेचक फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है।इस तरह चेचक के टीके की खोज हुई । विडंबना है प्रारंभिक अविश्वास और उस समय तो व्यापारिक स्तर पर उत्पादन वितरण के साधनों का भी अभाव था, इसलिए जेनर की खोज का लाभ पूरी दुनिया को मिलने में लगभग डेढ़ सौ साल लगे। आखिरकार जेनर (1749-1823)की खोज की बदौलत धरती से चेचक का उन्मूलन हुआ।सन् 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने धरती से चेचक समाप्त होने की घोषणा की।
रॉबर्ट कोक(1843-1910)ने एंथ्रेक्स,हैजा,टीबी फैलाने वाले वायरस खोजे।
जोलैस सॉल्क ने पोलियो से निजात दिलाने के टीके की खोज की ।इस प्रकार अनेक जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए वैज्ञानिक विधि का न सिर्फ आविष्कार हुआ बल्कि इसके परीक्षण वह प्रयोग के नियम भी कठोर होते गये ,इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मॉनीटरिंग और स्वीकृति के मापदंड लागू हुए क्योंकि मनुष्य की जान से अधिक मूल्यवान और कुछ भी नहीं।
अलग-अलग समय में भिन्न बीमारियों ने महामारी का रूप लिया लेकिन वैज्ञानिकों ने उनका तोड़ निकाला ,यही वजह है कि आज धरती पर इंसानों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व बना हुआ है।इसी क्रम में गर्भवती माताओं और नवजात शिशुओं के लिए अनिवार्य टीकाकरण की शुरुआत हुई। वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम का आगाज हुआ।पूरी दुनिया घातक बीमारियों और महामारियों के खिलाफ एकजुट हुई।इस प्रकार जनमानस में यह धारणा मजबूत हुई कि शिशुओं का सही समय पर टीकाकरण हो जाए तो उन्हें गलघोंटू,कालीखांसी,टीबी,खसरा,दिमागी बुखार, धनुर्वात(टिटनेस)पोलियो ,हीपेटाइटिस,जैसी गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है ।पोलियो उन्मूलन के लिए किए गए सामूहिक प्रयासों के साक्षी तो हाल की दो पीढ़ियां ही हैं , जिन्होंने यह चमत्कार होते हुए देखा है और इसकी सफलता में अपनी भागीदारी निभाकर गौरवान्वित भी हुए हैं। भारत हालाकि पोलियो मुक्त हो चुका है पर जिन देशों ने पोलियो टीकाकरण पर समुचित ध्यान नहीं दिया, वहां और उनके कारण विश्व को पोलियो मुक्त होने का सौभाग्य नहीं मिला है। वहीं इनके कारण पोलियो के लौटने का खतरा बना रहता है ,इस स्थिति से निपटने के लिए पोलियो की खुराक अभी भी दी जाती है।
कोरोना संक्रमण की पहचान वैश्विक महामारी के रूप में होने के बाद ,इसका टीका अन्य बीमारियों की तुलना में जल्दी ही हुआ है ,यह भी वैज्ञानिक युग का सुफल ही है ।
सबको लगवाना है दोनों डोज़…
छत्तीसगढ़ सरकार ने कोरोना टीका सर्वसुलभ कराने के लिए अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता घोषणा कर दी है । पर्याप्त मात्रा में टीकों की आपूर्ति के आदेश दे दिए हैं।टीके लगाने की व्यवस्था बना दी गई है।जैसे -जैसे आपूर्ति होगी वैसे-वैसे पात्रता और बारी के अनुसार टीके लगाए जाने हैं।इस बीच में संयम और अनुशासन जरूरी है ।
वहीं दूसरी ओर पात्रता और बारी के अनुसार जो लोग टीका लगाने को लेकर संशय पाले बैठे हैं , उन्हें यह समझने-समझाने की जरूरत है कि आज संक्रमण से बचने का एक बड़ा उपाय टीका लगाना ही है । जिन्होंने एक डोज़ लगवाया है , उन्हें दूसरा डोज़ भी लगवाना अनिवार्य है ।दूसरे डोज़ के बिना टीकाकरण पूर्ण नहीं होगा और पहले का लाभ भी नहीं मिल पाएगा । टीके के दुष्प्रचार को लेकर फैलाए गये भ्रम का जवाब देना भी हर समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है।आप जितने लोगों को समझा पाएंगे, उतने लोगों की जान बचाने के पुण्य के भागी भी बनेंगे ।एक व्यक्ति को टीका लगाने के लिए सहमत करने से आप उनके संपर्क के अनेक लोगों को संक्रमण से बचाने का पुण्य भी कमा सकते हैं।
टीकाकरण पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर किया जाता है अतः इस पर किसी तरह से संशय का कोई कारण नहीं है। टीकाकरण के बाद भी पूरी सुरक्षा के उपाय और सावधानी ही पूरी सफलता दिलाएगी।
लेखक- उमेश मिश्र, (संयुक्त सचिव, मुख्यमंत्री एवं जनसंपर्क विभाग)
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