बलौदाबाजार। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री करुणा शुक्ला पंचतत्व में विलीन हो गईं हैं. कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए उनका अंतिम संस्कार किया गया. पति डॉ. माधव शुक्ला ने पीपीई किट पहनकर करुणा शुक्ला को मुखाग्नि दी. इस दौरान परिवार की तरफ से उनकी पुत्री रश्मि, भतीजा योगेश शुक्ला, उनकी पत्नी और अन्य लोग मौजूद रहे. कोरोना के चलते राजनीति से जुड़े लोग शामिल नहीं हो सके.
पूर्व सांसद और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री करुणा शुक्ला (70 वर्ष) कोरोना संक्रमित हो गईं थी. जिसके बाद उनका रायपुर के रामकृष्णा अस्पताल में इलाज चल रहा था. जहां देर रात उनका निधन हो गया. करुणा शुक्ला बलौदाबाजार की पूर्व विधायक थी. बलौदाबाजार में ही आज उनका अंतिम संस्कार किया गया. लोकसभा सांसद रहीं करुणा शुक्ला वर्तमान में छत्तीसगढ़ समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष थीं.
पति ने पीपीई किट पहनकर दी मुखाग्नि
पति डॉ. माधव शुक्ला ने पत्नी करुणा शुक्ला को मुखाग्नि दी. हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया. ऑनलाइन वैदिक मंत्रोच्चार कर पं. लक्ष्मीकांत मिश्रा ने उनका अंतिम संस्कार संपन्न कराया. इस दौरान कोविड नियमों का पालन किया गया. प्रशासन की ओर से तहसीलदार, एसडीओपी सुभाष दास और टीआई महेश सिंह राजपूत की मौजूदगी में पीपीई किट पहनकर पंचतत्व में विलीन किया गया.
अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ कोई भी बड़ा नेता
कोरोना महामारी के चलते कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका. सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष विघाभूषण मुक्तिधाम में पहुंचकर श्रद्धाजलि अर्पित की. उनके चाहने वाले मुक्तिधाम के बाहर रहकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. काँग्रेस के वरिष्ठ नेता व कृषक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए शोक व्यक्त किया है.
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सीएम समेत कई नेताओं ने जताया शोक
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव समेत कई नेताओं ने करुणा शुक्ला के निधन पर शोक जताया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी करुणा चाची यानी करुणा शुक्ला जी नहीं रहीं. निष्ठुर कोरोना ने उन्हें भी लील लिया. राजनीति से इतर उनसे बहुत आत्मीय पारिवारिक रिश्ते रहे और उनका सतत आशीर्वाद मुझे मिलता रहा. ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और हम सबको उनका विछोह सहने की शक्ति.
1993 में पहली बार बीजेपी विधायक बनीं थीं करुणा शुक्ला
बता दें कि करुणा शुक्ला पहली बार 1993 में बीजेपी विधायक चुनी गई थीं. बीजेपी की टिकट पर सांसद रहीं करुणा शुक्ला 2009 में कांग्रेस के चरणदास महंत से चुनाव हार गई थीं. 2014 आते आते वह बीजेपी में इतनी अलग थलग पड़ीं कि उन्होंने उस कांग्रेस का दामन थामने का फैसला कर लिया, जिसके सामने अटल बिहारी वाजपेयी पूरी जिंदगी लड़ते रहे.
करुणा शुक्ला का ग्वालियर में हुआ था जन्म
1 अगस्त 1950 के दिन ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला का जन्म हुआ था. भोपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में रहते हुए बेस्ट एमएलए का खिताब भी मिला था. वह 1982 से 2014 तक भाजपा में रहीं.
32 साल BJP में रहने के बाद थामा कांग्रेस का दामन
करुणा शुक्ला ने 2014 में कांग्रेस ज्वॉइन की. लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाईं. करुणा 1993 में पहली बार विधानसभा सदस्य चुनी गईं. 2004 के लोकसभा के चुनावों में करुणा ने भाजपा के लिए जांजगीर सीट जीती थी, लेकिन 2009 के चुनावों में करुणा कांग्रेस के चरणदास महंत से हार गईं थीं. उस चुनाव में छत्तीसगढ़ में करुणा ही बीजेपी की अकेली प्रत्याशी थीं जो चुनाव हारी थीं. बाकी की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. भाजपा में रहते हुए करुणा कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं जिनमें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी है. 32 साल भाजपा में रहने के बाद उन्होंने अचानक कांग्रेस का दामन थाम लिया था.
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