सुप्रिया पाण्डेय, राजनांदगांव। अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य महाश्रमण के राजनांदगांव प्रवास के दौरान आचार्य ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक प्रकार की वृत्तियां होती है. आक्रोश की वृत्ति होती है तो क्षमा की भी वृत्ति होती है. भीतर में अहंकार है तो मार्दव भी है, माया लोभ की वृत्ति है तो ऋजुता, संतोष की भी वृत्ति भीतर में है.
अहंकार एक ऐसी वृत्ति है, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है. व्यक्ति में जब अपने ज्ञान का घमंड आ जाता है तो वह उसे प्रदर्शित करने का प्रयास करता है। अपने वैदुष्य का आत्मश्लाघा के लिए दिखावा नहीं करना चाहिए. अल्पज्ञान वाला ही घमंड करता है, क्योंकि जो सर्वज्ञ, सर्वज्ञानी होते हैं वे कभी भी अहंकार नहीं करते. हमारे भीतर जो अज्ञान है उसकी ओर व्यक्ति को ध्यान देना चाहिए. सबसे बड़ा ज्ञानी वह होता है जो अपने अज्ञान को पहचान लेता है.
आचार्य ने आगे कहा कि हमें अपने ज्ञान व धन – वैभव का घमंड नहीं करना चाहिए. लक्ष्मी चंचल है, न तो व्यक्ति उसका घमंड करें और न ही उसका दुरूपयोग करे. रूप और सौंदर्य का भी अहंकार नहीं करना चाहिए. व्यक्ति का चरित्र एवं आचरण सुंदर हो यह जरूरी है. विभिन्न चीजों से अहंकार को पैदा होने का मौका मिल सकता है पर आदमी अहंकार से बचने का प्रयास करे.
अहंकार से मुक्त होकर व्यक्ति निर्भार बन सकता है. अहंकार विनय का नाश करने वाला होता है. विद्या विनय से सुशोभित होती है. जहां विनय वहां अहंकार नहीं और जहां अहंकार वहां विनय नहीं, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते. जीवन में विनय का भाव रहे और व्यक्ति अहंकार से मुक्त रहे, यह अपेक्षा है.