रायपुर। तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जी सदर बाजार स्थित तेरापंथ भवन में मांगलिक देते हुए बुधवार को विवेकानंद नगर पधारे। विहार एवं कार्यक्रम में सोशल डिस्टनसिंग एवं मास्क पहनने का विशेष ध्यान रखा गया। मंदिर के उपाश्रय में आयोजित प्रवचन में मूर्तिपूजक संघ की मंडल प्रमुखा साध्वी मनोरंजना श्रीजी महाराज एवं साध्वी वृंद भी उपस्थित रही।

प्रवचन में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि अहिंसा, संयम और तप यह धर्म के रूप है। जो अहिंसा कि साधना करता है, संयम के साधना करता है, तपस्या की साधना करता है वह धर्म है। अहिंसा साधुओं के लिए तो करणीय होती ही है। हम पैदल यात्रा करते हैं यह भी अहिंसा का तत्व है। वाहनों की यात्रा से कितने जीवों की हिंसा की संभावना रहती है। पदयात्रा में अहिंसा का तत्व निहित है। रात्रि भोजन का त्याग भी साधु के नियम होता है इसमें भी अहिंसा का तत्व है। कहीं सूक्ष्म जीवों की हिंसा ना हो जाए क्योंकि रात्रि भोजन से जीव हिंसा की संभावना रहती है। साथ ही रात्रि भोजन का त्याग से संयम की भी साधना है।

गृहस्थ जन भी अपने जीवन में ध्यान दें की अहिंसा और संयम तत्व जुड़ा रहे। आज होटलों आदि में जाना होता है तो यह ध्यान रहे कि मुझे अखाद्य नहीं खाना है। नॉनवेज है या वेज इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। खाद्य शुद्धि रहे। परिवारों में भी किसी अवसर आदि पर भी शराब, मादक द्रव्यों का सेवन नहीं होना चाहिए। जितना अहिंसा, संयम हमारे जीवन में रहेगा उतना ही धर्म हमारे जीवन में रहेगा। वाणी का भी संयम करे। कटु भाषा और झूठ तो बोले ही नहीं। जितना हो सके व्यक्ति को झूठ बोलने से बचना चाहिए। क्रोध, लोभ, भय और हास्य के वशीभूत होकर व्यक्ति कई बार झूठ बोल लेता है। गृहस्थ ध्यान रखें की व्यवसाय में लेनदेन हो या फिर कोई कोर्ट कचहरी की बात किसी पर भी झूठा आरोप ना लगाएं सही तथ्य को नहीं छुपाए। कहा गया कि जिसका मन संयम धर्म में रम जाता है उसे देवता भी नमस्कार करते है।

पूज्यप्रवर ने फरमाया- आज विवेकानंद नगर में आना हुआ है। यहां जैन समाज में खूब सौहार्द, सद्भावना रहे। डागा परिवार की छोटी बाई इतने वर्षों से सेवा कर रही है। इन में भक्ति भावना भी वैशिष्ट्य युक्त है। पूरे परिवार में धर्म के संस्कार पुष्ट हो और आध्यात्मिक विकास होता रहे।

धर्म से ही हम सुरक्षित हैं

मूर्तिपूजक संघ की साध्वी मनोहर श्री जी महाराज साहब ने आचार्य प्रवर के प्रति मंगल कामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि धर्म के प्रताप से ही हम बचे हैं। भारत मे हर धर्म मे तपस्या और साधना का महत्व है। यहा हर दिशा में तीर्थ हैं। उन्होंने आचार्य तुलसी से राजस्थान में हुई मुलाकात को याद किया। उन्होंने लोगों से कहा कि श्रद्धा हो तो भगवान आपसे दूर नहीं हो सकते।

भवाभिव्यक्ति के क्रम में श्राविका गौरव छोटी बाई डागा, स्थानीय जैन समाज के अध्यक्ष पुखराज मनोत, मंजू डागा, पार्षद विशाल देवेंद्र यादव आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर राजेंद्र डागा एवं परिवार द्वारा छोटी बाई की जीवनी ‘सेवाभावी वीरांगना’ आचार्य श्री को भेंट की गई। कार्यक्रम में शालीभद्र जी गादिया की धर्मपत्नी श्रीमती चित्रा गादिया ने 23 की तपस्या का प्रत्याख्यान कर तप द्वारा आचार्यश्री का स्वागत किया।