कोण्डागांव। कोरोना काल में काफी कुछ बदलाव आया है. सामाजिक, आर्थिक व आध्यात्मिक स्तर पर भी अच्छे बुरे बदलाव देखने को मिले. इसी में से एक संस्कार होता है व्यक्ति की मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार. इसके बाद की अहम कड़ी होती है मृतक की अस्थियां सहेजना और पूरे विधिविधान के साथ विसर्जित करना. कोरोना काल में अपने प्राणों की सुरक्षा की आपाधापी में अंतिम संस्कार की इस परम्परा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़े है.

20 शवों की अस्थियां लेने ही नहीं पहुंचे परिजन

कोरोना से हुआ मौतों के शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेवारी जिला  प्रशासन ने कोण्डागांव नगर पालिका परिषद को सौंपी रखी थी. शव की सूचना मिलने पर मुख्य नगरपालिका अधिकारी की देखरेख व मौजूदगी में शवों को कनेरा रोड पर चयन किये गए स्थल पर अग्नि संस्कार पूरे विधिविधान से किया जाता था. इसके बाद परिजनों को शव की अस्थियां सहेजने के लिए फोन पर सूचना दी जाती थी. इसमें  लगभग 33 फीसदी परिजनों ने कोरोना से मृत अपने ही परिवार के सदस्य की अस्थियां ले जाने में रूचि नहीं दिखाई

आत्मा की शांति के लिए अस्थि विसर्जन है जरूरी

आध्यात्मिक रूप से यह माना जाता है कि मृतक की अस्थियों को किसी पवित्र नदी या जल स्त्रोत में विर्सजित करने के बाद ही उसकी आत्मा को शांति मिलती हैं. कोरोना काल में लोग इतने भयभीत व असंतुलित हो गए कि वे सैकड़ों सालों से चली आ रही इस परम्परा के निर्वहन से भी पीछे हट गए.

मुख्य नगरपालिका अधिकारी सूरज सिदार ने बताया कि कोरोना काल में कोण्डागांव में लगभग 60 कोरोना शवों को अंतिम संस्कार किया गया. जिसमें तकरीबन 20 परिवारों के लोग अपने प्रियजन की अस्थियों के संकलन के लिए संस्कार स्थल पर नहीं पहुंचे. जबकि हमारी ओर से उन्हें बार-बार यह सूचना दी जाती रही कि वे अस्थियां विसर्जन के लिए लेकर जा सकते हैं.

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