CG News : अमित पांडेय, डोंगरगढ़. देश भले ही तकनीक और विकास के नए आयाम छू रहा हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में आज भी बुनियादी सुविधाएं लोगों के लिए सपना बनी हुई हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के घुमका ब्लॉक से, जहां ग्राम बोटेपार से खजरी तक की सड़क ग्रामीणों के लिए परेशानी, खतरे और संघर्ष का रास्ता बन चुकी है. करीब ढाई किलोमीटर लंबी यह सड़क वर्षों पहले सिर्फ गिट्टी और मुरूम डालकर छोड़ दी गई थी. समय के साथ यह सड़क पूरी तरह जर्जर हो चुकी है. जगह जगह गहरे गड्ढे बन चुके हैं और बारिश के दिनों में तो हालत और भी बदतर हो जाती है. ग्रामीणों का कहना है कि अब यह सड़क नहीं बल्कि हादसों का रास्ता बन गई है.

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शिकायतों के बाद भी नहीं ली गई सुध

गांव की सुशीला बाई बताती हैं कि इसी सड़क पर फिसलकर उनका पैर टूट गया था. करीब दो महीने तक वे बिस्तर पर रहीं. घर की जिम्मेदारी किसी तरह निभाई गई, लेकिन इलाज और रोजमर्रा की परेशानियों ने परिवार को तोड़कर रख दिया. उनका कहना है कि कई बार शिकायत की गई, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली. ग्रामीण नारायण वर्मा बताते हैं कि करीब 20 से 25 साल पहले, जब बोटेपार और खजरी एक ही पंचायत थे, तब इस सड़क पर गिट्टी-मुरूम डलवाया गया था. उसके बाद आज तक न तो डामरीकरण हुआ और न ही कोई स्थायी मरम्मत. हालात ऐसे हैं कि सड़क पहचान में ही नहीं आती. इस जर्जर सड़क का सबसे बड़ा असर किसानों पर पड़ रहा है. ग्राम बोटेपार के किसान अपनी फसल बेचने पटेवा सोसाइटी जाते हैं, जो गांव से लगभग 6 किलोमीटर दूर है. लेकिन सड़क इतनी खराब है कि ट्रैक्टर ले जाना जोखिम भरा हो जाता है. मजबूरी में किसानों को घुमका होकर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है, जिससे दूरी लगभग दोगुनी हो जाती है और समय, ईंधन और मेहनत तीनों की बर्बादी होती है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने सरपंच से लेकर जनप्रतिनिधियों तक कई बार इस सड़क के निर्माण की मांग की, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला.
विस में प्रभारी मंत्री ने सड़क को बताया था चलने योग्य

इस मुद्दे को लेकर डोंगरगढ़ विधायक हर्षिता बघेल ने विधानसभा में सवाल उठाया था. उन्होंने बताया कि बोटेपार से खजरी तक सड़क निर्माण की स्वीकृति वर्ष 2022–23 में दी जा चुकी थी और टेंडर प्रक्रिया भी पूरी हो गई थी. लेकिन सरकार बदलने के बाद यह काम रोक दिया गया. विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में प्रभारी मंत्री की ओर से कहा गया कि यह सड़क चलने योग्य है. हालांकि जमीनी सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर यह सड़क चलने लायक है, तो फिर रोज हादसों का डर क्यों बना रहता है. किसान अपनी फसल बाजार तक पहुंचाने के लिए घुमावदार रास्तों से क्यों जाने को मजबूर हैं. आज स्थिति यह है कि फाइलों में सड़क मौजूद है, लेकिन जमीन पर सिर्फ गड्ढे और धूल उड़ रही है. विकास के दावों और हकीकत के बीच फंसे बोटेपार और खजरी के ग्रामीण अब सिर्फ एक ही सवाल पूछ रहे हैं क्या उनकी सड़क कभी बनेगी, या यूं ही हर चुनाव में सिर्फ वादा बनकर रह जाएगी?
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