पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। वित्तीय वर्ष 2022-23 में मिले डीएमएफ फंड का ज्यादातर उपयोग सरकारी और उपयोगी संस्थानों को चकाचौंध करने में खर्च किया गया. इसी कड़ी में ही जिले के देवभोग के अलावा मैनपुर, गरियाबंद, छुरा और राजिम के मिनी स्टेडियम में 40-40 लाख का बजट हाई मास्ट लाइट के लिए खर्च का प्रावधान किया गया. काम कराने का जिम्मा अलग-अलग संस्थानों को सौंपा गया लेकिन वर्क आर्डर राजधानी के सत्तासीन नेता और तत्कालीन अफसरों के इर्द गिर्द रहने वाले चहते ठेका कंपनी को मिला. क्रियान्वयन एजेंसी भी प्रशासनिक मुखिया के मूड के आधार पर तय हुआ. छुरा, राजिम और मैनपुर का कार्य लोक निर्माण विभाग के बिजली शाखा के माध्यम से हुआ. गरियाबंद में इस काम को कराने वन विभाग की जिम्मेदारी मिली थी, जबकि देवभोग स्टेडियम का कार्य देवभोग सरपंच के कंधे पर रख कर कराया गया. सभी कार्य के लिए 15 मई से 25 मई के बीच वर्क आर्डर जारी कर दिया गया था. ठेका कंपनियों ने अक्तूबर माह में काम खत्म कर ट्रायल भी पूरी कर ली. हाई मास्क लाईट को जलाने 3 किलो वाट से ज्यादा भार क्षमता की बिजली चाहिए, जिसके लिए सभी जगह एक एक ट्रांसफार्मर की जरूरत है. लेकिन इसके अभाव में स्टेडियम के हाई मास्क का उपयोग नहीं हो पा रहा है. बिजली विभाग के कार्यपालन अभियंता अतुल तिवारी कहते है कि उन्हें अब तक किसी भी स्थान से ट्रांसफार्मर लगाने के लिए कोई आवेदन नहीं प्राप्त हुआ है .

दो के बजाय एक टाइम की प्रैक्टिस, पहले करनी पड़ती है सफाई

इन दिनों पुलिस और सेना की भर्ती की तैयारी भारी संख्या में युवा कर रहे है. ग्रामीण अंचल में दौड़ लगाने का विकल्प है,लेकिन जिला मुख्यालय में युवाओं को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही खेलो इंडिया और अन्य स्पोर्ट्स के पुरुष-महिला खिलाड़ी भी सुबह से गरियाबंद मिनी स्टेडियम में आ रहे हैं. महिला खिलाड़ी खिलेश्वरी ध्रुव ने बताया की पूरे मैदान और बैठने के जगह में शराब के बोतल पड़ा रहता है. प्रेक्टिस शुरू करने से पहले बोतल फेकना पड़ता है, कूदने के लिए रखे गए बालू में भी बोतल तोड़ कर कांच डाल दिया जाता है. वॉलीबॉल कोच कौशल वर्मा ने कहा कि गर्मी में जल्दी तेज धूप निकल आता है. लाइट जलता तो शाम का भी वर्क आउट हो जाता. महिला आरक्षक भर्ती के लिए मेहनत में लगी मिलंती दुर्गे ने बताया की बिजली प्रबंध और शाम को असामजिक लोगों के डेरा से मुक्ति दिलाने जिला प्रशासन को लिखित आवेदन किया गया है.

डेढ़ गुना बड़ा प्राक्कलन बनाया, पर बिजली प्रबंध का जिक्र नहीं

प्राक्कलन और हुए काम को देख कर डेढ़ गुना बड़ा स्टीमेट बनाए जाने का अंदेशा है. जिन क्रियान्वयन एजेंसी ने टेंडर जारी किया वहां 12 से 15 प्रतिशत विलो में काम लिया गया है. काम के स्टीमेट में सबसे जरूरी था ट्रांसफार्मर जिसका स्वीकृति प्राक्कलन में जिक्र तक नहीं किया गया. बिजली का खर्च कैसे मेंटेन किया जाएगा इसका भी कोई जिक्र नहीं है. अफसर बदले तो काम के गुणवत्ता पर भी नजर गई, ऐसे में भुगतान का लटकना भी स्वाभाविक था. अब तक इस मद का केवल आधा पैसा ही सबंधित को जारी किया गया है. बची हुई राशि के लिए एजेंसियां आज भी कलेक्ट्रोरेट और जिला पंचायत का चक्कर लगा रहे हैं.

इस मामले में सीईओ जिला पंचायत गरियाबंद रीता यादव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस पर जो भी पूछना है कलेक्टर से पूछिए. सारा फाइल उन्हीं के पास दे दिया गया है. मद में पैसे बाकी है, उन्हीं से ट्रांसफार्मर लगाने की प्रक्रिया की जा रही है.