रायपुर। रामकृष्ण केयर की कार्डियोलॉजी टीम ने एक और कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डॉ जावेद परवेज के नेतृत्व में इस टीम ने एक मरीज का ऐट्रियल फिब्रिलेशन (एएफ) ऐब्लेशन प्रोसीजर किया है। सम्पूर्ण मध्यभारत में इस तरह का यह पहला प्रोसीजर है।

पत्रकारों से चर्चा करते हुए डॉ जावेद ने बताया कि दिल की ऐट्रयल फिब्रिलेशन हृदय के धड़कने की गति से जुड़ी एक आम समस्या है। इसमें धड़कनें बेहद तेज हो जाती हैं और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। मरीज को लकवा होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। अब तक इस समस्या का इलाज केवल दवाइयों से किया जाता था क्योंकि कोई और विकल्प उपलब्ध नहीं था। इसका कोई स्थाई इलाज भी नहीं था।

डॉ. जावेद

उन्होंने बताया कि एएफ ऐब्लेशन लोकल एनेस्थीसिया के प्रभाव में किया जाता है। इसमें अधोअंगों की नसों के जरिए कैथेटर को हृदय में पहुंचाया जाता है। इसकी सहायता से हृदय के भीतर उपचारात्मक चीरे लगाए जाते हैं जिसके बाद अधिकांश रोगियों में यह समस्या खत्म हो जाती है। रोगी को प्रोसीजर के 24 घंटे के बाद ही छुट्टी दे दी जाती है और वह दो दिन में अपनी सामान्य दिनचर्या के लिए सक्षम हो जाता है।

उन्होंने बताया कि पहले रोगियों को धड़कनों की समस्या (एरिदमिया) के इलाज के लिए महानगरों का रुख करना पड़ता था। इलाज भी काफी महंगा और जटिल हुआ करता था। पर अब ऐसे मरीजों के इलाज के लिए सभी प्रकार की अत्याधुनिक तकनीक एवं सुविधाएं रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल में उपलब्ध हो गई है।

एट्रियल फिब्रिलिएशन पांच गुना तक बढ़ा देता है स्ट्रोक का खतरा

एट्रियल फिब्रिलिएशन स्ट्रोक के खतरे को 5 गुना तक बढ़ा देता है। खून में थक्के बन सकते हैं जो मस्तिष्क में जाकर स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं। हृदय को रक्त का प्रवाह कम होने के कारण वहां एंजाइना हो सकता है, यहां तक कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है। चिकित्सक की मदद से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है पर थोड़ी भी लापरवाही भारी पड़ सकती है।

हमारे दिल में चार प्रकोष्ठ होते हैं। दो अलिंद और दो निलय। ये सभी आपस में तालमेल बनाकर धड़कते हैं ताकि रक्त का पर्याप्त प्रवाह सही दिशा में बना रहे। यह पूरे शरीर को आक्सीजन युक्त रक्त उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है। जब हृदय की चाल में विकार उत्पन्न होते हैं तो आक्सीजन की सप्लाई गड़बड़ा जाती है। जहां जहां आक्सीजन युक्त रक्त पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता वहां कोशिकाओं की मृत्यु होने लगती है।

ए-फिब

एट्रियम अलिंद को कहते हैं। एट्रियल फिब्रिलिएशन में अलिंद की गति या तो तेज हो जाती है या मंद पड़ जाती है। ऐसा होने पर चक्कर आना, थकान लगना, दिल का जोर जोर से धड़कना, शरीर के किसी एक हिस्से में शिथिलता महसूस करना जैसे लक्षण उभर सकते हैं।

ए-फिब के कारण –

  • पुराना हृदय रोग या हृदयाघात
  • उच्च रक्तचाप
  • डायबिटीज
  • अनिद्रा (कम नींद आना)
  • शराब का अत्यधिक सेवन
  • धूम्रपान
  • एथलेटिक कंडीशनिंग के व्यायाम

क्या हैं खतरे

ए-फिब की स्थिति में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। कभी कभी यह बाएं अलिंद में एकत्र होने लगता है। जब ऐसा होता है तो वहां खून का थक्का बन सकता है। यदि हृदय ने इस थक्के को पंप करके शरीर में भेज दिया तो यह मस्तिष्क में पहुंचकर स्ट्रोक का कारण बन सकता है। नीचे की तरफ बहने वाले रक्त में थक्का रक्तप्रवाह में अवरोध उत्पन्न करता है। जहां जहां रक्त नहीं पहुंच पाता वहां की कोशिकाएं मरने लगती हैं।

स्ट्रोक के लक्षण

  • शरीर के किसी एक हिस्से का एकाएक सुन्न हो जाना
  • बोलने या समझने में एकाएक उभरी परेशानी
  • एक या दोनों आंखों से एकाएक दिखाई न पड़ना
  • चलने में लड़खड़ाहट, संतुलन बनाना मुश्किल होना
  • एकाएक तेज सिरदर्द

कैसे होता है इलाज

ए-फिब के मामलों में चिकित्सकीय हस्तक्षेप की जरूरत पड़ सकती है। इसमें रक्त को पतला करने की औषधियों से लेकर हृदय की गति एवं ताल को स्थिर रखने की दवाइयां दी जा सकती हैं। कुछ मामलों में कैथेटर एब्लेशन या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।

कब जाएं डाक्टर के पास

  • जब दिल एकाएक तेज गति से धड़कने लगे
  • हृदय के आसपास फुरफुरी सी महसूस हो
  • अकारण थकान महसूस हो, चक्कर आ रहे हों या सिर हल्का लग रहा हो
  • सांस फूलना
  • तीव्र उत्कंठा

ए-फिब होने पर यह भी करें

ए-फिब के रोगियों की तबियत कभी भी बिगड़ सकती है इसलिए कुछ सावधानियां बरतना जरूरी हो जाता है। बेहतर हो कि आप मेडिकल ब्रेसलेट पहने या मेडिकल रिकार्ड का कार्ड अपने साथ रखें। इससे आपकी तबियत अचानक बिगड़ने पर स्वास्थ्य प्रदाता को तुरन्त ही आपके हृदय संबंधी विकार का पता चल जाएगा और वह उसके अनुरूप आपकी चिकित्सा शुरू कर सकेगा।

कब पड़ता है ए-फिब का दौरा

  • कैफीन (चाय और कॉफी में पाया जाने वाला तत्व)
  • तनाव
  • अधूरी नींद, अनिद्रा
  • दिल की धड़कनों को बढ़ाने वाले व्यायाम

ऐसे करें बचाव

आपका डाक्टर आपकी स्थिति का आकलन कर आपको सही दवा प्रेस्क्राइब करने में सक्षम होगा। यदि आपको स्ट्रोक का खतरा है तो ऐसी दवाएं प्रेस्क्राइब करेगा जो रक्त की तरलता को बनाए रखकर थक्का बनने की संभावना को कम करते हैं। यदि आपको दिल की रफ्तार और ताल की समस्या है तो औषधियों द्वारा उसे नियंत्रित किया जा सकता है। एक बार एफिब डिटेक्ट हो जाने के बाद आप किसी भी औषधि को लेकर लापरवाह नहीं हो सकते। इनमें से किसी भी दवा का डोज या इंटरवल अपनी तरफ से तय करने की कोशिश करना घातक हो सकता है। कोई भी परिवर्तन डाक्टर की सलाह पर ही करें। इससे आप स्ट्रोक जैस इमरजेंसी से बचे रहेंगे।