पुरूषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ को पिछले दिनों हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में देश में दूसरा स्थान मिला है. लेकिन प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेंटरों की हालात बेहद खराब है. सर्वाधिक डिलवरी करने वाला सेंटर कुम्हडई खुर्द में प्रसव कराने के जरूरी सामान तक नहीं है, बगैर क्लेम के धागे से नाल काटते हैं. इसके अलावा बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधा तक नदारत है.

दरअसल, आयुष्मान भारत योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद ऐसे उप स्वास्थ्य केंद्र को चिन्हांकित कर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बनाया जाना था, जहां ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके. सीएचसी की तुलना में ही इन सेंटरों में उपचार व सुविधा दिया जाना है, इसलिए यहां चयनित 12 सेंटरों में एक-एक सीएचओ (कम्यूनिटी हेल्थ ऑफिसर) नियुक्त किया गया, जिन्हें दवा लिखने एव सामान्य बीमारी का इलाज करने कार्य दिया गया. इसे कराने पहले ग्रामीणों को समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आना पड़ता था, अब इस सेंटर में मिलेगा. सेंटर की आकर्षक रंगाई पुताई, सेड, पानी की पर्याप्त व्यवस्था भी कराना था. हमने कूम्हडई खुर्द, निष्टिगुड़ा, खोखसरा, लाटापारा, कदलीमूड़ा, सितलीजोर व सिनापाली सेंटर का जायजा लिया तो सुविधाएं नदारत मिली, तैनात स्टाफ सीमित संसाधनों में अपनी ड्यूटी निभाने को लाचार दिखे.

सेंटर में प्रसव कराने के जरूरी सामान नहीं

ब्लॉक ही नहीं जिले भर में संस्थागत प्रसव कराने में कुम्हडई खुर्द वेलनेस सेंटर का नाम ऊपर के पांच नामों में गिना जाता है. पर इस सेंटर का अपना सीमित कक्ष है. तीन छोटे-छोटे कमरे है, जिनमें ही प्रसव, स्टोर व ओपीडी चलता है.

सीएचओ भुवनेश्वरी साहू ने बताया कि पानी, लेट बाथ, वेस्ट डिस्पोजल, दवा के लिए रैक तक नहीं है. प्रसव के दरम्यान नाल काटने के लिए क्लेम नहीं होने से आज भी धागे का इस्तेमाल करते हैं. वार्मर जैसे जरूरी सामान भी नहीं है. इस सेंटर ने अप्रैल में 39, मार्च में 37, फरवरी में 30 व जनवरी में 45 प्रसव कराने का रिकार्ड बनाया है.

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चार्जिंग लाइट से कराना होता है प्रसव

बिजली व लो वोल्टेज की समस्या है. ऐसे में प्रसव या रात्रिकालीन उपचार चार्जिंग लाइट की रौशनी में करना होता है. निष्तिगुड़ा, लाटापारा, कदलीमूडा में बिजली की ज्यादा समस्या है. नल कनेक्शन कर टंकी तो बिठाया गया है पर सच तो यह है कि पीने तक का पानी हैंडपम्प के जरिये स्टाफ को ही बंदोबस्त करना होता है.

जीर्णोद्धार के आड़ में भ्रष्टाचार की तैयारी

2020 में सेंटर का चयन होने के बाद इसी साल ही 7 सेंटर में जरूरी व मूलभूत सुविधा देने आयुष्मान भारत योजना के तहत 19 लाख 20 हजार की स्वीकृति दी गई. आरईएस विभाग के देखरेख में काम कराया जाना था. विभाग द्वारा जारी टेंडर में नगरी के लक्की कंस्ट्रक्शन ने कार्य के लिए अनुबंध किया. 9 माह होने को है एक भी सेंटर का काम पूरा नहीं किया.

कदलीमूड़ा की सीएचओ प्रियंका नागरे ने बताया कि मुख्य द्वार के आगे चार टाइल्स के टुकड़े लगाए गए, सामने के हिस्से में मामूली रंगाई पुताई हुआ, एक सेड लगाया गया है, जो हवा आने पर हिलने लगा है. लोहे के कुछ हिस्से को बांस से जोड़ने का कारनामा भी किया गया है. इस सेंटर में 1 लाख 90 हजार का प्रावधान था, जिसमें से 1 लाख 35 हजार निकाल लिया गया और काम पूर्ण बता दिया गया. जबकि मौके पर केवल 60 से 70 हजार का काम नजर आ रहा है. इसी तरह ही निष्टिगुड़ा, माड़ागांव, सिनापाली, झाखरपारा, दीवानमूड़ा के काम भी में जमकर अनियमितता बरती गई है.

इंजीनियर गोरे लाल पैकरा ने कहा कि काम के अनुपात में ही सभी जगह के रनिंग बिल निकाला गया है. कदलीमूडा का पूर्ण हो चुका है उसका फाइनल निकलना बाकी है.

मामले में आरईएस के एसडीओ आर के शर्मा ने कहा कि अभी रनिंग बिल निकला होगा. फाइनल नहीं निकला है, अगर गड़बड़ी है तो पैसे रोक दिए जाएंगे. आवश्यक कार्यवाही भी होगी.

12 सेंटर का काम हाउसिंग बोर्ड को दिया- सीएमएचओ

सीएमएचओ ने कहा कि जीर्णोद्धार कार्य तय स्टीमेट के आधार पर नहीं हो रहा है. मानक का भी ध्यान नहीं रखा गया. स्टाफ से मिली शिकायत के आधार पर नए 12 सेंटरों के लिए प्रस्तावित 26 लाख 41 हजार के काम को हाउसिंग बोर्ड को दिया जा रहा है. सेंटरों का स्ट्रकचर पूरा होने के बाद अन्य सभी जरूरी सुविधा मुहैया कराई जाएगी.

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