रायपुर। पीएफ की राशि निकालने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में दोषसिद्ध दो कर्मचारियों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने सीबीआई स्पेशल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए दोनों आरोपियों को बरी कर दिया. हालांकि कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत पर रहने का निर्देश दिया है.


मामला SECL सुराकछार खदान के कार्मिक प्रबंधक कार्यालय का है. यहां पदस्थ दोनों कर्मचारियों पर एक बर्खास्त कर्मचारी ने रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था. शिकायतकर्ता ने बताया कि सीएमपीएफ राशि जारी करने के लिए पहले 10 हजार रुपये की मांग की गई, लेकिन असमर्थता जताने पर 3 हजार और बाद में 2 हजार रुपये पर सौदा तय हुआ.
शिकायत के बाद सीबीआई ने 8 नवंबर 2004 को ट्रैप कार्रवाई कर मामला दर्ज किया था. ट्रायल के बाद स्पेशल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को IPC की धारा 120B और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 13(1)(D), 13(2) के तहत डेढ़ साल कैद और 3 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी.
आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की. सुनवाई में बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि अभियोजन ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत आवश्यक स्वीकृति नहीं ली. साथ ही रिश्वत की रकम आरोपियों के कब्जे से नहीं बल्कि स्टोर रूम से बरामद हुई. सीबीआई और शिकायतकर्ता के बयानों में विरोधाभास का भी मुद्दा उठाया गया.
सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस रजनी दुबे ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत दी गई दोषसिद्धि और सजा टिकाऊ नहीं है. इसलिए दोनों आरोपियों को बरी किया जाता है.
हालांकि कोर्ट ने शर्त लगाई कि आरोपी 25-25 हजार रुपये का व्यक्तिगत बंधपत्र और उतनी ही राशि का जमानतदार प्रस्तुत करेंगे. यह बंधपत्र 6 माह तक प्रभावी रहेगा. साथ ही यदि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील होती है, तो आरोपियों को वहां उपस्थित होना होगा.
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