वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” मानते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपए जुर्माना लगाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा, न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने इस बात पर कड़ी नाराजगी जताई कि वादी ने पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए अपना वकील बदल लिया, जबकि मूल मामले में बहस किसी कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुनर्विचार याचिका का दायरा सीमित होता है और इसे अपील की तरह फिर से सुनवाई के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता संजीव कुमार यादव सरकारी कर्मचारी हैं। जिला पंचायत, जशपुर और कमिश्नर, सरगुजा संभाग ने 2017 और 2018 में उनके खिलाफ विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर चार वार्षिक वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) को संचयी प्रभाव से रोकने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता ने इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसमें तर्क दिया कि उन्हें गवाहों से जिरह का मौका नहीं दिया गया और जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ थी। 23 जनवरी 2025 को सिंगल बेंच ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जांच निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार की गई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने रिट अपील दायर की, जिसे खंडपीठ ने 18 मार्च 2025 को खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसकी विशेष अनुमति याचिका 8 अगस्त 2025 को खारिज हो गई। उसने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह पुनर्विचार याचिका दायर की। याचिका में दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को शुरुआती स्तर पर खारिज किया था, गुण-दोष के आधार पर नहीं इसलिए हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती। याचिका में कहा गया कि कोर्ट के 18 मार्च 2025 के आदेश में तथ्यात्मक त्रुटि है। उन्होंने दावा किया कि हाईकोर्ट के आदेश में यह उल्लेख गलत है कि जांच रिपोर्ट 9 जून 2016 को प्राप्त हुई थी, जबकि उन्हें सजा के आदेश से पहले रिपोर्ट कभी दी ही नहीं गई थी।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को अस्वीकार करते हुए विशेष रूप से ‘वकील बदलने’ की प्रवृत्ति पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने हर स्तर पर अलग वकील नियुक्त किया इसलिए साफ है कि याचिकाकर्ता भ्रामक याचिका दायर करके और अलग वकील नियुक्त करके कोर्ट का कीमती समय बर्बाद कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका 2 लाख रुपए के हर्जाने के साथ खारिज किए जाने योग्य है। हालांकि वकील द्वारा बार-बार बिना शर्त माफी मांगने पर विचार करते हुए कोर्ट ने हर्जाने की राशि घटाकर 50 हजार रुपए कर दी, जो याचिकाकर्ता द्वारा इस कोर्ट की रजिस्ट्री में देय होगा और इसे शासकीय विशिष्ट विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण, गरियाबंद को भेजा जाएगा। याचिकाकर्ता को यह राशि एक महीने के भीतर जमा करनी होगी अन्यथा इसे भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाएगा।
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