अंबिकापुर. परसा कोल खदान को शुरू कराने को लेकर ग्रामीणों के प्रतिनिधि मंडल ने सोमवार को आंदोलन किया. उन्होंने हाथों में बैनर और पोस्टर लेकर खदान खोलने और नौकरी देने के लिए प्रर्दशन किया. जनार्दनपुर के समयलाल ने बताया कि कोयला खनन के लिए जमीन देने के बाद उनकी सारी उम्मीद अब इस बात पर है कि उन्हे खनन प्रोजेक्ट में नौकरी मिलेगी. घाटबर्रा गांव के संभूदयाल यादव ने कहा कि यहां जल्द खनन शुरू होना चाहिए. ताकि उन्हे और उनके जैसे बाकी लोगों को नौकरी मिल सके.
परसा कोयला खदान खोलने के लिए प्रदेश सरकार की अनुमति मिलने के बाद जहां ग्रामीण अपने रोजगार के प्रति आशातीत हो गए हैं, वहीँ बाहरी एनजीओ के लोग फिर ग्रामीणों की उम्मीदों में पानी फेरने की फिराक में लगे हुए हैं. परसा कोयला परियोजना के ग्राम जनार्दनपुर, साल्हि, परसा, घाटबर्रा, फत्तेपुर इत्यादि गांव के हजारों प्रभावित ग्रामीणों द्वारा खदान जल्द से जल्द खोलने के पक्ष में सरगुजा जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया गया था. साथ ही बाहरी एनजीओ और सदस्यों को उनके गांव में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. जिसके बाद प्रदेश सरकार ने मंजूरी की प्रक्रिया में तत्काल कार्रवाई करते हुए परसा खदान को शुरू कराने की अनुमति दे दी गई. लेकिन बाहरी एनजओ के सदस्यों को यह बात नागवार गुजारी और इन्होने इस मंजूरी का विरोध करते हुए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. इनके इस काम से परेशान भूविस्थापित एक बार फिर एनजीओ का विरोध और कार्रवाई के लिए धरने पर बैठ गए हैं.
रोजगार की आस में दे दी थी जमीन
ग्रामीणों का कहना है कि 2020 में उन्होंने अपनी जमीन परसा खदान के विकास के लिए खुशी-खुशी राजस्थान सरकार के विद्युत् उत्पादन निगम को दे दी थी. इस उम्मीद से कि खदान खुलने से उन्हें रोजगार भी मिलेगा. इसके लिए उन्होंने उच्च अधिकारियों की मौजूदगी में हुई ग्रामसभा में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए परसा खदान को समर्थन दिया था. लेकिन अब तक खदान न खुलने से वे नौकरी का इंतजार कर रहे है. अब दो साल बाद ही सही लेकिन प्रदेश सरकार को ये मांग माननी ही पड़ी.
खदान खुलवा कर ही दम लेंगे- ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि अब वे खदान खुलवा कर ही दम लेंगे. उन्होंने कहा कि इस धरना स्थल से खदान के विरोधी एनजीओ और उसके बाहर से लाए हुए लोगों को हम सभी ग्रामवासी विरोध करते हैं. परसा क्षेत्र में सौहादपूर्ण वातावरण होने के बावजूद, पेशेवर कार्यकर्ता ने बाहरी तत्वों के साथ मिलकर खड़े किेए विवादों के कारण ही राजस्थान सरकार परसा खदान समय से शुरू नहीं कर पाई थी. इसके चलते हम स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिलने पर अब तक जमीन के मुआवजे पर ही निर्भर होना पड़ा है. जिससे हमारा भविष्य अंधकारमय हो रहा था. ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि इन बाहरी एनजीओ को हमारे गांव में प्रवेश में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करते हुए परसा खदान जल्द से जल्द शुरू कराई जाए.
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उग्र आंदोलन की चेतावनी
गौरतलब है कि परसा कोयला परियोजना को लेकर शुरुवात में कुछ हलचल के बाद सैकड़ों ग्रामीणों द्वारा रोजगार की आश जगने लगी थी. जब परियोजना के काम में एक बार फिर अवरोध की सूचना जैसे ही मिली सभी जमीन प्रभावितों का गुस्सा फूट पड़ा। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने खदान के समर्थकों ने फिर नौकरी की मांग के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है. वहीं बेरोजगार युवकों ने जल्द नौकरी न मिलने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की भी चेतावनी दी है.
राजस्थान सरकार को दिया ज्ञापन
साल्हि गांव के निवासी वेदराम ने कहा कि ‘हम परसा कोल माइंस को जमीन देकर मुआवजा भी उठा लिए हैं. मैं राजस्थान सरकार को यह ज्ञापन दे रहा हूं कि हमें अब जल्द से जल्द नौकरी दिया जाए’ ग्रामीणों ने बताया कि पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन योजना के तहत उन्होंने रोजगार का विकल्प का चयन किया है. ताकि जल्दी से उन्हें रोजगार मिले. लेकिन पिछले 3 सालों से हम इसका इंतजार कर रहे हैं. अब तो हमारी जमा पूंजी भी गुजर बसर में खर्च होने लगी है.
राजस्थान को आवंटित हुआ है ये कोल ब्लॉक
छत्तीसगढ़ राज्य में भारत सरकार द्वारा अन्य राज्य जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, राजस्थान को कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है. जिसमें राजस्थान सरकार के 4400 मेगावॉट के ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों के लिए सरगुजा जिले में तीन कोयला ब्लॉक परसा ईस्ट, केते बासेन (पीईकेबी) परसा और केते एक्सटेंशन आवंटित हुआ है. इन तीन में से अभी फिलहाल पीईकेबी (block Parsa Kente Colliery Ltd.) में ही कोल खनन का काम चल रहा है. जबकि बाकी दो में अनुमति की प्रक्रिया राज्य सरकार में पिछले तीन सालों से अटकी हुई थी.
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