प्रतीक चौहान. रायपुर. आय से अधिक संपत्ति के मामले में प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस ऑफिसर गुरजिंदर पाल सिंह उर्फ जीपी सिंह के करीब 10 ठिकानों में एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम छापे मार कार्रवाई कर रही है.

सूत्र बताते है कि उनके खिलाफ कई गंभीर शिकयातें मिली थी. उनके बेहद करीबी एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर जीपी सिंह से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियां लल्लूराम डॉट कॉम से शेयर की है.

वे बताते है कि जीपी सिंह बचपन के दिनों में वे पढ़ाई में भी काफी कमजोर थे. आईपीएस ऑफिसर बनने से पहले जीपी सिंह मैकेनिकल इंजीनियर थे. दसवी के बाद बारहवी तक की पढ़ाई उन्होंने कटक के एक कॉलेज रवीनशॉ कॉलेज से पूरी की. इसके बाद उन्होंने ओजेईई ( ओड़िशा ज्वाईंट इंट्रेंस एग्जामिनेशन) की तैयारी शुरू की.

उक्त सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि जीपी सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई एनआईटी राउरकेला से पूरी की है और उन्होंने टेलको, सेल, एलएंडटी जैसी कंपनियों में नौकरी भी की है.

इसके बाद जब उक्त कंपनी में से एक ने उन्हें विदेश में नौकरी करने का ऑफर दिया तो पारिवारिक कारणों से उन्होंने ने ये ऑफर ठुकरा दिया और फिर सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू की.

इस कारण से भी चर्चा में थे जीपी सिंह

2002 बैच के आईपीएस अधिकारी राहुल शर्मा का शव 12 मार्च 2012 को बिलासपुर पुलिस ऑफिसर्स मेस में पाया गया था. तब वे तत्कालीन बिलासपुर एसपी थे. उन्होंने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली थी. इस मामले में की जांच में सीबीआई ने किसी को दोषी नहीं ठहराया था लेकिन राहुल शर्मा को आत्महत्या की नौबत तक प्रताड़ित करने का आरोप उस समय के रेंज आईजी जीपी सिंह पर लगे थे.

छापे में कुछ और तलाश भी !

उक्त वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आय से अधिक संपत्ति के इस मामले में छापा मारने गई टीम को कुछ और भी तलाश है. उनका तो यहां तक दावा है कि इस छापेमार कार्रवाई के तार पिछले दिनों एक पत्रकार के घर पड़े छापे से भी संभवतः जुड़ते है. खैर, अब इस छापे में उनके घर से कितनी संपत्ति मिली इसका खुलासा देर शाम तक होने की उम्मीद है.

कई दिनों से चल रही थी छापे की तैयारी ?

सूत्र बताते है कि इस छापे की तैयारी महीनों से की जा रही थी. इस विभाग में पहले पदस्थ जीपी सिंह से जुड़े कुछ लोगों के तबादले किए गए. उन तबादलों को भी अब इस कार्रवाई से जोड़कर देखा जा रहा है कि छापे की सूचना पहले न मिले इसलिए इसे विश्ववसनीय अधिकारियों तक ही सीमित रखा गया था.