रायपुर। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का आज दुर्ग से मंगल विहार हुआ। आचार्यश्री का दुर्ग में दो दिवसीय प्रवास जैन शासन की प्रभावना युक्त रहा। विहार में गुरुदेव के प्रस्थान पर श्रद्धालु जन भाव-विभोर हो उठे। कई स्थानों पर निवास एवं प्रतिष्ठानों के समक्ष पूज्य गुरुदेव ने मंगलपाठ फरमाया एवं आशीष दिया। एक जगह जब आचार्यश्री को निवेदन किया गया कि एक वयोवृद्ध श्राविका शारीरिक अक्षमता के कारण दर्शन करने नहीं आ सकती, तब गुरुदेव कृपा कर स्वयं उनके निवास पर पधारे एवं मंगल आशीर्वाद दिया।

करूणासागर की करूणा देख हर कोई नतमस्तक हो उठा। मार्गवर्ती मैत्री डेंटल एण्ड रिसर्च काॅलेज के छात्र-छात्राओं ने भी अहिंसा यात्रा प्रणेता के दर्शन किए। गुरुदेव ने उन्हें जीवन में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति अपनाने के लिए प्रेरित किया। चिलचिलाती धूप में लगभग 13 कि.मी.का विहार कर आचार्यश्री टेडेसरा ग्राम के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में पधारे।

मंगल प्रवचन में आचार्य प्रवर ने कहा कि इच्छा आकाश के समान अनंत होती है। इसका कोई न तो प्रारंभ है और न ही अंत। असंतुष्ट व्यक्ति सदा संताप में डूबा रहता है। वह कभी राजी नहीं होता। शास्त्रों में कहा है कितना भी मिलने पर भी जो संतुष्ट नहीं बनता वह अपंडित व जिसमें संतुष्टि का भाव रहता है वह पंडित व ज्ञानी होता है। अतः पदार्थ के प्रति संतोष का भाव रखना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार जितना ही रखना संयम और संतोष की वृत्ति व उससे ज्यादा अनावश्यक रखने वाले को चोर के समान कहा गया है। खूब खाकर क्षुधा विजय कैसे हो सकती है ? जो मिला उसमें संतोष रखना चाहिए।

पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि साधु गौचरी के लिए जाता है, पर जितना मिल गया उसमें संतुष्टि का भाव रखता है। भगवान महावीर ने अभिग्रह किया, पर अभिग्रह न फलने पर भी मन में कोई अशान्ति नहीं हुई। इसी प्रकार भगवान ऋषभ ने भी आहार के अभाव में बारह महीने तक वर्षीतप किया। श्रावक भी इच्छाओं का परिमाण करें, जीवन में संतोष बड़े यह काम्य है।

सायंकाल लगभग 3.8 कि.मी. विहार कर परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमनी गांव शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पधारे। कल दिनांक 4 मार्च को राजनांदगांव में गुरुवर का पदार्पण होगा। जहां दो दिवसीय प्रवास संभावित है।