रायपुर। भारत जैसे देश में खनन और कोयले का आर्थिक प्रगति और उच्च जीवन स्तर से सीधा सम्बन्ध है. सरकार और निजी क्षेत्र के अथक प्रयास से खनन का योगदान देश की अर्थव्यवस्था में काफी ज्यादा हो गया है. ना सिर्फ ऊर्जा उत्पादन में बल्कि रोजगार पैदा करने मे भी खनन ने काफी योगदान दिया है. खनन क्षेत्र को और अधिक मजबूत करने के लिए सरकार ने कुछ समय पहले खनन विकासकर्ता और परिचालक (एमडीओ) मॉडल की स्थापना की. कुछ ही सालों में इस मॉडल ने अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है.

उल्लेखनीय है कि भारत अपनी बिजली की करीब 80 प्रतिशत जरूरत कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से पूरी करता है. MDO द्वारा खनन विकास में निजी क्षेत्र को अनुमति मिलने के बाद न सिर्फ बिजली की कीमतों पर नियंत्रण पाया जा सका है, बल्कि साथ ही साथ देश भर में ऊर्जा उत्पादन को भी काफी बल मिला है. कोयले और खनन क्षेत्र की देश की प्रगति, ऊर्जा उत्पादन तथा सामर्थ्य में काफी बड़ी भूमिका है.

अफ़सोस की बात है की भारत में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार होने के बावजूद अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. कोयला मंत्रालय के पास कोयला भंडार की खोज और विकास के संबंध में नीतियों और रणनीतियों को निर्धारित करने, उच्च मूल्य की महत्वपूर्ण परियोजनाओं को मंजूरी देने Qj संबंधित सभी मुद्दों को तय करने के लिए एक समग्र जिम्मेदारी है, जिसे प्रशासनिक नियंत्रण के तहत, इन प्रमुख कार्यों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ( पीएसयू) के माध्यम से किया जाता है. कोयला मंत्रालय द्वारा पीएसयू और माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) के बीच निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी चयन प्रक्रिया (Open and competitive bidding) के माध्यम से कोयला खनन समझौते पर हस्ताक्षर कर एमडीओ प्रदान किए जाते हैंं.

MDO खानों के संचालन के लिए अपनाया गया एक मॉडल है, जिसने अपनी तकनीकी विशेषज्ञता के साथ, कोयला ब्लॉकों के तेजी से संचालन को सक्षम बनाया है. भारत में एमडीओ मॉडल को सीमित संसाधनों के कारण अपनाया गया था, जिसने भारतीय बाजारों के निजीकरण और उदारीकरण के बाद से, खनन संचालन व उत्पादन में सुधार के लिए एक अधिक पूंजी कुशल तरीका था. सरकार ने इस क्षेत्र में निजी भागीदारी को आकर्षित करने के प्रयास किए हैं.

निजी खिलाड़ियों को एमडीओ ठेकेदार या उप-ठेकेदार खनन पट्टे के मालिक की भूमि अधिग्रहण, आर एंड आर, खदान योजना से लेकर खदान के विकास और संचालन व साइलो लोडिंग तक कोयला परिवहन इत्यादि सभी गतिविधियों को अंजाम देता है, जिसने उत्पादन स्तर तीव्रता से प्रभावित किया है.  MDO आम भाषा में एक तरह की पब्लिक – प्राइवेट पार्टनरशिप है, जिसके तहत निजी कम्पनियाँ कोयले की खुदाई, प्रसंस्करण इत्यादि के लिए राज्य सरकार की खदानों में काम करती हैं.

भारत में कुल 26 एमडीओ (जिसे कोयला मंत्रालय के वेबसाइट में जाकर देखा जा सकता है) हैं, जिसमें से 16 केवल छत्तीसगढ़ में कोयला उत्खनन का कार्य कर रही हैं. इन खदानों का पूर्ण स्वामित्व राज्य सरकार के पास होता है. खदानों से निकलने वाले कोयले को किस कार्य में लगाना है. ये भी राज्य सरकार ही तय करती है. निजी क्षेत्र की कंपनी का दायित्व ये होता है कि वो खदानों का सञ्चालन एक व्यवस्थित तरीके से करे. वहां पर खनन से सम्बंधित हर तरह के मापदंड का पूर्ण रूप से पालन करे.

वर्तमान महामारी के मद्देनज़र, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नए सुधारों की घोषणा की गई, जिससे क्षेत्र के उदारीकरण और वाणिज्यिक खनन की शुरूआत के सांथ एक ‘आत्मनिर्भर भारत’ का मार्ग प्रशस्त हुआ, जहां सरकार का प्रस्ताव, भविष्य में कोयला क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा, पारदर्शिता और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से निश्चित रुपया प्रति टन का भाव शासन के बजाय एक राजस्व साझाकरण तंत्र के अंतर्गत संचालन का है.

यह भी प्रस्तावित है कि कोई भी पार्टी कोयला ब्लॉक के लिए बोली लगा सकती है और इसे खुले बाजार में बेच सकती है. इस प्रकार, यह महत्वपूर्ण बदलाव इस क्षेत्र के संचालन में एमडीओ मॉडल की भूमिका काफी दिलचस्प होगी.

पिछले कुछ सालो में केंद्र सरकार ने इस बात पर काफी ध्यान दिया है कि भारत कोयला खनन में आत्मनिर्भर बने और इसके लिए निजी क्षेत्र के साथ एक सफल साझेदारी की योजना बनाई गई. भारतीय खनिज और ख़ास तौर पर कोयला खनन क्षेत्र में माइनिंग डेवलपर एंड ऑपरेटर (MDO) पिछले कुछ सालों में एक सफल मॉडल के तौर पर उभरा है.

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