कांकेर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी दो पाटों के बीच पिस रहे हैं. एक तरफ नक्सली तो दूसरी तरफ बेहरम प्रशासन. यही वजह कि नक्सलियों से पीड़ित परिवारों का अब गुस्सा फूट पड़ा है. नक्सल पीड़ित परिवारों का सरकारी व्यवस्था से आक्रोश इतना है कि अब वे कहने लगे हैं कि सरकार मदद नहीं कर सकती तो गोली मार दे.

नक्सल पीड़ित परिवारों का फूट पड़ा गुस्सा

नक्सल पीड़ित परिवारों की ओर से यह बयान आज भानुप्रतापपुर में सामने आया. पीड़ित परिवार के लोगों ने आज बैठक की. बैठक के बाद उन्होंने तय किया कि दिल्ली में जाकर अब अपनी मांगों को लेकर धरना देंगे. पीड़ित परिवारों की मांग है कि सरकार की ओर 2004 में नक्सल पीड़ित परिवारों के लिए जो पुर्नवास नीति बनाई गई थी. उसके तहत उन्हें मदद दी जानी चाहिए, लेकिन मदद नहीं दी जा रही.

नक्सल पीड़ित परिवार के जीआर विश्वकर्मा का कहना है कि 2009 में जब वे मलेरिया वर्कर के तौर पर नक्सल क्षेत्र में कार्यरत थे तभी नक्सली उनको उठाकर ले गए थे. नक्सलियों ने उन पर तीन गोलियां चलाई थी. नक्सली मुझे मरा हुआ समझकर छोड़ कर चले गए थे. लेकिन भगवान की कृपा से मैं बच गया. इस घटना के बाद मैंने जंगल में नौकरी छोड़ दी. मैं नक्सलियों के डर से शहर आ गया. मुझे बाद में पुनर्वास नीति के तहत पुलिस विभाग में गोपनीय सैनिक के तौर पर नियुक्त किया गया, लेकिन सिर्फ कागजों में है. मैं बीते 10 साल से संघर्ष कर रहा हूं.

वे बताते हैं कि कांकेर जिले में करीब 420 नक्सल पीड़ित परिवार हैं जिनमें से सिर्फ 27 परिवारों को ही पुनर्वास नीति का लाभ मिला है. बाकी अभी सरकारी मदद को तरस रहे हैं. भानुप्रतापपुर में कई परिवार हैं जो रेलवे ट्रैक किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. इसी तरह से शहर के कई हिस्सों में पीड़ित परिवार के लोग रहते हैं.

नक्सल पीड़ित परिवार की है कंचन कहती हैं कि गामव में उनके पास घर और खेती सब है. लेकिन गाँव वे अपने परिवार के साथ जा नहीं सकती. जाएंगी तो नक्सली मार देंगे. मजबूरी है कि शहर में रहना पड़ रहा है.

इसी तरह की पीड़ा सुधा ध्रुव भी व्यक्त करती हैं. वो कहती हैं कि किसी भी तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा. उन्हें गरीबी रेखा के नीचे नहीं रखा गया. जबकि न तो घर है और न ही नौकरी. बच्चों को भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा.

नक्सल पीड़ित परिवार के सदस्य गुस्सा जाहिर करते हुए कहते हैं कि चुनाव के दौरान नेता हाथ जोड़े-जोड़े दौड़-दौड़ के आते हैं, लेकिन विधायक, सांसद, मंत्री बनने के बाद सब भूल जाते हैं.

हम सब नेताओं के आश्वासन सुन-सुन तक चुके हैं. रायपुर जाकर धरना भी दे चुके हैं. कहीं सुनवाई नहीं हो रही. अब दिल्ली में जाकर धरना देंगे.

हम तो कहते हैं कि गांव जाने पर नक्सली मार रहे हैं. इधर शासन और प्रशासन. सरकार मदद नहीं कर सकती तो बेहतर है गोली मार दे.

पुनर्वास नीति के तहत सुविधाएं ?

पुर्नवास नीति के तहत ग्रामीण क्षेत्र में आवास, स्वरोजगार हेतु ऋण, कृषि योग्य भूमि, शहरी क्षेत्र में आवास, स्वरोजगार के लिए नजूल पट्टा, छात्रवृत्ति, नौकरी, यात्री किराये में छूट, महिला एवं बाल विकास योजनाओं का लाभ, , खेती के लिए जमीन उपलब्ध कराना, राशन कार्ड उपलब्ध कराना समेत कई सुविधाएं हैं, लेकिन नक्सल प्रभावित परिवारों का कहना है कि उनको किसी तरह की सुविधाएं नहीं मिल रही है. अब वे दिल्ली में धरना प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे हैं.

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