आलेख। वॉट्सएप पर ये एक संदेश घूम रहा है. ये दरअसल एक फेसबुक पोस्ट है.पोस्ट के कंटेंट से ही दिखता है कि ये अत्यंत त्यागशील व्यक्ति हैं जिन्होंने एलपीजी की सब्सिडी का त्याग किया और देश की आर्थिक उन्नति में योगदान दिया. ये एलपीजी की सब्सिडी का त्याग कर सकते हैं लेकिन अगर समाज की अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को पहले टीका लगे तो इन्हें आपत्ति है!यह पूछना गैरजरूरी है कि ये छत्तीसगढ़ सरकार की बिजली बिल हाफ योजना का लाभ तो उठा ही रहे होंगे या नहीं ?
ये जो भी हैं पर ऐसा सोचने वाले ये अकेले नहीं हैं.और भी लोग हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री की अपील पर गैस सब्सिडी का त्याग किया था लेकिन आज गरीब के वैक्सीनेशन पर छटपटा रहे हैं.पर ये थोड़े से हैं लेकिन इतने हैं कि आईटी सेल इनकी पोस्ट को घुमाता रहता है. ये अनायास नहीं है. एक राजनीतिक दल,एक विचारधारा लोगों को ऐसा समझाने में लगी हुई है .
इस पर बात होनी चाहिए और बेहिचक खुल कर होनी चाहिए. बल्कि तब तो और होनी चाहिए जब सुनियोजित रूप से कोई वैक्सीनेशन की छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार की मुनाफाखोरीमुक्त, जनकल्याणकारी योजना के खिलाफ कुतर्कपूर्ण दुष्प्रचार कर रहा हो !
अगर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह फैसला किया है कि कोरोना के टीके सबसे पहले अंत्योदय परिवारों को लगाए जायेंगे तो क्या इसका यह मतलब हुआ कि वे निम्न मध्यम ,मध्यम या संपन्न लोगों को टीका लगवाने के पक्ष में नहीं हैं ? क्या इसका मतलब ये हुआ कि वो पढ़ी लिखी बहु बेटियों के टीकाकरण के पक्षधर नहीं हैं ? कितनी बेहूदी,अमानवीय और हास्यास्पद कल्पना है !
जब दुनिया हिंदुस्तान के सूरत ए हाल पर चिंतित है,मदद के लिए आगे आ रही है, तब हिंदुस्तान के एक राज्य छत्तीसगढ़ में एक तबका नए जनविरोधी नैरेटिव गढ़ने में जुट गया है!
दुखद यह है कि कुछ और लोग भी इन तर्कों का इस्तेमाल करने लगे हैं, यह भूल कर कि इस भीषण मानवीय त्रासदी के बीच क्या किसी भी लोकतांत्रिक समाज में कोई ऐसा सोच भी सकता है ? यह भूल कर कि जो संपन्न हैं वो सितारा सुविधाओं से लैस निजी अस्पतालों में जा कर टीके लगवा सकते हैं.निजी संस्थानों के लिए विभिन्न कंपनियों के टीके बुलवाने ,लगवाने के रास्ते खुले हैं .
लेकिन कुछ लोग सबसे गरीब को सबसे पहले टीकाकरण के इस फार्मूले पर सवाल उठा रहे हैं.
दिलचस्प है!
दिलचस्प इनका सवाल उठाना नहीं ,दिलचस्प इस कथित त्यागशील तबके का एक बार भी केंद्र सरकार से ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह सवाल नहीं पूछना है कि कहां है वैक्सीन ?
इस तबके को क्या कभी मोदी सरकार से यह सवाल करते पूछा गया है कि आज दिल्ली में ऑक्सीजन के अभाव में लोग तड़प तड़प कर मर रहे हैं , इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या इस तबके ने कभी पूछा कि जब देश के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम करना था तब मोदी सरकार विदेशों को और खासतौर पर बांग्लादेश को ऑक्सीजन का निर्यात क्यों कर रही थी ? क्या इस तबके ने कभी यह सवाल किया कि जब देश को बचाना था तब क्यों आप भीड़ भरी चुनावी सभा देख कर गदगद हो रहे थे?
देश भर में जलती चिताएं,कब्रिस्तानों में दफनाई जा रहीं लाशें देख कर इस तबके ने शायद कभी ये नहीं पूछा होगा कि हे प्रधानमंत्री जी साल भर क्या किया ?कितने ऑक्सीजन प्लांट लगाए?कितने अस्पताल बनवाए ? चीन को पीछे छोड़ने की तमन्ना रखने ,दावा करने वाले हे विश्वगुरु चीन की तरह कुछ दिनों में अस्पताल खड़े करने की भारत की भी ठोस क्षमताओं का कितना उपयोग किया ?
ये मामूली सवाल नहीं हैं! ये आजादी के बाद से दूरदृष्टि और ठोस क्षमताओं के साथ विकसित आत्मनिर्भर हिंदुस्तान की क्षमताओं को आपराधिक अदूरदर्शिता के साथ तबाह कर देने की आत्ममुग्ध कोशिशों के बड़े सवाल हैं .
वो भी आत्मनिर्भर भारत के नाम पर ! दुनिया में इससे ज्यादा शर्मनाक भारत की स्थिति कभी नहीं थी ,पर इस कथित त्यागशील तबके को ये सवाल कभी सूझते ही नहीं !
एक तरफ एक मुख्यमंत्री है जिसने केंद्र से आए डेढ़ लाख टीकों को अपने नागरिकों को लगवाने का एक फॉर्मूला तय किया. ये वैज्ञानिक आधार पर लिया गया बहुत सुविचारित और विवेकपूर्ण फैसला नजर आता है.इस फैसले में वायरस को स्प्रेड होने से रोकने के उपायों के तहत संभावित स्प्रेडर्स की भी शिनाख्त कर उन्हें टीका लगाने का भी मकसद साफ नजर आता है.
दूसरी ओर ये उन नागरिकों के लिए लिया गया फैसला है जो न महंगे अस्पतालों में जा सकते, न महंगा इलाज करवा सकते, न महंगे इंजेक्शन या ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर खरीद कर अपने घरों में रख सकते ,जिन्हें विटामिन युक्त वो पौष्टिक भोजन भी नसीब नहीं है जो सब्सिडी त्यागी लोगों को नसीब है..ये वो तबका है जिसके लिए सब्सिडी जीवन का सहारा है,ताकत है,सामाजिक तौर पर उत्थान का जरिया है! ये तबका उन जन कल्याणकारी नीतियों के ही सहारे जिंदगी बसर करता है जिसकी नींव आजादी के बाद से गांधी जी या नेहरू जी ने रखी थी।
ये उस मनरेगा जैसी योजनाओं से ताकत हासिल तबका है जिसका उपहास प्रधानमंत्री जी ने भरी संसद में उड़ाया था और हकीकत यह है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में मनरेगा जैसी योजनाओं ने ,किसानों के लिए राजीव न्याय योजना या गोबर खरीदी जैसी योजनाओं ने गरीब को आत्मनिर्भर बनाया, स्वाभिमान से जीने की ताकत दी !वरना तो केंद्र सरकार की अविवेकपूर्ण नीतियों ने देश को आर्थिक से लेकर स्वास्थ्य तक किस मोर्चे पर तबाह नहीं कर रखा है?लेकिन हमारे कथित त्यागशील ये थोड़े से नागरिक कभी प्रधानमंत्री से ये सवाल नहीं करते कि बहुत हुई महंगाई की मार जैसे नारे क्या बंगाल की खाड़ी में डुबो दिए गए ? इन त्यागशीलों ने ही तो नोटबंदी के पक्ष में ऐसे ऐसे तर्क गढ़े थे कि लगा था कालाधन आ जायेगा, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा,आतंकवाद ,नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा!!!उस दिन भी इन्हें बैंकों और एटीएम के सामने लाइन में दम तोड़ता गरीब नजर नहीं आया था!उस दिन इन्हें वो बेटियां नहीं दिखी थीं जिनके हाथ पीले करने का सपना लिए बैंक के बाहर लाइन में लगा बाप हार्ट अटैक से मर गया था,क्योंकि उसकी जमापूंजी कागज़ का टुकड़ा हो गई थी! उस दिन तो इसी तबके के कुछ लोग बैंकों में पिछले रास्तों से अपने कागज़ के टुकड़ों को नोट बनाने में व्यस्त थे .
खुल कर कहना चाहिए कि ये गरीब विरोधी ऐसा संपन्न तबका है जिसे चीन का कर्ज तो भरपूर पसंद है लेकिन फुटपाथ पर दो चार रुपए के चीनी खिलौने बेचता या खरीद लेता गरीब देशद्रोही लगता है! ये गरीब विरोधी त्यागशील खुद को राष्ट्रभक्त भी कहते ही होंगे !इन्हें गरीब अर्थव्यवस्था पर बोझ लगता है !
क्या यह कोई छुपी हुई बात है कि सबसे पहले सबसे गरीब को टीका लगवाने का फॉर्मूला उस स्थिति में तय किया गया जब कोरोना की महामारी से निपटने में बुरी तरह विफल एक केंद्र सरकार टीके उपलब्ध कराने में भी नाकाम थी ? मुझे इस बात में संदेह नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री किसी राज्य को टीके उपलब्ध कराने में भेदभाव बरतेंगे लेकिन यह बात तो खुला सच है कि कोरोना से निपटने की हमारी तैयारियां आधी अधूरी ही हैं .ऐसी स्थिति में केंद्र से भी टीके इसी रफ्तार से आयेंगे. और सामान्य सी समझ रखने वाला व्यक्ति भी इस हकीकत को समझता है कि जैसे–जैसे टीके आयेंगे सभी को लगेंगे.
लेकिन हे त्यागशील महोदय क्या आप केंद्र सरकार से यह पूछना चाहेंगे कि पिछले बरस ही चीन से मिले अरबों डॉलर के कर्ज का कितना विवेकपूर्ण उपयोग हुआ? जी हां, चीनी माल का बहिष्कार करने की अपील करने वाले लोग यह याद नहीं रखते कि जब चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया था ,सीमा पर तनाव था,ठीक उसी समय भारत सरकार ने एक नहीं दो–दो बार चीन में स्थित बैंक से कोरोना से निपटने के लिए भी मोटा कर्ज लिया था और तब यह सवाल भी उठा था कि उस कर्ज का कैसा उपयोग केंद्र सरकार ने किया.
इसी तरह पिछले ही वर्ष अरबों डॉलर का कर्ज विश्व बैंक से मिला था.तब प्रकाशित एक खबर के मुताबिक – विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशकमंडल ने दुनियाभर के विकासशील देशों के लिए आपात सहायता के पहले सेट को मंजूरी दी है. इसके बाद विश्व बैंक ने कहा, ”भारत में एक अरब डॉलर की आपातकालीन वित्तीय सहायता से बेहतर स्क्रीनिंग, संपर्क का पता लगाने, प्रयोगशाला जांच, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण खरीदने और अलग से नये वार्ड बनाने में मदद मिलेगी.”( The economic Times )
आज प्रारंभिक तौर पर गरीब को टीके के खिलाफ खड़े हुए राजनीतिक पैंतरेबाजों को क्या केंद्र सरकार से पूछना नहीं चाहिए कि अरबों ,खरबों डॉलर का कर्ज ,देश के अपने संसाधन, फिर भी देश में ऐसी तबाही क्यों ? क्यों आज दुनिया में इस महादेश की पहचान जलती चिताएं बन गईं हैं?
आजादी के बाद अपनाए गए जिस नेहरू मॉडल का उपहास एक विचारधारा उड़ाती है क्या ये सच नहीं है कि अगर वो मॉडल न होता तो देश की हालत की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ? देश को तो घंटों ,घंटियों और ताली थाली में झोंक दिया गया होता! अगर ऐसे संकट में किसी चीज का सहारा था तो केवल अनुसंधान के महत्वपूर्ण संस्थान ,आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं और वैज्ञानिक दृष्टि का ही ! क्या ये सच नहीं है ? क्या केंद्र सरकार से सवाल नहीं होने चाहिए ? लेकिन दिक्कत यह है कि इस देश में विवेक पर,विमर्श पर,वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर और सवालों पर ही तो संकट के बादल हैं! ऐसा न होता तो आज पहला सवाल मोदी सरकार से होता कि क्या तैयारियां की साल भर में ? पूछा जाता कि जिस कंपनी को देश का पैसा दिया वैक्सीन विकसित करने के लिए, वही कंपनी देश की जनता के साथ मुनाफाखोरी क्यों कर रही है ? क्यों वो कंपनी सबसे महंगा वैक्सीन हिंदुस्तानियों को ही बेच रही है ? उस कंपनी की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वो इस महादेश को ब्लैकमेल करने लगे ?ऐसा इसलिए कि दुनिया को हम साफतौर पर एक अमीरपरस्त ,मुनाफाखोर व्यवथा के पोशक नजर आ रहे हैं !
और बड़ा सवाल तो यह भी होना चाहिए कि क्यों नहीं टीकाकरण के राष्ट्रीय अभियान का सारा जिम्मा केंद्र को ही उठाना चाहिए ? क्यों केंद्र ने सारा कुछ सीमित संसाधनों वाले राज्यों के भरोसे छोड़ दिया?
गरीबों की प्राथमिकता पर सवाल उठाने वाले ये लोग केंद्र सरकार से सवाल इसलिए भी नहीं करेंगे क्योंकि इनकी क्षमता है वैक्सीन खरीदने की ; ये तो उस एजेंडा के तहत आगे आए हैं कि भारत की इस भीषण मानवीय त्रासदी ,तबाही ,निर्मम निकम्मेपन और आपराधिक अदूरदर्शिता के लिए कोई मोदी सरकार को जिम्मेदार ना ठहराए! ये वो लोग हैं जो इस देश में लोकतंत्र की जलती चिताओं में विवेक और सवालों को भी जला डालना चाहते हैं .ना भी चाहते होंगे तो अनजाने में भी ये उसी गरीब विरोधी,मुनाफाखोर और जमाखोर परस्त ,अदूरदर्शी अधकचरेपन के साथ ही खड़े हैं जिसे मीडिया का एक हिस्सा आज सिस्टम बताने की कोशिश कर रहा है.ये अगर राजनीति है तो यह राजनीति दरअसल गरीबों के कल्याण के खिलाफ वैश्विक षड्यंत्र के तहत प्रचारित कुतर्कों से भी प्रभावित दुष्प्रचार है.
इन सब का बहुत सीधा जवाब है – वैक्सीन आते जाएगी और हर नागरिक को लगते जाएगी.बहु ,बेटी सबको !
लेकिन ऐसे सवालों को उछालने वालों को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि देश आपके मामूली से सब्सिडी त्याग से खड़ा नहीं है .आप जिस तबके के प्रतिनिधि हैं न वो तबका गैस की मामूली सब्सिडी को बड़ा त्याग बता कर बैंकों से या आयकर विभाग से क्या बचा ले जाता है ,क्या पा लेता है इसे इस देश का गरीब भली भांति जानता है .
गरीब जानता है कि गैस की सब्सिडी का त्याग करने वाले बैंकों से कितनी रियायतें पाते हैं .उनके लिए उपलब्ध बैंकों के बेल आउट पैकेज का भी हिसाब गरीब के पास है . गरीब जानता है कि मोदी सरकार ने देश के स्वास्थ्य और शिक्षा के बजट का कितना गुना पैसा अमीरों के कर्ज के रूप में माफ कर दिया है!याद है ना करीब 3 लाख करोड़ रुपए है वो राशि !
लेकिन आज आप सिर्फ इतने से बिफरने लगे हैं कि केंद्र सरकार से जरूरत के मुकाबले आए बहुत थोड़े से टीकों को पहले सबसे गरीबों को लगाने का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने किया है– धिक्कारने का मन होता है ऐसे गरीब विरोधियों को !
ये भूल जाते हैं कि ये देश गरीबों की ताकत से ,उनके श्रम से ,उनके बलिदान से,उनकी उत्पादक क्षमता से ,उनके पसीने से खड़ा है आपकी गैस सब्सिडी की मामूली कुर्बानी से नहीं ! इतना तो शायद आपको छत्तीसगढ़ सरकार बिजली के बिल में छूट दे कर लौटा ही देती होगी ? ये है वो पोस्ट जो गरीबों को टीकाकरण पर सवाल उठाती है ।👇