रायपुर। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जी का दो दिवसीय प्रवास दुर्ग वासियों में एक नयी जागृति लेकर आया है। हर वर्ग, सम्प्रदाय के लोग आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंच कर पावन मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं। मंगलवार को प्रवचन में प्रतिबोध देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि हमारे जीवन में अनुकुलता आती है तो कभी प्रतिकूलता भी आ सकती है। अनुकुलता हो चाहे प्रतिकुलता व्यक्ति को हर परिस्थिति में सहिष्णुता रखनी चाहिए। कभी प्रतिकुलता आ गयी तो भी अक्रोश आदि के भाव भीतर में नहीं आने चाहिए। सक्षम होने पर भी क्षमा रखना बड़ी बात होती है।

चंडकौशिक सर्प इसका उदाहरण है कि भगवान महावीर से जब उसे प्रतिबोध मिला तो उसने क्षमा, सहिष्णुता को धारण कर लिया। जीवन में हो सके उतना क्षमा का अभ्यास हो। आक्रोश का परिणाम कटु तो शांति का परिणाम अच्छा होता है। कोई सामने से कुछ भी कहे या उकसाये ऐसी स्थिति में भी सहिष्णुता रखने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी शक्ति को वैर-विरोधों में न लगाए। हर चीज का जवाब देना, स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं होता। हमारी शक्ति अच्छे कार्यों में लगनी चाहिए। अपनी आलोचना का जवाब जबान से नहीं, अच्छे कार्यों से देना चाहिए। यह मानव जीवन मिला है इसका उपयोग अच्छे, भलाई के कार्यों में हो। परिवार में पिता-पुत्र में व घर में कभी कोई बात हो सकती है। कभी पिता सहन कर ले, तो कभी बेटा सहन कर ले। बड़े तो माईत होते है। गुस्से में आकर उनके सामने कुछ नहीं कहना चाहिए। क्षमाशीलता बडप्पन का प्रतीक होती है।

लोकसभा सांसद विजय बघेल आचार्य श्री के स्वागत में उपस्थित हुए अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा आचार्य जी अपने लोकसभा क्षेत्र में आपके दर्शन कर मैं कृतार्थ हो गया। आपके पावन वचन जीवन में सात्विक परिवर्तन लाएंगे।

प्रातः पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का जैन स्थानक में पदार्पण हुआ. जहां श्रमण संघ के जयमल जी सम्प्रदाय के छत्तीसगढ़ प्रवर्तक रतनमुनि जी, सतीश मुनिजी आदि संतों से पूज्यप्रवर का आध्यात्मिक मिलन हुआ। इस दौरान तेरापंथ, अहिंसा यात्रा, साहित्य विषयक चर्चा हुई। रतनमुनि जी ने आचार्यश्री को वस्त्र एवं साहित्य भेंट किया।