रायपुर। विवेकानंद से विहार कर गुरुवार को आचार्य श्री महाश्रमण जी पचपेड़ी नाका स्थित वॉलफोर्ट एनक्लेव पहुंचे। यहां उन्होंने आत्मा की विवेचना की। पावन प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा कि दुनिया में मित्र भी है और शत्रु भी। प्रश्न होता है कि सबसे बड़ा शत्रु कौन है? हमारी अपनी आत्मा ही सबसे बड़ी शत्रु होती है। आत्मा ही स्वयं मित्र और आत्मा ही स्वयं की दुश्मन है। चार प्रकार की आत्मा कहीं जा सकती है- परमात्मा, महात्मा, सदात्मा एवं दुरात्मा। जो मोक्ष सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं वह भगवान परमात्मा होते हैं और हम साधु महात्मा। आत्मा सदाचार में लगी रहती है वह अपनी मित्र हैं और जो आत्मा हिंसा, चोरी, कपट, बुरे कार्यों में लगी रहती है वह दुरात्मा होती है। व्यक्ति को खुद को दुरात्मा बनने से बचना चाहिए।

स्वयं द्वारा किये कर्म स्वयं को ही भोगने पड़ते हैं। आत्मा ही हमारे सुख-दुख की कर्ता होती है। ध्यान दें कि जीवन में कितना धर्म है। जितना हो सके धर्म के सिद्धांत जीवन में आचरण में आने चाहिए। चाहे कोई तीर्थंकर बनने वाला ही क्यों न हो स्वयं द्वारा कृत कर्म उसे भी भोगने पड़ते हैं। भगवान महावीर को भी पूर्व जन्म में कितने कर्मों को भोगना पड़ा। हम अपनी आत्मा को पाप से बचाने का प्रयास करें। हमारे व्यवहार में पाप मुक्तता हो। उपासना के साथ-साथ धर्म हमारे जीवन व्यवहार में उतरे यह जरूरी है।

मंदिर में जाना व उपासना करना भी धर्म का एक रूप होता है, पर यदि किसी के पास उसके लिए समय न हो तो भी यदि जीवन में धर्म उतर जाय तो वह भी बड़ा धर्म है। हम कमल की तरह निर्लिप्त व अनासक्त रहें तो धर्म की सहज उपासना कर सकते हैं।

गुरुदेव ने आगे कहा कि तेरापंथ के नावमाचार्य आचार्य श्री तुलसी ने सुदूर प्रदेशों की यात्रा की थी। यह रायपुर शहर जहां पर गुरुदेव से दूसरे ने सन 1970 में चातुर्मास किया। उसी धरा पर इस बार हमारा आना हुआ है। आचार्य तुलसी ने आत्मोद्धार के साथ-साथ जनोद्धार का इतना बड़ा कार्य किया और अब हम भी अहिंसा यात्रा के द्वारा सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं। यह हमारी आत्मा के लिए हितकर है। व्यक्ति जितना हो सके जीवन में सदाचार को अपनाएं। संसार में रहकर भी कमल की तरह निर्लिप्त रहे यह काम्य है। प्रवचन में निर्मला कोठारी, सरोज कोठारी, रचना कोठारी, छत्तरसिंग बच्छावत ने मंगल कामना प्रेषित की। वॉलफोर्ट एनक्लेव की बहनों ने गीत की प्रस्तुति से मंगलाचरण किया।