रायपुर। मैट्स विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर गुल्लू, आरंग में द्विदिवसीय अनुसंधान सम्मेलन का शुभारंभ हुआ. उल्लेखनीय है कि मैट्स विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ का एकमात्र निजी विश्वविद्यालय है, जिसे NAAC A+ ग्रेड प्राप्त है. विश्वविद्यालय शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ-साथ अनुसंधान और नवाचार को भी विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का महत्वपूर्ण आधार मानता है.

सम्मेलन का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन के साथ किया गया. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि एवं वक्ता के रूप में डॉ. जितेंद्र सिंह (डायरेक्टर रिसर्च सर्विस, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री, पाटन-दुर्ग), डॉ. अमित दुबे (साइंटिस्ट, सीजी कॉस्ट, रायपुर), डॉ. कमलेश श्रीवास (एसओएस केमिस्ट्री, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर), डॉ. कमलेश शुक्ला (एसओएएस बायोटेक्नोलॉजी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर), डॉ. तोप लाल वर्मा (राष्ट्रीय सेवक संघ, छत्तीसगढ़ क्षेत्र) और डॉ. शुभा बनर्जी (एसोसिएट प्रोफेसर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर) उपस्थित रहे.

आतिथ्य स्वागत के उपरांत सम्मेलन की संयोजक डॉ. मनीषा अग्रवाल ने कार्यक्रम की रूपरेखा और उद्देश्य पर प्रकाश डाला. इसके बाद कुलपति डॉ. के. पी. यादव ने स्वागत भाषण देते हुए अनुसंधान के महत्व और विश्वविद्यालय द्वारा शोध के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अनुसंधान और नवाचार नए ज्ञान के सृजन के साथ समाज की समस्याओं के समाधान में अहम भूमिका निभाते हैं.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलाधिपति गजराज पगारिया ने अतिथियों और विद्वानों को शुभकामनाएं दीं. उन्होंने प्राचीन भारत के मनीषियों द्वारा ज्योतिष, पंचांग, चिकित्सा, आयुर्वेद और शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान को रेखांकित करते हुए वर्तमान समय में उसकी वैश्विक प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला.

तकनीकी सत्रों में डॉ. जितेंद्र सिंह ने अर्बन हॉर्टिकल्चर पर व्याख्यान देते हुए बताया कि शहरी क्षेत्रों में छतों पर फल, सब्जियां और फूल उगाकर खाद्य सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और पर्यावरण गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है. वहीं डॉ. शुभा बनर्जी ने फूड एंड एग्रीकल्चर नेक्सस पर भारत की कृषि एवं खाद्य प्रणाली का विश्लेषण प्रस्तुत किया और ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक खाद्य पोषक तत्वों की अहमियत बताई.

इसके अलावा डॉ. तोप लाल वर्मा ने वंदे मातरम के 150वें वर्ष के अवसर पर इसे राष्ट्रवाद की प्रेरणा का प्रमुख स्रोत बताते हुए उसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला. डॉ. अमित दुबे ने आईपीआर और डीएसटी की भूमिका पर विचार रखते हुए नवाचार से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया. डॉ. कमलेश श्रीवास ने रिसर्च में इनोवेशन और नावेल्टी पर व्याख्यान दिया, जबकि डॉ. कमलेश शुक्ला ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करते हुए प्रदूषण मुक्त भविष्य के उपाय सुझाए.

प्रथम दिवस के समापन पर कुलसचिव गोकुलानंद पंडा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सभी अतिथियों, शोधार्थियों, विभागाध्यक्षों, शिक्षकों और विद्यार्थियों का आभार जताया तथा शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. वहीं विश्वविद्यालय के महानिदेशक प्रियेश पगारिया ने सम्मेलन के पहले दिन के सफल आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की.

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