सुप्रिया पाण्डेय, रायपुर। बॉलीवुड की दंगल फिल्म आपको याद होगी. इस फिल्म में एक पिता गुरु बनकर बच्चियों को अखाड़े में ट्रेनिंग देता है. इस ट्रेनिंग की बदौलत उनकी बेटी बेहतरीन खिलाड़ी बनती है. कुछ ऐसी ही कहानी छत्तीसगढ़ की राजधानी के एक पिता की है, जिन्होंने अपनी दो बेटियों और एक बेटे को एथलीट बनाने के लिए घंटों मैदान में पसीना बहा रहे हैं.

बेटियों ने भी एक के बाद एक मेडल जीत कर पिता का नाम रोशन कर दिखाया. पिता विमल बेहरा भाटागांव चौक में एक छोटी सी चाय दुकान चलाते हैं. विमल बेहरा ने खुद 47 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया और अब दो गोल्ड मेडल उनके नाम है.

उन्होंने बताया कि शुरू से ही बेटियों को खेल में रूचि थी. लेकिन आमदनी इतनी नहीं थी कि उच्च स्तर की कोचिंग सुविधा दिला सकूं, इसलिए मैंने तीनों बच्चों को पहले वालीबॉल फिर एथलीट की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी.

विमल ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति खराब है. इस वजह से बच्चो में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए देसी आहार चावल का पेज बच्चों को देता हूं.

ठंडी, बरसात या फिर गर्मी का महीना प्रतिदिन सुबह-शाम तीन-तीन घंटे पिता विमल बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं. बिमल खुद भी पांच किलोमीटर दौड़ते हैं. वहीं बच्चों को फिजिकल एक्सरसाइज के साथ तीन किलोमीटर रनिंग कराते हैं. उनकी बड़ी बेटी मधुमिता बेरा 2013 से वालीबॉल खेल रही थी, लेकिन एक साल पहले एथलेटिक्स में आने का फैसला लिया. इसके बाद कोच की जिम्मेदारी खुद उठाने की ठानी और बच्चों के साथ खुद भी रोजाना पांच किलोमीटर दौड़ना शुरू किया. इसके बाद दूसरी बेटी नवनिता ने भी एथलेटिक्स गेम में लॉन्ग जम्प में एक के बाद एक पदक जीत कर नाम रोशन किया.

विमल आज न केवल अपने बच्चों के लिए कोच हैं, बल्कि उन गरीब और बेसहारा बच्चों के लिए भी कुछ बन गए हैं, जिनकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आता और जो महंगी फीस नहीं दे सकते.

read more- Corona Horror: US Administration rejects India’s plea to export vaccine’s raw material