संजीव शर्मा, कोंडागांव। शिक्षा की चिंगारी कहीं भी जल सकती है. अज्ञानता की अंधकार को शिक्षा की जोत से कहीं भी मिटाया जा सकता है. उसके लिए जरूरी नहीं की शिक्षा मंदिर ही हो. बस अपनी मंजिल को पाने के लिए और कुछ कर गुजरने के लिए जज्बा हो, उनमें जुनून हो. ऐसी ही एक तस्वीर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में देखने को मिली है. जहां बुझी हुई आस में विश्वास डाला जा रहा है. यहां ज्ञान का दीप जलाया जा रहा है. गांव के लोग अपने बच्चों के लिए घरों की दीवारों को वर्णमाला से सजा दिए हैं. दीवारें शिक्षा मंदिर बन गई हैं.
दीवारें बनीं शिक्षा मंदिर
दरअसल, 2 साल से कोरोना के कारण स्कूलों में ताले लटके हैं. इससे बच्चों को पढ़ाई करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था. गांव के घर-घर की दीवारों को ब्लैक बोर्ड बना दिया गया है. सारी किताबों के लिखे गए शब्दों को दीवारों पर उकेर दिया गया है. गांव में बच्चे अब उन्हीं दीवारों से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं.
वर्ण माला और सामान्य ज्ञान से सजी दीवारें
संक्रमण के इस दौर में जब शिक्षण संस्थानों के दरवाजे बंद हैं. ऐसे समय में बच्चों को शिक्षित करने और शिक्षा से जोड़े रखने के उद्देश्य से अभिभवाक और शिक्षकों ने मिलकर जिले के नक्सल प्रभावित इलाका ग्राम पंचायत करियाकांटा की लगभग हर घर की दीवारों को वर्णमाला, अल्फाबेटिक, गिनती के साथ ही सामान्य ज्ञान से लेखन और चित्रण से भर दिया गया है.
हालांकि शासन की प्रिंट रिच अभियान के तहत जिले भर में इस तरह की दीवार लेखन किया गया है, लेकिन माओवाद प्रभावित ग्राम करियाकांटा में जो लेखन- दीवारों पर किया गया है. वह अपने आप ही राह चलते लोग को भी प्रभावित और आकर्षित कर रहा है.
बच्चों को शिक्षत करने के लिए भले ही मोहल्ला और ऑनलाइन क्लास की शुरूआत की गई, लेकिन यह इस इलाके में उतना कारगार साबित नहीं हो पाया. दरअसल इन इलाकों में नेटवर्क की समस्या के साथ ही हर अभिभावकों के पास एंड्राइड फोन नहीं है. ऑनलाइन क्लासेस यहां सरकारी फरमान से ज्यादा और कुछ नहीं है.
2 खेल में बच्चे सीख रहे पढ़ना , इस गांव की गलियां और घर की हर दीवार अंग्रेजी, हिन्दी वर्णमाला गणित, विज्ञान की तस्वीरों से रंगी हुई है. इसके पीछे वजह है कि गांव के बच्चे खेल-खेल में पढ़ें. गांव के बच्चे हो या रास्ते से गुजरने वाले छात्र-छात्राएं गांव की गलियों से गुजरते हुए दीवारों में लिखे अक्षरों को पढ़ते हैं. अपने दोस्तों से मिलकर एक दूसरे को पढ़ाते भी हैं. करियाकांटा में किए गए प्रिंट रिच कार्य का लाभ आसपास के गांव के बच्चों को भी मिल रहा है. जैसे खंडाम, मयूरउोंगर,करियाकाटा इसके अलावा आसपास के गांव के बच्चे भी इन दिवारों में प्रिंट रिच के माध्यम से पढ़ते देखे जा सकते हैं.
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