कैलाश रविदास, जांजगीर-चांपा। भूख, प्यास और आस हर किसी के पास है. इस दुनिया में जहां भी, जिस शक्ल में जिंदगी नजर आती है, उसका पहला इंजतार खाना और रोजगार होता है. इंसान इस खाने और रोजगार के लिए क्या कुछ नहीं करता, लेकिन जब मेहनत के फल की बारी आती है, तब किस्मत में बेबसी, लाचारी और बदनसीबी का तमगा लग जाता है. फिर हुक्मरान भी बहरे हो जाते हैं. ये दांस्तां एक टैलेंटेड स्टेट प्लेयर, बुद्धिमान छात्रा और व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी अनिता बघेल की है, जो आज पाई-पाई के लिए मोहताज है.

 अनिता ने लल्लूराम डॉट कॉम के माध्यम से सोनू सूद से भी मदद की अपील की है. उन्होंने कहा है कि पूरे देश के लिए मसीहा बने अभिनेता सोनू सूद उनकी भी मदद करें. उन्हें उम्मीद है कि सोनू सूद उनकी जरूर मदद करेंगे.

 

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किस्मत ने पहले ही दोनों पैर छीन लिए, अब रोजगार के लिए बेबस

छत्तीसगढ़ व्हीलचेयर क्रिकेट एवं बास्केटबॉल की अनिता बघेल कप्तान है, लेकिन आज वो अपने बदनसीबी को लेकर कोस रही है. वो कहती हैं, ब्रांड एम्बेसडर बनाने से पेट नहीं भरता साहब. दो जून की रोटी के लिए कुछ काम चाहिए. उसे फ्री में मत दो दाल, मत दो चावल, मत करो कई उपकार, बस दिव्यांग अनिता को रोजगार दे दो. किस्मत ने पहले ही दोनों पैर छीन लिए. इसके बाद भी वो मेहनत करके छत्तीसगढ़ का नाम रौशन की, लेकिन हुकूमत के हुक्मरानों से आश्वासन का झुनझुना मिला, लेकिन रोजगार नहीं मिला.

अनिता बघेल के पास डिग्रियां की भरमार, लेकिन नहीं मिला रोजगार

दिव्यांग अनिता बघेल कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि मेरे पास पढ़ाई-लिखाई की डिग्रियां नहीं है. MSC, PGDC, B.Ed , M.Ad समेत कई डिग्रियों की भरमार है. बावजूद इसके कोई ढंग का रोजगार नहीं है.  वे कहती हैं पढ़ाई करने के बाद भी जब उसे काम नहीं मिला, तो मजदूरी करने को विवश हो गई हैं. यह व्हीलचेयर क्रिकेट एवं बास्केटबॉल की छत्तीसगढ़ की कप्तान अनिता बघेल ने बताई है. दोनों पांव से दिव्यांग होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन काम नहीं मिलने के कारण  बेबस महसूस कर रही है.

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अर्जियों का क्या है साहब डस्टबीन का शोभा बढ़ा रहे हैं….

अनिता अपने इन्हीं उपलब्धियों से सिर्फ अपना ही नहीं, बल्कि परिवार का पेट पालती है. घर में शील्ड, मेडल, प्रशस्ति पत्र सहित कई उपलब्धियों की ढेर है, लेकिन इनसे पेट नहीं चल रहा है. पेट पालने के लिए वह छोटे से लेकर बड़े अफसरों तक गुहार लगाई. यहां तक कलेक्टर से लेकर सीएम भूपेश बघेल तक अर्जियां पहुंचाई, लेकिन उन अर्जियों का क्या है. पांच रुपये की कलम से लिखी गई थीं, डस्टबीन में डाल दिया गया.

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घर में धूल फांक रही हैं उपलब्धियां 

अनिता पढ़ाई लिखाई के अलावा क्रिकेट और बास्केटबॉल खेल में देश के कई महानगरों में लोहा मनवा चुकी हैं. इसके बाद भी उसे केवल शील्ड, मेडल व प्रशस्ति पत्र के अलावा कुछ नहीं मिला. उनकी सारी उपलब्धियां घर में धूल फांक रही हैं. वह आज पाई-पाई की मोहताज हो गई हैं. अनिता में हुनर कूट-कूटकर भरा है, इसके बाद भी उसकी इस हुनर का कोई कद्रदान नहीं है.

छत्तीसगढ़ का करती हैं नेतृत्व
अनिता बघेल पिता विश्राम बघेल जैजैपुर ब्लॉक के मुक्ता गांव की निवासी हैं. वह छोटे से गांव में रहकर व्हीलचेयर क्रिकेट एवं बास्केटबॉल प्रतियोगिता का छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करती है. उसके बदौलत उसकी टीम ने आंध्र प्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों को हराकर सिरमौर भी रही है. हॉफ मैराथन में अनिता छत्तीसगढ़ की टॉपर है. राष्ट्रीय खेल स्पर्धा के ट्राइसाइकिल दौड़ में उसे रजत पदक भी मिला है.

कलेक्टर ने बनाया उसे ब्रांड एम्बेसडर
दिव्यांग अनिता बघेल की उपलब्धियों को लेकर तत्कालीन कलेक्टर नीरज बंसोड़ ने उसे दिव्यांगों का ब्रांड एम्बेसडर बनाया है. अब तक जितने भी कलेक्टर आए अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के दिन उसका सम्मान कर दिया जाता है, लेकिन जब जॉब की बारी आती है, तो सभी चुप्पी साध लेते हैं.

पांच हजार में चलाती हैं घर का खर्च
इन दिनों अनिता बघेल जिला मुख्यालय से लगे गांव खोखरा में वृद्धाश्रम में मजदूरी करने विवश हैं. इस एवज में उसे पारिश्रमिक केवल पांच हजार रुपये मिलते हैं. इसमें से वह तीन हजार अपने घर में देती है. दो हजार रुपये में खुद का खर्च चलाती है. 2 हजार रुपयों में वह इन दिनों आगे की पढ़ाई भी कर रही है.

रोजगार को तरस रहीं बेबस आंखें…! 

बहरहाल, कहते हैं रोटी और रोजगार से बड़ा किसी चीज का मोल नहीं है. रिस्ते नाते, अपने बेगानों का भी नहीं है. ये लोग साथ में नहीं भी रहेंगे, तो जिंदगी गुजर जाती है, लेकिन बदनसीबी रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए तरसा देती है. अनीता आज बिन रोजगार के ठोकर खाती जिंदगी सा महसूस कर रही हैं. उसकी बेबस आंखें रोजगार को तक रहे हैं. पता नहीं अब अनिता को कब रोजगार मिलेगा. कब फिरेंगे उसके दिन, बस मदद की आस है.

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