सुप्रिया पांडेय, रायपुर। भूख की कोई जात नहीं होती, आंसुओं का कोई मजहब नहीं होता और गम का कोई इलाका नहीं होता. भूख की असल कहानी देखना है, तो इन तस्वीरों को देखिए. हाकिम की हुकूमत झलक जाएगी. इन तस्वीरों को देख हुकूमत से नफरत और इंसानियत से मोहब्बत हो जाएगी. इस गांव के लोग रोजगार को ताक रहे हैं और पेट ‘रोटी’ की राह देख रहा है, लेकिन इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि जिम्मेदारों को इनकी कराह नहीं सुनाई दे रही है. बेबस मजदूर कह रहे हैं हम मजबूर हैं, लॉकडाउन के कारण रोजगार हमसे…दूर…है, कोई तो मदद करो साहब…
पेट रोटी की देख रहा राह
दरअसल, ये कहानी राजधानी के डगनिया क्षेत्र की है. जहां श्रमिकों का एक पूरा तबका भूखे मरने को मजबूर है. दो वक्त की रोटी तो छोड़िए, इन्हें एक वक्त का पूरा खाना ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी. कोरोना के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से इनके रोजगार छिन गए हैं. बचे हुए पैसे भी खत्म हो गए हैं. अब इनके पास सिर्फ एक ही रास्ता बचा है और वो है उधार मांग कर खाने का.
उधार मांगकर गुजर बसर
डंगनिया के खदान बस्ती में तकरीबन 300 लोगों की आबादी है. यहां का हर परिवार भूखे मरने को मजबूर है. अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर ललिता बाई बताती हैं कि वे मजदूरी का काम करती हैं, लेकिन अब उनके पास कोई रोजगार नहीं है. उनके पास घर में सिर्फ चावल है, वो भी पड़ोसी से उधार मांग कर लाई हैं. पैसे भी नहीं की दाल और सब्जी खरीद सकें.
एक-एक निवाले के लिए तरस रहे
सुनीता साहू ने बताया कि वो बूढ़ी हो गई हैं, जो बर्तन मांज कर गुजारा करती हैं. लॉकडाउन और कोरोना की वजह से अब उसका काम भी बंद है. उम्र भी इतनी हो गई कि दूसरा काम करने की क्षमता नहीं है. राशन दुकान से राशन भी नहीं दिया जाता, हम करें तो क्या करें.
कोई तो कर दे मदद…
मुकेश देवांगन ने बताया कि वे भी श्रमिक हैं, लेकिन काम नहीं मिल रहा है. लॉकडाउन में वे ठेले पर समान बेचने को भी तैयार हैं, लेकिन लॉकडाउन में छूट के साथ उन्हें भी रियायत नहीं दी गई है. मुकेश चाहते हैं कि काम बंद हैं तो थोड़े पैसे ही उन्हें कहीं से मिल जाए, तो कुछ दिनों के लिए राहत मिल जाती.
हम गरीब हैं, हमारी कोई नहीं सुनता…
जबकि गांव के ही सावित्री का कहना है कि जब चुनाव का समय था, यहां वोट मांगने के लिए नेताओं की लाइनें लगी होती थी. अब सन्नाटा पसरा हुआ है. चुनाव जीतने के बाद नेता अपने वायदों को भूल गए हैं. हम गरीब हैं, हमारी कोई नहीं सुनता है.
लोगों का कहना है कि नेताओं ने कहा था कि कॉलोनी का विकास करेंगे, लेकिन लॉकडाउन के इस दौर में किसी ने पूछ परख तक नहीं की. श्रमिकों का आरोप है कि उन्हें सरकारी राशन दुकानों से उपलब्ध होने वाला चावल भी नसीब नहीं हो रहा है. वहां से भी लौटा दिया जाता है.
क्यों रोजगार के लिए मिन्नतें कर रहे लोग ?
बहरहाल, इस गांव में इतनी बेबसी क्यों है. इस गांव के लोग क्यों रोजगार के लिए मिन्नतें कर रहे हैं. इस गांव में लोग भूख से बिलखते क्यों नजर आ रहे हैं. यहां के परिवारों की आंखें रोटी की आस में पथरा क्यों गई है. क्या सिस्टम लाचार है या हाकिम की हुकूमत को इनकी झलक नहीं दिख रही है, जो फटे पुराने कपड़ों लिबास, खुले आकाश को छत और धरती को बिछौना बनाकर घांस-फूस की झोपड़ी में सिमटी जिंदगी लिए जिए जा रहे हैं. आखिर कब इनका दिन फिरेगा ये तो ऊपर वाला ही जानें..?
देखें वीडियो-
read more- Corona Horror: US Administration rejects India’s plea to export vaccine’s raw material
दुनियाभर की कोरोना अपडेट देखने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक