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आभास कर लेना आखिर होता क्या है? हमारे भीतर आखिर कौन-सा ऐसा सेंसर लगा हुआ है जो किन्हीं उपस्थित किंतु अदृश्य तरंगों, दृश्यों अथवा ध्वनियों को महसूस कर लेता है। उनके होने का भान कराकर हमारी संज्ञाओं और चेतनाओं को झकझोरता है। हमें बनाने वाले उस आभासी पुरुष ने हमारे भीतर एक ऐसी इंद्री आखिर क्यों रख छोडी़, जो स्वयं में आभासी है।
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हम दो स्तरों पर जीते हैं-आभासी और वास्तविक। आभासी, हालांकि अवास्तविक होता है, लेकिन वह अस्तित्व के भान, उसकी प्रतीति के साथ उपस्थित रहता है।
कह सकते हैं कि वास्तविक और अवास्तविक के साथ ही जीवन पूर्ण होता है। अवास्तविकता असल में वास्तविकता की ही प्रतीति है। इसे ही वर्चुअल कहा जाता है। प्रतिबिंबों की एक समानांतर दुनिया।
यह वह समय है, जब हम अपने होने और हमेशा बने रहने की उद्घोषणा पूरी ताकत के साथ कर देना चाहते हैं। ऐसे समय में जब एक विषाणु हमारी वास्तविक क्षमताओं को हमसे छीन लेना चाहता हो, हम अपनी समानांतर दुनिया से उसके खिलाफ हथियार क्यों इकट्ठा न करें। अपनी वर्चुअल दुनिया से।
कल 13 दिसंबर को हम छत्तीसगढ़ के लोग ऐसा ही करेंगे। हम इस संकट के खिलाफ, नवा-छत्तीसगढ़ रचते रहने के संकल्प के साथ अपनी वर्चुअल दुनिया में एकजुट होकर दौडेंगे।यह अवास्तविक मैराथन असल में वास्तविक ही होगा, जो हमारी इंद्रियों और चेतनाओं को एक साथ झकझोरेगा।
छत्तीसगढ़ शासन ने कल 13 दिसंबर को वर्चुअल मैराथन का आयोजन किया है। आप अपने घर, गार्डन, कमरे..यहां कहीं भी दौड़कर इसमें शामिल हो सकते हैं। बस आपको दौड़ते हुए अपनी फोटो लेनी है, या कुछ सेकंड का वीडियो बनाना है। फिर इसे फेसबुक या ट्वीटर पर #runwithchhattisgarh के साथ अपलोड कर देना है। सुबह 6 से 11 बजे तक।
प्रतीति के संसार में कल आपकी प्रतीक्षा रहेगी। अवश्य आइएगा।