दिनेश द्विवेदी, मनेंद्रगढ़. उम्र सिर्फ एक संख्या है यह कहावत मनेन्द्रगढ़ की कमला देवी मंगतानी ने सच कर दिखाई है। 67 वर्ष की आयु में जब अधिकतर लोग अपने शरीर की सीमाओं को स्वीकार कर बैठते हैं, तब कमला देवी ने अपने अटूट संकल्प, अनुशासन और आत्मबल से न सिर्फ जीवन को चुनौती दी, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में अपने शहर, राज्य और देश का नाम भी रोशन किया। उन्होंने हाल ही में दुबई में आयोजित 11वें अंतरराष्ट्रीय खेल समारोह में तीन गोल्ड मेडल हासिल की है.

कमला देवी मंगतानी पिछले 30 वर्षों से डायबिटीज जैसी जटिल बीमारी से जूझ रही हैं। एक समय था जब डॉक्टरों ने इलाज से जवाब दे दिया था और चलने-फिरने में असमर्थता के कारण उन्हें बैसाखी थमा दी गई थी, लेकिन जहां एक ओर शरीर जवाब दे रहा था, वहीं दूसरी ओर उनका मनोबल और आत्मविश्वास नई उड़ान भरने को तैयार था। उन्होंने न केवल बैसाखी को छोड़ा बल्कि अपने पैरों पर खड़ा होकर चलना शुरू किया। एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए उन्होंने जीवन के प्रति एक नया नजरिया अपनाया।

अब तक जीत चुकी 100 से अधिक गोल्ड मेडल
कुछ ही वर्षों में उन्होंने खुद को इतना सशक्त बना लिया कि स्थानीय जिम में जाना शुरू कर दिया। पिछले पाँच वर्षों से वे लगातार जिम में नियमित रूप से अभ्यास कर रही हैं। जहां उनके उम्र के लोग रिटायरमेंट के बाद आराम की जिंदगी जीते हैं, वहीं कमला देवी सुबह उठकर जिम में पसीना बहाने जाती हैं। जिम में उन्होंने खुद को न केवल फिट किया, बल्कि वजन उठाने (वेटलिफ्टिंग) जैसी कठिन कसरत में भी महारत हासिल कर ली। उनकी मेहनत और जज्बे का परिणाम यह रहा कि उन्होंने विभिन्न स्तरों पर आयोजित वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं से शुरू होकर वे धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंच गईं। अब तक वे 100 से अधिक गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। इन पुरस्कारों में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय खेल समारोह में जीतीं तीन गोल्ड मेडल
सबसे हालिया और गौरवपूर्ण सफलता उन्हें दुबई में आयोजित 11वें अंतरराष्ट्रीय खेल समारोह में प्राप्त हुई। संयुक्त भारतीय खेल फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन दुबई स्पोर्ट्स काउंसिल के सानिध्य में 22 से 28 अप्रैल 2025 के बीच हुआ। इसमें दुनियाभर के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कमला देवी ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल अपने नाम किए। उनकी इस ऐतिहासिक उपलब्धि से न केवल भारत, बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य और विशेष रूप से मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी ) जिले का नाम रोशन किया।
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