”चाय मेथी के दानों से भी बनती है और आटे के चोकर से भी
मेथी के दानों को तवे पर भून लीजिए फिर उबलते हुए पानी में डाल दीजिए
साथ में चीनी या गुड़ जो भी पसंद हो डाल लीजिए
अंत में थोड़ा सा दूध डालिए
छान लीजिये आपकी मेथी की शानदार चाय तैयार है
इसे अगर आप रोज पिएं तो आपका हाजमा बढ़िया रहेगा ”
कोरोना होने पर भी मुझे डर न लगा पर इस दौरान चाय पर जो ज़ुल्म ढाये गए. जिस तरह चाय को सौ प्रकार के काढ़ो में बदला गया ,मेरी उम्मीद ही मर गयी क्योंकि ये कहा भी जाता है Where there’s tea there’s hope.
मुझसे रहा न गया उनसे कहा , विनम्र आग्रह है.. हमने देखे हैं कई किस्म के काढ़े चाय को चाय ही रहने दो कोई नाम न दो…हम तो चाय को कुछ ऐसे देखते हैं.
” चाय में शकर मारो ,अदरक मारो,दूध के साथ इसे लम्बा पकाओ
मेरे ने जो बोला है वही मेरे को लाओ ”
चाय उम्मीद ही नहीं सबसे अच्छी दोस्त है, सबसे अच्छी वैद्य है ,सबसे अच्छी मार्गदर्शक है ,प्रेरक है -उत्प्रेरक है ,सुबह का पहला प्यार है -शाम की यार है…चाय चाय है इसे वाकई कोई नाम न दो .दुनिया की इस मोहब्बत को जड़ी -बूटियां मिलाकर काढ़ा तो बिलकुल न बनाओ .
वैसे ये ज़ुल्म और भी लोग करते रहे और कर रहे हैं ,सुनिए रज़ा साहब की ज़बानी :
राही मासूम रज़ा ने लिखा है दिलीप कुमार चाय में अरारोट बिस्कुट डुबा कर मज़े से खा जाते .
”..मैं चाय में दूध की मिलावट तक बर्दाश्त नहीं करता फिर अरारोट का बिस्कुट कैसे मिला लेता !परन्तु जब तब तक मैं इंकार करूँ वो मेरी और अपनी चाय की प्याली में बिस्कुट डाल चुके थे .बिस्कुट की काया पलट हो गयी .वह मलाई की मोटी परत की तरह प्याली पर छा गया .
उस दिन से मैं अपनी चाय खुद बनाता हूं और बिस्कुटों को जल्दी -जल्दी खा जाता हूँ और अपनी चाय दिलीप कुमार से दूर रखता हूं …वैसे ये चाय बड़ी मज़ेदार होती है .”
जाने लोग क्यों चाय से खिलवाड़ करते हैं ..चाय को न काढ़ा बनाया जाना चाहिए
न शरबत ,न नीम की तरह कड़वा बनाओ न मिर्च की तरह तीखा …
मुझे अपने बंगाली दोस्तों से ख़ास कहना होता है अपनी बांग्ला चाय मत पिलाना यानी कृपा करके तेज पट्टी दूध काम मत करना .
अपने पंजाबी दोस्तों से हाथ जोड़कर कहता हूँ चाय पीनी है …दूध या लस्सी नहीं !
और …
अपने प्रिय छत्तीसगढ़ी दोस्तों से कह ही देता हूँ चाय को शरबत मत बनाना …
चाय चाय है जो दूध ,चायपत्ती ,शक्कर ,अदरक के संतुलन के साथ बनती है जिसे पीते हुए
राजकमल चौधरी लिखते है :
”चाय तैयार है, आओ पिएं,
घुली फर्श पर दूध के धब्बे।
भीगे कपड़े आंगन में धूप की दीवार काटते हुए। रेडियो हरदम बजता है। खाली है सुराही। बरसों से चुप है, कोने में पड़ा राजशाही सितार। आओ, सितार बनकर जिएं।[ ऑडिट रिपोर्ट ” कविता संग्रह से…अब चलते -चलते ज़रा प्रसिद्ध उपन्यासकार अश्क़ जी की पीड़ा भी सुनिए !
मोहन राकेश जब बालक थे तो उनके वकील पिता से मिलने अश्क़ जी आये .उनके पिता ने जिस तरह अश्क़जी से उन्हें मिलवाया उन्हें समझ आगया ये कोई बहुत बड़े मेहमान हैं. मोहन राकेश ने लिखा कि ‘हमारे घर पंजाब में चाय अपने ही ढंग की बनती थी. सर्दी के दिनों में हमारे लिए डेढ़ पाँव दूध में एक घूँट चाय का मिला दिया जाता था जिससे उसकी तासीर गर्म हो जाए .मगर चाय ख़ुश्की न करे इसलिए उसमे खूब मलाई और बादाम की गिरियाँ डाल दी जाती थीं .
मां को मैंने बताया कि कोई बहुत बड़े मेहमान आये हैं ,उनके लिए बहुत बढ़िया चाय बना के ले जानी है ,यह मैंने इसलिए कहा चाय में कोई कसर न रह जाए. मां ने बढ़िया चाय बनाने के सिलसिले में उसमें और भी मलाई और गिरियाँ डाल दी .मैं ऊपर तक भरा हुआ आधा सेर वाला बड़ा गिलास लिए इस गुमान के साथ बैठक में दाख़िल हुआ जैसे मैंने कोई बहुत मार्के का काम कर लिया हो .
मगर जब मैंने गिलास अश्कजी के सामने किया तो वे गिलास पर एक सरसरी निगाह डालकर बोले -” काका , मैंने
दूध नहीं चाय लाने को कहा था . मुझे बहुत गुस्सा आया .मैंने कहा , ‘जी ,यह चाय है ‘.और अश्क़जी गिलास की तरफ देखकर ठहाका लगाकर हंसते रहे.
लेखक – अपूर्व गर्ग
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