रायपुर। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े घटक संगठनों द्वारा आज रायपुर, कोरबा, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, कांकेर सहित पूरे प्रदेश में चक्का जाम, धरना और प्रदर्शन किया गया। यह आंदोलन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने, सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाने, देशव्यापी किसान आंदोलन पर दमन बंद करने तथा केंद्र सरकार के किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट के खिलाफ आयोजित किया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राजधानी रायपुर में पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति और छत्तीसगढ़ किसान महासंघ के बैनर तले सारागांव में मुख्य राजमार्ग को किसानों की भारी संख्या ने जाम कर दिया। इस चक्का जाम आंदोलन में छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने भी हिस्सा लिया। स्थानीय नेताओं में घनश्याम वर्मा सचिव पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति, देवव्रत नायक अध्यक्ष जनपद अध्यक्ष , कमलेश्वर ठाकुर, अंकित वर्मा, अश्वनी वर्मा, ठाकुर राम वर्मा, अंकित वर्मा, जिला पंचायतअध्यक्ष श्रीमती डोमेश्वरी वर्मा, नकुल साहू, श्रीमती सरोज वर्मा, श्रीमती रमली साहू, श्रीमती कुंती देवांगन, वीरेंद्र वर्मा,सहित बड़ी संख्या में क्षेत्र के किसान मौजूद रहे।
चक्काजाम के पहले हुई से पहले हुई सभा को संबोधित करते हुए ग्राम निलजा के कमलेश्वर ठाकुर ने कहा कि देश का किसान इन काले कानूनों की वापसी के लिए खंदक की लड़ाई लड़ रहा है, क्योंकि कृषि क्षेत्र का कारपोरेटीकरण देश की समूची अर्थव्यवस्था, नागरिक अधिकारों और उनकी आजीविका को तबाह करने वाला साबित होगा। उन्होंने कहा कि जब तक ये सरकार किसान विरोधी कानूनों को वापस नहीं लेती, किसानों का देशव्यापी आंदोलन जारी रहेगा।
देवव्रत नायक ने कहा की मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ देश का किसान एकजुट हो चुका हैं। कानून वापसी तक ये आंदोलन और अधिक मजबूती से जारी रहेगा।
आलोक शुक्ला ने किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ दिल्ली में धरनारत किसानों और इस आंदोलन को कवर कर रहे पत्रकारों के दमन की तीखी निंदा की। उन्होंने कहा कि सरकार के किसी भी कानून या फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन करना इस देश के हर नागरिक का अधिकार है, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने भी की है। लेकिन इस आंदोलन को कुचलने के लिए यह सरकार असामाजिक तत्वों और संघी गिरोह का इस्तेमाल कर रही है। 26 जनवरी को लाल किले में हुई हिंसा इसी का परिणाम थी, जिसकी आड़ में किसान आंदोलन को बदनाम करने की असफल कोशिश इस सरकार ने की है।
संजय पराते ने कहा कि एक ओर तो सरकार तीन किसान विरोधी कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव रख रही है, लेकिन दूसरी ओर अपने बजट प्रस्तावों के जरिये ठीक इन्ही कानूनों को अमल में ला रही है। इस वर्ष के बजट में वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र में किये गए वास्तविक खर्च की तुलना में 8% की और खाद्यान्न सब्सिडी में 41% की कटौती की गई है। इसके कारण किसानों को मंडियों और सरकारी सोसाइटियों की तथा गरीब नागरिकों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जो सुरक्षा प्राप्त है, वह कमजोर हो जाएगी। इस बार के बजट में फिर किसानों की आय दुगुनी करने की जुमलेबाजी की गई है। इस बजट के जरिये जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर डकैती डालने की कोशिश की जा रही है, जिस पर किसानों और आदिवासियों का अधिकार है। इससे मोदी सरकार का किसान विरोधी चेहरा उजागर हो गया है।